इलाहाबाद हाइकोर्ट ने फर्जी दस्तावेजों के आधार पर नियुक्ति रद्द करने को सही ठहराया, कहा- किसी सहानुभूति का हकदार नहीं

Update: 2024-01-12 07:49 GMT

इलाहाबाद हाइकोर्ट ने प्राथमिक विद्यालय के शिक्षक की नियुक्ति रद्द करने को बरकरार रखा, क्योंकि यह फर्जी दस्तावेजों पर आधारित थी।

जस्टिस सौरभ श्याम शमशेरी की पीठ ने कहा

"याचिकाकर्ता जैसा व्यक्ति, जिसने जाली शैक्षणिक दस्तावेजों के आधार पर शिक्षक के रूप में नियुक्ति हासिल की है, किसी भी सहानुभूति का हकदार नहीं हो सकता है। उसके साथ सख्ती से निपटने की आवश्यकता है।"

अदालत ने आगे कहा,

“यह अच्छी तरह से पता है कि धोखाधड़ी सभी गंभीर कार्यों को ख़राब कर देती है। याचिकाकर्ता ने ऐसा कोई दस्तावेज़ प्रस्तुत नहीं किया, जो जांच अधिकारी के साथ-साथ अनुशासनात्मक प्राधिकारी द्वारा दिए गए निष्कर्षों का खंडन कर सके कि याचिकाकर्ता द्वारा अपनी नियुक्ति के समय जाली शैक्षिक दस्तावेज़ दिए गए।”

तदनुसार, न्यायालय ने माना कि जांच रिपोर्ट प्रस्तुत न करना महज अनियमितता है, कोई अवैधता नहीं, जिससे याचिकाकर्ता को कोई पूर्वाग्रह हो।

पूरा मामला

याचिकाकर्ता को 2005 में प्राथमिक विद्यालय हरनाही चकरवा बहोरदास, जिला देवरिया में सहायक अध्यापक के रूप में नियुक्त किया गया। बाद में 2008 में हेडमास्टर के रूप में प्रमोशन मिला। 2015 में शिकायत के आधार पर कि याचिकाकर्ता की नियुक्ति जाली शैक्षिक दस्तावेजों पर आधारित है जांच शुरू की गई।

जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी, देवरिया के कार्यालय ने दस्तावेजों का सत्यापन किया और कोई अस्पष्टता नहीं मिली। इसके बाद दस्तावेजों को आगे सत्यापन के लिए भेज दिया गया।

याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि भले ही दस्तावेजों में कोई अस्पष्टता नहीं पाई गई, लेकिन जांच आगे बढ़ी और 2022 में याचिकाकर्ता के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई। यह तर्क दिया गया कि हालांकि आरोप पत्र उन्हें दिया गया, जिन दस्तावेजों के आधार पर आरोप लगाए गए, उसे आपूर्ति नहीं की गई।

आगे यह तर्क दिया गया कि क्योंकि याचिकाकर्ता की नियुक्ति रद्द करने का आदेश उसे जांच रिपोर्ट की प्रति दिए बिना पारित किया गया। यह प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन है और इसे रद्द किया जाना चाहिए।

इसके विपरीत, उत्तरदाताओं के वकील ने तर्क दिया कि हालांकि याचिकाकर्ता को कई नोटिस जारी किए गए, लेकिन उन्होंने कभी भी पूछे गए प्रश्नों का उत्तर नहीं दिया। तदनुसार, जांच आगे बढ़ी और पुलिस रिपोर्ट के आधार पर आरोप सिद्ध पाए गए।

हाईकोर्ट का फैसला

अदालत ने कहा कि यह दोहरे खतरे का मामला नहीं है, क्योंकि जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी देवरिया की दस्तावेजों को असली बताने वाली रिपोर्ट अंतिम नहीं है, क्योंकि जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी, देवरिया ने दस्तावेजों को आगे के सत्यापन के लिए भेज दिया। इसलिए यह माना गया कि याचिकाकर्ता दोहरे खतरे का दावा नहीं कर सकता।

अदालत ने पाया कि याचिकाकर्ता का सही नहीं है और इसमें आरोप पत्र और उसे जारी किए गए नोटिस में पूछे गए सवालों का कोई जवाब नहीं दिया गया। वहीं अदालत ने यह भी देखा कि उ.प्र. सरकारी सेवक (अनुशासन एवं अपील) नियम, 1999 9(4) का पालन नहीं किया गया।

उत्तर प्रदेश का नियम सरकारी सेवक (अनुशासन और अपील) नियम 1999 के नियम 9(4) में प्रावधान है कि यदि नियम 3 में कोई जुर्माना लगाने की मांग की जाती है तो जांच रिपोर्ट और अनुशासनात्मक प्राधिकरण के निष्कर्षों की एक प्रति सरकारी सेवक को प्रदान की जानी चाहिए।

कोर्ट ने कहा,

“उपरोक्त परिस्थितियों में इस न्यायालय को इस बात पर विचार करना होगा कि ऐसे मामले में जब याचिकाकर्ता आरोप पत्र के साथ-साथ विशिष्ट प्रश्नों का उत्तर देने में विफल रहा है, जैसा कि ऊपर बताया गया। यह भी कि रिट याचिका भी उपरोक्त प्रश्नों पर चुप है, क्या जांच रिपोर्ट की प्रति उपलब्ध न कराने से उन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा, जबकि उनके खिलाफ जाली दस्तावेज बनाने के आरोप साबित हो चुके हैं। साथ ही इस संबंध में उनके खिलाफ एक प्रथम सूचना रिपोर्ट भी दर्ज की गई, जिसमें याचिकाकर्ता के अनुसार जांच लंबित है।”

कोर्ट ने राजस्थान राज्य विद्युत प्रसारण निगम लिमिटेड और अन्य बनाम अनिल कंवरिया (2021) और इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन लिमिटेड बनाम राजेंद्र डी. हरमलकर (2022) पर भरोसा किया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भरोसे का सवाल तब आता है, जब कर्मचारी फर्जी दस्तावेजों के आधार पर नौकरी हासिल की थी। ऐसे मामलों में बर्खास्तगी की सजा बरकरार रखी गई।

अदालत ने पाया कि रिट याचिका के चरण सहित कार्यवाही के किसी भी चरण में याचिकाकर्ता ने जांच अधिकारी और अनुशासनात्मक प्राधिकारी के निष्कर्षों का खंडन करने के लिए रिकॉर्ड पर कोई दस्तावेज नहीं लाया कि उसने जाली दस्तावेजों के आधार पर नियुक्ति प्राप्त की। न्यायालय ने माना कि याचिकाकर्ता जांच रिपोर्ट न देने के कारण हुए किसी भी पूर्वाग्रह को प्रदर्शित करने में विफल रहा।

तदनुसार, रिट याचिका खारिज कर दी गई।

केस टाइटल- शिव कुमार मिश्रा बनाम यूपी राज्य और अन्य।


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