'अपमानजनक भाषा': इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 'कायर-पीएम मोदी' और 'नरेंद्र-सरेंडर' टिप्पणी मामले में आरोपी को राहत देने से किया इनकार
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मंगलवार को 24 वर्षीय व्यक्ति द्वारा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर कथित सोशल मीडिया पोस्ट के लिए उसके खिलाफ दर्ज FIR के खिलाफ दायर याचिका खारिज किया। यह पोस्ट चार दिनों तक चले सैन्य टकराव के बाद 10 मई, 2025 को भारत-पाकिस्तान युद्ध विराम समझौते के बाद की गई थी।
हालांकि याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि कथित पोस्ट भावनाओं में बहकर की गई, लेकिन जस्टिस जेजे मुनीर और जस्टिस अनिल कुमार-एक्स की खंडपीठ ने इस दलील को खारिज करते हुए इस प्रकार टिप्पणी की:
"याचिकाकर्ता द्वारा प्रधानमंत्री के खिलाफ युद्ध से दूर रहने के फैसले आदि के बारे में लिखी गई पोस्ट में सरकार के मुखिया के खिलाफ अपशब्दों का इस्तेमाल किया गया... भावनाओं को इस हद तक बहने नहीं दिया जा सकता कि देश के संवैधानिक अधिकारियों को अपमानजनक शब्दों के इस्तेमाल से बदनाम किया जाए।"
इसके अलावा, न्यायालय ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करते हुए आरोपित FIR में हस्तक्षेप करना उचित मामला नहीं है। इस प्रकार उनकी याचिका खारिज कर दी गई।
बता दें, याचिकाकर्ता (अजीत यादव) पर भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 352 [शांति भंग करने के इरादे से जानबूझकर अपमान करना], 152 [भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता को खतरे में डालने वाला कृत्य], 196 (1) [विभिन्न समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देना], 353 (2) [सार्वजनिक शरारत के लिए प्रेरित करने वाले बयान] के तहत फेसबुक पर उनके द्वारा किए गए तीन कथित पोस्ट के लिए FIR दर्ज है।
कथित सोशल मीडिया पोस्ट में 24 वर्षीय व्यक्ति ने कथित तौर पर प्रधानमंत्री के लिए कई अपमानजनक शब्दों का इस्तेमाल किया। उसने पीएम को 'हिजड़ा' और 'कायर' कहा, हाल ही में पाकिस्तान के साथ सैन्य गतिरोध के दौरान 'पीछे हटने' और 'पीछे हटने' के लिए उनकी आलोचना की।
इसके अतिरिक्त, FIR के अनुसार, उन्होंने प्रधानमंत्री का मजाक उड़ाते हुए कहा, 'नाम नरेंद्र, काम सरेंडर'।