निष्पक्ष जांच आवश्यक : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मोहम्मद जुबैर के खिलाफ FIR रद्द करने से किया इनकार, गिरफ्तारी पर रोक बरकरार

Update: 2025-05-22 12:21 GMT

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने Alt News के सह-संस्थापक मोहम्मद जुबैर के खिलाफ उनके 'X' (पूर्व में ट्विटर) पोस्ट्स को लेकर दर्ज FIR रद्द करने से इनकार कर दिया। ये पोस्ट्स यति नरसिंहानंद के आपत्तिजनक भाषण से संबंधित थे।

हालांकि कोर्ट ने जांच के दौरान जुबैर की गिरफ्तारी पर अंतरिम रोक को बरकरार रखा है।

जस्टिस सिद्धार्थ वर्मा और जस्टिस डॉ. योगेंद्र कुमार श्रीवास्तव की खंडपीठ ने यह आदेश पारित किया और कहा कि मामले में निष्पक्ष जांच आवश्यक है।

कोर्ट ने जुबैर को निर्देश दिया कि जांच पूरी होने तक वह देश छोड़कर न जाएं।

जुबैर के खिलाफ गाज़ियाबाद पुलिस ने अक्टूबर 2024 में FIR दर्ज की थी, जिसमें उन पर धार्मिक समुदायों के बीच दुश्मनी फैलाने का आरोप लगाया गया था। यह शिकायत विवादास्पद संत यति नरसिंहानंद के एक सहयोगी द्वारा दर्ज कराई गई थी।

बाद में इस FIR में भारतीय न्याय संहिता की धारा 152 (भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता को खतरे में डालने वाला कृत्य) जोड़ी गई थी।

जुबैर का पक्ष था कि उन्होंने 3 अक्टूबर को यति नरसिंहानंद के भाषण से संबंधित वीडियो की एक श्रृंखला पोस्ट की, जिसका उद्देश्य उनकी उकसाने वाली टिप्पणियों को उजागर करना और पुलिस से कार्रवाई की मांग करना था।

वहीं शिकायतकर्ता उदीता त्यागी का आरोप है कि जुबैर ने यति के पुराने वीडियो क्लिप्स शेयर कर जानबूझकर हिंसा भड़काने की कोशिश की, जिससे गाज़ियाबाद के डासना देवी मंदिर पर विरोध प्रदर्शन हुए।

उत्तर प्रदेश सरकार ने अदालत में दलील दी कि जुबैर ने सोशल मीडिया पर एक कथानक (narrative) तैयार किया और लोगों को उकसाने का प्रयास किया।

उनके पोस्ट्स के समय को लेकर भी सवाल उठाए गए और कहा गया कि उन्होंने आग में घी डालने का काम किया।

सरकार की ओर से यह भी कहा गया कि जुबैर के पोस्ट्स आधे-अधूरे तथ्यों पर आधारित थे। इनसे भारत की संप्रभुता और अखंडता को खतरा पैदा हुआ।

जुबैर का कहना था कि उन्होंने ये पोस्ट्स एक फैक्ट चेकर के रूप में अपनी पेशेवर जिम्मेदारी के तहत किए और ये भारतीय न्याय संहिता या भारतीय दंड संहिता के किसी अपराध के अंतर्गत नहीं आते।

उनका यह भी कहना था कि वे केवल अपने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उपयोग कर रहे थे और इसी विषय पर कई मीडिया रिपोर्ट्स और सोशल मीडिया पोस्ट्स पहले से मौजूद थीं।

सुनवाई के दौरान कोर्ट की टिप्पणियां

सरकार की आलोचना अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हिस्सा है, न्यायपालिका की भी आलोचना हो सकती है।”

“क्या नागरिक की असंतुष्टि को देशविरोधी गतिविधि माना जा सकता है?”

“अगर शिकायत थी तो FIR क्यों नहीं की? सोशल मीडिया पर पोस्ट कर समाज में वैमनस्य क्यों फैलाया?”

जुबैर कोई खूंखार अपराधी नहीं हैं।”

कोर्ट ने 6 जनवरी तक गिरफ्तारी पर रोक जारी रखी।

टाइटल: मोहम्मद जुबैर बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (Narsinghanand केस)

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