इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 4 वर्षीय बच्ची के यौन उत्पीड़न के आरोपी व्यक्ति को जमानत देने से इनकार किया
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में 4 वर्षीय बच्ची के यौन उत्पीड़न के आरोपी व्यक्ति को जमानत देने से इनकार किया। कोर्ट ने कहा कि पीड़िता ने धारा 161 और 164 सीआरपीसी के तहत दर्ज अपने बयान में अभियोजन पक्ष की कहानी का समर्थन किया।
अपने आदेश में न्यायालय ने यह भी कहा कि बलात्कार जघन्य अपराध है। इस प्रकार के मामले हमारे समाज में दिन-प्रतिदिन बढ़ रहे हैं, भले ही हमारे देश में छोटी बच्चियों की पूजा की जाती है।
जस्टिस शेखर कुमार यादव की बेंच ने कहा,
“न्यायालय ने बार-बार कहा कि इस प्रकार का कृत्य न केवल पीड़िता के खिलाफ अपराध है, बल्कि यह समाज के खिलाफ भी अपराध है। यह पीड़ितों के मौलिक अधिकारों, मुख्य रूप से भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 में निहित जीवन के अधिकार का भी उल्लंघन करता है। ऐसे में अगर सही समय पर कोर्ट से सही फैसला नहीं लिया गया तो पीड़ित/आम आदमी का भरोसा न्याय व्यवस्था पर नहीं रह जाएगा।”
कोर्ट अहसान की जमानत याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिस पर आईपीसी की धारा 363, 376 और 511 और POCSO Act की धारा 9एम, 9यू/10 के तहत मामला दर्ज किया गया। एफआईआर के मुताबिक 21 अप्रैल 2024 को आरोपी पीड़िता को जबरदस्ती उठाकर ले गया। पीड़िता का पिता उसे ढूंढने निकल गया। कुछ देर बाद वह आरोपी के पास मिली और उसके कपड़े फटे हुए थे। उसके गाल, पीठ, कमर और मुंह पर कट के निशान थे। बच्ची कथित तौर पर बेहोशी की हालत में थी। उसके साथ दुष्कर्म का प्रयास भी किया गया। पीड़िता को देखकर आरोपी मौके से भाग गया। बाद में आरोपी को पुलिस ने (मई 2024 में) गिरफ्तार कर लिया।
मामले में जमानत की मांग करते हुए आरोपी की ओर से पेश वकील ने हाईकोर्ट के समक्ष तर्क दिया कि आरोपी को इस मामले में झूठा फंसाया गया। उसने कभी भी ऐसा कोई अपराध नहीं किया, जैसा कि आरोपित प्राथमिकी में आरोप लगाया गया। यह भी तर्क दिया गया कि कथित घटना का कोई प्रत्यक्षदर्शी गवाह अभियोजन पक्ष की कहानी का समर्थन करने के लिए पेश नहीं किया गया। एफआईआर 6 दिनों की देरी से दर्ज की गई। यह भी तर्क दिया गया कि धारा 161 और 164 सीआरपीसी के तहत बयान में भौतिक विरोधाभास हैं। एफआईआर और मेडिकल रिपोर्ट का संस्करण पुष्ट नहीं है, जो पूरी अभियोजन कहानी में गंभीर संदेह पैदा करता है।
दूसरी ओर, राज्य की ओर से पेश एजीए ने आवेदक को जमानत देने की प्रार्थना का विरोध करते हुए तर्क दिया कि पीड़ित लगभग चार साल की नाबालिग बच्ची है। यह भी प्रस्तुत किया गया कि आरोपी-आवेदक द्वारा किया गया कृत्य, जैसा कि एफआईआर में उल्लेख किया गया है, जघन्य अपराध है। आवेदक अपराधी है, जिसका पिछले चार मामलों का आपराधिक इतिहास है। अंत में, यह तर्क दिया गया कि आवेदक को गलत तरीके से फंसाने का कोई कारण नहीं है। आवेदक की बेगुनाही पर प्री-ट्रायल चरण में फैसला नहीं सुनाया जा सकता।
इसके मद्देनजर, मामले के तथ्यों और परिस्थितियों के साथ-साथ पक्षों के वकील द्वारा प्रस्तुत किए गए तर्क, आरोपों की प्रकृति, आवेदक को सौंपी गई भूमिका, अपराध की गंभीरता और मामले के सभी तथ्यों और परिस्थितियों पर विचार करते हुए अदालत ने आवेदक-आरोपी को जमानत देने से इनकार कर दिया।
केस टाइटल- अहसान बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और 3 अन्य