वादीगण देरी की रणनीति का सामना कर रहे हैं: इलाहाबाद हाइकोर्ट ने मामले के निर्णय में लापरवाह दृष्टिकोण पर न्यायिक अधिकारियों से जवाब मांगा
इलाहाबाद हाइकोर्ट ने हाल ही में जिला एवं सेशन कोर्ट, लखनऊ और स्पेशल जज, NI Act, लखनऊ से यह बताने के लिए कहा कि वे हाइकोर्ट द्वारा अपने दो आदेशों में निर्धारित समय अवधि के भीतर परक्राम्य लिखत अधिनियम के तहत एक मामले का निर्णय करने में क्यों विफल रहे।
जस्टिस शमीम अहमद की पीठ ने कहा कि निचली अदालत जिसके समक्ष NI Act के तहत वर्तमान मामले की सुनवाई 2014 से लंबित थी और हाइकोर्ट की समन्वय पीठ द्वारा जारी दो आदेशों (मार्च 2020 और अक्टूबर 2023 में) के बावजूद मामले का निर्णय नहीं किया था।
न्यायालय ने कहा कि निचली अदालत सुनवाई से बचने और अपना बोझ दूसरों पर डालने के लिए लंबी तारीखें तय कर रही है।
न्यायालय ने सख्त टिप्पणी करते हुए डिस्ट्रिक्ट एवं सेशन जज लखनऊ और स्पेशल जज, NI Act लखनऊ द्वारा हाइकोर्ट के आदेशों को लापरवाही से लेने के लापरवाह रवैये पर सवाल उठाया।
न्यायालय ने कहा,
"इस न्यायालय का यह भी मानना है कि स्पेशल जज NI Act लखनऊ का कामकाज बहुत ही लापरवाह प्रतीत होता है और उन्होंने मामले का फैसला करने से भी परहेज किया। न्याय पाने के लिए इस न्यायालय के समक्ष आने वाले वादी, निचली अदालतों द्वारा अपनाई गई देरी की रणनीति का सामना कर रहे हैं।"
अनिवार्य रूप से हाइकोर्ट ने पहले डिस्ट्रिक्ट एवं सेशन जज को 2014 से लंबित मुकदमे की प्रगति की निगरानी करने का निर्देश दिया था। यह देखते हुए कि डिस्ट्रिक्ट एवं सेशन जज ने हाइकोर्ट के आदेश पर ध्यान नहीं दिया
न्यायालय ने इस प्रकार टिप्पणी की,
“डिस्ट्रिक्ट एवं सेशन जज लखनऊ ने मामले पर ध्यान नहीं दिया और मामले को वर्तमान पीठासीन अधिकारी से उसी जिले की दूसरी अदालत में स्थानांतरित करने के आवेदक के ट्रांसफर आवेदन को खारिज कर दिया जो कि जिला एवं सत्र न्यायाधीश लखनऊ द्वारा अपनाया गया एक बहुत ही लापरवाह दृष्टिकोण है।"
इसे देखते हुए हाइकोर्ट ने डिस्ट्रिक्ट एंव सेशन जज लखनऊ से स्पष्टीकरण मांगा कि उन्होंने अक्टूबर 2023 को इस न्यायालय की समन्वय पीठ द्वारा पारित आदेश के बावजूद मामले की सुनवाई की निगरानी क्यों नहीं की।
इसके अलाव न्यायालय ने स्पेशल जज, NI Act लखनऊ के न्यायाधीश से पूछा गया कि इस मामले की कार्यवाही अभी लंबित है, जिससे यह स्पष्ट किया जा सके कि इस न्यायालय की समन्वय पीठ द्वारा मार्च 2020 और अक्टूबर 2023 को पारित दो आदेशों के बावजूद मामले का फैसला अभी तक क्यों नहीं किया गया।
अदालत मुख्य रूप से महमूद अहमद सिद्दीकी द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी। उक्त याचिका में NI Act के मामले को लखनऊ की दूसरी अदालत में स्थानांतरित करने की मांग की गई।
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि मार्च 2020 में समन्वित पीठ ने ट्रायल कोर्ट को तीन महीने के भीतर मामले का फैसला करने का निर्देश दिया। हालांकि, मामले का फैसला हाइकोर्ट के निर्देश के अनुसार नहीं किया गया था, इसलिए याचिकाकर्ता ने 2023 में फिर से हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
अक्टूबर 2023 में हाईकोर्ट ने फिर से ट्रायल कोर्ट को तीन महीने के भीतर मामले का फैसला करने का निर्देश दिया। इस बार कोर्ट ने जिला और सत्र न्यायाधीश को मुकदमे की प्रगति की निगरानी करने के लिए भी कहा। हालांकि, जैसा कि कोर्ट ने अपने आदेश में कहा, जिला और सत्र न्यायाधीश ने HC के आदेश पर ध्यान नहीं दिया।
मामले के त्वरित निपटारे के आदेशों का पालन न करने तथा डिस्ट्रिक्ट एवं सेशन जज लखनऊ द्वारा मुकदमे की निगरानी करने में विफल रहने को देखते हुए हाईकोर्ट ने न्यायिक अधिकारियों को 29 मई से पहले हाईकोर्ट में अपना स्पष्टीकरण दाखिल करने का आदेश दिया।
केस टाइटल- महमूद अहमद सिद्दीकी बनाम न्यायालय विशेष न्यायाधीश NI Act, लखनऊ तथा अन्य