इलाहाबाद हाईकोर्ट में फर्जी वकील और जाली दस्तख़त का मामला, FSL जांच के आदेश

Update: 2025-11-17 06:35 GMT

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक लंबित जनहित याचिका में गंभीर अनियमितताओं के संकेत मिलने पर कई दस्तावेज़ों के हस्ताक्षरों की फोरेंसिक जांच (FSL) कराने का आदेश दिया। कोर्ट के समक्ष आए तथ्यों से प्रथमदृष्टया यह प्रतीत हुआ कि मामले में प्रतिरूपण, जालसाज़ी, दस्तावेज़ों की फर्जी तैयारी और न्यायिक प्रक्रिया के दुरुपयोग जैसी आशंकाएं मौजूद हैं।

चीफ जस्टिस अरुण भंसाली और जस्टिस क्षितिज शैलेंद्र की खंडपीठ ने यह आदेश उस समय पारित किया, जब प्रतिवादी नंबर 5 ने भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) की धारा 379 के तहत आवेदन दाखिल कर आरोप लगाया कि याचिकाकर्ता ने झूठा हलफ़नामा दाखिल किया और उसके वकील के दस्तख़त तक जाली बनाए।

जनहित याचिका संगीता गुप्ता ने दायर की, स्वयं वकील हैं। याचिका में उन्होंने कुशीनगर स्थित फतेह मेमोरियल इंटर कॉलेज के प्रबंधन समिति के 2023 के चुनाव को चुनौती दी। सुनवाई के दौरान प्रतिवादी नंबर 5 ने आरोप लगाया कि गुप्ता एडवोकेट ए.पी. सिंह और तथाकथित वकील अशरफ़ अली के साथ मिलकर फर्जी याचिकाएं दायर कर रही हैं। एक ही पते और फ़ोन नंबर का उपयोग कर रही हैं और अदालत को गुमराह करने के लिए जाली दस्तावेज़ तैयार कर रही हैं।

संस्थान के प्रबंधक के पुत्र द्वारा दायर हलफ़नामे में यह तक आरोप लगाया गया कि गुप्ता ने उनकी ओर से नियुक्त अधिवक्ता के हस्ताक्षर की नक़ल कर वापसी आवेदन तैयार किया और अशरफ़ अली नामक वकील वास्तव में काल्पनिक पहचान है, जिसे ए.पी. सिंह ने अपने नापाक मंसूबों के लिए गढ़ा है। आरोपों में यह भी शामिल था कि सिंह का आपराधिक मामलों से जुड़ा इतिहास है और वह संदिग्ध व्यक्तियों के साथ मिलकर न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग कर रहे हैं।

हलफ़नामे में अनेक मामलों के स्क्रीनशॉट भी संलग्न किए गए, जिनमें कभी याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व ए.पी. सिंह या अशरफ़ अली करते दिखे, कभी दोनों एक-दूसरे का प्रतिनिधित्व करते तो कभी दोनों साथ में उसी मुकदमे में उपस्थित थे। दूसरी ओर गुप्ता ने सभी आरोपों का खंडन करते हुए कहा कि उन्होंने स्वयं वापस लेने का आवेदन प्रतिवादी पक्ष के वकील को दिया और उनकी याचिका केवल 2023 के चुनाव को चुनौती देने तक सीमित है।

प्रतिवादी नंबर 5 ने अपने प्रत्युत्तर में दावा किया कि उनके वकील ने कभी गुप्ता को देखा ही नहीं, इसलिए उनके पास आवेदन पहुंचने का सवाल ही नहीं। उन्होंने उन दस्तख़तों को भी जाली बताया, जिन्हें उनके नाम से प्रस्तुत किया गया। आरोप यह भी था कि ए.पी. सिंह, अशरफ़ अली के नाम पर रजिस्टर्ड मोबाइल नंबर का उपयोग कर रहे हैं और दोनों का एक ही प्रोफ़ाइल चित्र है।

सुनवाई के दौरान अदालत ने स्वयं कई बार देखा कि अलग-अलग लोग अशरफ़ अली बनकर पेश हो रहे थे। 20 अगस्त, 2025 को अदालत ने उपस्थित व्यक्ति को निर्देश दिया कि वह वहीं अदालत के रजिस्ट्रार के समक्ष अपने हस्ताक्षर करे। यह भी पाया गया कि ये हस्ताक्षर याचिका, वापसी आवेदन और कुरियर की डिलीवरी शीट पर दर्ज हस्ताक्षरों से मेल नहीं खाते।

रजिस्ट्री की रिपोर्ट में यह तथ्य भी सामने आया कि कुल 23 जनहित याचिकाएं संगीता गुप्ता, ए.पी. सिंह और अशरफ़ अली द्वारा या उनके संयोजन में दायर की गई थीं।

अदालत ने दुरुपयोग के आरोपों पर तत्काल निर्णय टालते हुए यह माना कि प्रतिरूपण और जालसाज़ी के आरोपों की सत्यता जानने के लिए फोरेंसिक जांच आवश्यक है। इसी कारण उसने लखनऊ स्थित फॉरेंसिक साइंस लैबोरेटरी (FSL) को सभी संबंधित मूल दस्तावेज़ भेजने का निर्देश दिया, जिनमें मूल याचिका, वापसी आवेदन, 20 अगस्त को किए गए हस्ताक्षर प्रतिवादी के वकील का वकालतनामा और कुरियर की डिलीवरी शीट शामिल हैं।

FSL को एक माह के भीतर स्पष्ट रिपोर्ट देने का निर्देश दिया गया कि क्या सभी दस्तावेज़ों पर दर्ज अशरफ़ अली/ए. अली के हस्ताक्षर एक ही व्यक्ति के हैं और क्या प्रतिवादी नंबर 5 के वकील के हस्ताक्षर वापसी आवेदन पर उसी व्यक्ति द्वारा किए गए, जिसने वकालतनामा पर हस्ताक्षर किए थे।

मामले की अगली सुनवाई 6 जनवरी, 2026 को होगी।

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