व्हाट्सएप ने उपभोक्ता शिकायत को बनाए रखने योग्य ठहराने वाले यूपी राज्य आयोग के आदेश के खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्ट का किया रुख
मेटा के स्वामित्व वाले इंस्टेंट मैसेजिंग ऐप व्हाट्सएप ने हाल ही में उत्तर प्रदेश राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग (UPSCDRC) द्वारा पारित उस आदेश को इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती दी है जिसमें यह कहा गया कि चूंकि व्हाट्सएप भारत में अपने उपयोगकर्ताओं को 'सेवाएं' प्रदान करता है, इसलिए उसके खिलाफ उपभोक्ता शिकायत बनाए रखने योग्य है।
संविधान के अनुच्छेद 227 के तहत दायर याचिका में व्हाट्सएप ने तर्क दिया कि उसके खिलाफ उपभोक्ता शिकायत बनाए नहीं रखी जा सकती, क्योंकि यह ऐप निःशुल्क है। उसके 'उपयोगकर्ता' कंपनी को कोई विवेकाधीन भुगतान' नहीं करते। इस कारण व्यक्ति उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 के तहत सेवा का उपभोक्ता नहीं कहा जा सकता।
दूसरे शब्दों में व्हाट्सएप का दावा है कि चूंकि वह सभी को निःशुल्क सेवाएं देता है। इसलिए उसके उपयोगकर्ता 2019 अधिनियम की परिभाषा के अनुसार उसके 'उपभोक्ता' नहीं हैं। इस अधिनियम के तहत कोई शिकायत बनाए रखने योग्य नहीं है।
याचिका में यह भी जोड़ा गया कि 2019 का अधिनियम केवल उन्हीं वस्तुओं और सेवाओं पर लागू होता है, जो भुगतान के आधार पर ली जाती हैं और अधिनियम “सेवा” की परिभाषा में निःशुल्क सेवाओं को स्पष्ट रूप से बाहर करता है जैसा कि व्हाट्सएप के साथ है जो मुफ्त में इस्तेमाल किया जाता है।
याचिका में तर्क दिया गया
“यह निर्विवाद है कि प्रतिवादी (शिकायतकर्ता) ने व्हाट्सएप सेवा का उपयोग करने के लिए कोई भुगतान नहीं किया, जिससे उसे कानूनन उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के तहत दावा करने से रोका जाता है। वास्तव में यह विधि रूप से स्पष्ट है कि निःशुल्क सेवाएं CPA के दायरे में नहीं आतीं, जिसने सेवा के बदले कोई मूल्य नहीं चुकाया वह 'उपभोक्ता' नहीं है।”
प्रसंगवश विवादित आदेश रिटायर IPS अधिकारी और वर्तमान में आज़ाद अधिकार सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमिताभ ठाकुर द्वारा दायर दो अपीलों पर पारित किया गया, जो लखनऊ जिला आयोग के आदेशों को चुनौती दे रहे थे जिसमें उनकी शिकायत को खारिज कर दिया गया।
अमिताभ ठाकुर का मामला मूलतः यह था कि उनकी व्हाट्सएप सेवा 6 घंटे के लिए अनावश्यक रूप से बाधित की गई। इस प्रकार व्हाट्सएप की सेवा शर्तों का उल्लंघन हुआ।
लखनऊ जिला उपभोक्ता मंच में शिकायत करते हुए ठाकुर ने मुआवजे की मांग की और कहा कि इस अवधि में उनका कार्य प्रभावित हुआ। हालांकि उनकी शिकायत यह कहते हुए खारिज कर दी गई कि व्हाट्सएप एक अंतरराष्ट्रीय कंपनी है और ठाकुर ने उसे कोई भुगतान नहीं किया अतः उपभोक्ता शिकायत स्वीकार्य नहीं है।
हालांकि, UPSCDRC ने अपने आदेश में यह माना कि व्हाट्सएप के खिलाफ उपभोक्ता शिकायत बनाए रखने योग्य है और जिला आयोग का आदेश रद्द करते हुए निर्देश दिया कि अपीलकर्ता की शिकायत को उपभोक्ता शिकायत के रूप में दर्ज किया जाए और 2019 अधिनियम के तहत निर्धारित 90 दिनों की अवधि में निर्णय सुनाया जाए।
व्हाट्सएप की याचिका में यह भी कहा गया कि जब जिला आयोग के पास इस शिकायत को सुनने का अधिकार ही नहीं है, तब UPSCDRC का यह आदेश कि वह इस शिकायत को सुने, 'अधिकार क्षेत्र का अनुचित प्रयोग' है।
याचिका में आगे यह भी कहा गया कि विवादित आदेश प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन करता है, क्योंकि यह 'मन का उचित प्रयोग नहीं दर्शाता', इसके पीछे 'पर्याप्त कारण' नहीं दिए गए हैं और यह 'संक्षिप्त और अस्पष्ट' है।
याचिका में यह भी तर्क दिया गया कि UPSCDRC ने यह जो टिप्पणी की कि व्हाट्सएप उपयोगकर्ता 'उपभोक्ता' हैं, क्योंकि व्हाट्सएप का उद्देश्य ग्राहकों को आकर्षित करना है, वह कानून में कहीं आधारित नहीं है।
याचिका में कहा गया,
"इस निष्कर्ष का समर्थन करने वाला कानून में कोई आधार नहीं है। वास्तव में, यदि राज्य आयोग के इस निष्कर्ष को स्वीकार किया जाए तो 'उपभोक्ता' की परिभाषा ही निरर्थक हो जाएगी हर व्यक्ति या कंपनी जिसका उद्देश्य ग्राहकों को आकर्षित करना है, वह CPA के अधीन आ जाएगी, भले ही वह केवल निःशुल्क सेवाएं ही क्यों न दे।”