मध्यस्थ की नियुक्ति के लिए पक्षों के बीच निजी अनुबंध मध्यस्थों की वैधानिक नियुक्ति से भिन्न: इलाहाबाद हाईकोर्ट

Update: 2024-11-26 11:41 GMT

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना है कि ऐसे मामले जहां मध्यस्थों की नियुक्ति अनुबंधों के माध्यम से होती है, जो ऐसी नियुक्ति और मध्यस्थों की वैधानिक नियुक्ति पर विचार करते हैं, वे मामले दो अलग-अलग वर्ग हैं। तथ्यों के आधार पर उनमें अंतर किया जा सकता है।

भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHIA) ने मध्यस्थता और सुलह अधिनियम 1996 (A&C Act) की धारा 34 के तहत एडीशनल डिस्ट्रिक्ट जज, POCSO Act, बिजनौर के आदेश के खिलाफ हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जिसके तहत यह माना गया कि प्रतिवादी को दिया गया मुआवजा कानून के अनुसार नहीं था।

NHIA के वकील ने किन्नरी मलिक और अन्य बनाम घनश्याम दास दमानी में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय पर भरोसा करते हुए तर्क दिया कि एडिशनल जिला जज के पास मामले को मध्यस्थ को वापस भेजने का अधिकार नहीं है।

इसके विपरीत प्रतिवादी के वकील ने भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण बनाम पी. नागराजू उर्फ ​​चेलुवैया और अन्य में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय पर भरोसा करते हुए तर्क दिया कि रिमांड एडिशनल जिला जज के अधिकार क्षेत्र में था।

न्यायालय ने पाया कि किन्नरी मलिक में अनुबंध पक्षों के बीच निजी अनुबंध था, जहां अनुबंध के अनुसार मध्यस्थ नियुक्त किया गया, जबकि पी. नागराजू में वैधानिक मध्यस्थ नियुक्त किया गया, जहां मध्यस्थ को रिमांड बरकरार रखा गया।

जस्टिस अजय भनोट ने कहा,

"पक्षों के बीच निजी अनुबंध जिसमें मध्यस्थ की नियुक्ति की बात की जाती है और वे मामले जहां वैधानिक मध्यस्थों की नियुक्ति कानून के तहत की जाती है, दो अलग-अलग श्रेणियों में आते हैं।"

तदनुसार, न्यायालय ने एडिशनल जिला जज के उस आदेश बरकरार रखा, जिसमें मामले को मध्यस्थ के पास वापस भेज दिया गया।

केस टाइटल: भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण बनाम द्वारिकेश शुगर इंडस्ट्रीज लिमिटेड और अन्य

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