विभागीय कार्यवाही में आरोपी को दोषमुक्त किए जाने पर उसी आरोप पर आपराधिक अभियोजन जारी नहीं रह सकता: इलाहाबाद हाईकोर्ट

Update: 2024-10-07 06:06 GMT

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दोहराया कि यदि किसी आरोपी को आरोपों के असंतुलित पाए जाने के बाद अनुशासनात्मक कार्यवाही में दोषमुक्त और निर्दोष पाया जाता है तो समान आरोपों के आधार पर आपराधिक अभियोजन जारी रखने की अनुमति नहीं दी जा सकती।

जस्टिस सौरभ लवानिया की पीठ ने तर्क दिया कि आपराधिक मामलों में कार्यवाही का मानक उचित संदेह से परे है, जो कि अनुशासनात्मक कार्यवाही में आवश्यक सबूत के मानक, संभावना की प्रबलता से कहीं अधिक है।

न्यायालय ने आगे कहा,

"जब वही गवाह अनुशासनात्मक कार्यवाही में समान आरोपों को साबित करने में सक्षम नहीं हो सकते तो आपराधिक कार्यवाही में मुकदमा चलाने का कोई उद्देश्य नहीं है, जहां दोष साबित करने के लिए आवश्यक सबूत का मानक विभागीय कार्यवाही में दोष साबित करने के लिए आवश्यक सबूत के मानक से कहीं अधिक है।"

संक्षेप में मामला न्यायालय ने आरोपी जगदीश सिंह उर्फ जगदीश कुमार सिंह द्वारा धारा 323, 504, 506, 307, 332, 353, 188, 270 आईपीसी के तहत दर्ज मामले में आरोप मुक्त करने की मांग करते हुए ये टिप्पणियां कीं है, जिसमें कथित तौर पर लॉकडाउन दिशानिर्देशों का उल्लंघन करने और पुलिसकर्मियों के साथ दुर्व्यवहार और मारपीट करने का आरोप लगाया गया था।

मामले में जांच के बाद आरोपी जगदीश सिंह (जो उस समय हाईकोर्ट में सहायक समीक्षा अधिकारी के रूप में कार्यरत थे) के खिलाफ आरोप पत्र दायर किया गया था हालांकि, इस पर संज्ञान लिए जाने से पहले ही उसे मजिस्ट्रेट, रजिस्ट्रार जनरल ऑफ हाईकोर्ट द्वारा पारितआदेश के तहत निलंबित कर दिया गया। उसके बाद उसके खिलाफ आरोप पत्र जारी कर विभागीय जांच शुरू कर दी गई।

महत्वपूर्ण बात यह है कि आपराधिक मामले में प्रस्तुत 14 जुलाई, 2020 की चार्जशीट और अनुशासनात्मक कार्यवाही करने के लिए जारी चार्जशीट में उसके खिलाफ लगाए गए आरोपों को साबित करने के लिए एक जैसे आरोप और गवाह शामिल थे।

आरोपों और रिकॉर्ड पर उपलब्ध संपूर्ण साक्ष्यों पर उचित विचार करने के बाद जांच अधिकारी की रिपोर्ट के अनुसार, हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल ने 13 जुलाई, 2021 को आवेदक को अनुशासनात्मक कार्यवाही में उसके खिलाफ लगाए गए आरोपों से मुक्त कर दिया। बाद में उसका निलंबन भी रद्द कर दिया गया।

अदालत के समक्ष याचिकाकर्ता का मुख्य तर्क यह था कि चूंकि उसे विभागीय कार्यवाही में दोषमुक्त कर दिया गया था, जो समान आरोपों पर आधारित थी जिन पर एफआईआर दर्ज की गई थी इसलिए आपराधिक मामला रद्द किया जाना चाहिए।

एकल न्यायाधीश ने लोकेश कुमार जैन बनाम राजस्थान राज्य और राधेश्याम केजरीवाल बनाम पश्चिम बंगाल राज्य और अन्य के मामलों में सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों पर भरोसा किया, जिसमें यह देखा गया कि विभागीय कार्यवाही में दोषमुक्ति के मामले में जहां गुण-दोष के आधार पर आरोप बिल्कुल भी टिकने योग्य नहीं पाया जाता है। व्यक्ति को निर्दोष माना जाता है तो तथ्यों और परिस्थितियों के एक ही सेट पर आपराधिक अभियोजन को जारी रखने की अनुमति नहीं दी जा सकती है।

न्यायालय ने आशू सुरेन्द्रनाथ तिवारी (सुप्रा) बनाम पुलिस उपाधीक्षक, ईओडब्ल्यू, सीबीआई और अन्य के मामले में सुप्रीम कोर्ट के हाल के निर्णय का भी उल्लेख किया, जिसमें उसी अवलोकन को दोहराया गया था।

इस पृष्ठभूमि के खिलाफ यह देखते हुए कि आवेदक के खिलाफ आरोपों की विश्वसनीयता और वास्तविकता पहले ही अनुशासनात्मक कार्यवाही के दौरान परखी जा चुकी है। आवेदक को अदालत द्वारा गवाहों के बयानों को देखने के बाद दोषमुक्त कर दिया गया, जो आपराधिक कार्यवाही में समान आरोपों को साबित करेंगे अदालत ने पूरी आपराधिक कार्यवाही रद्द की और आवेदन स्वीकार कर लिया गया।

केस टाइटल - जगदीश सिंह @ जगदीश कुमार सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य से लेकर प्रधान सचिव गृह लोक सेवा आयोग और अन्य

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