Transfer of Property Act | एग्रीमेंट टू सेल से संपत्ति में कोई हक़ नहीं बनता: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दोहराया सिद्धांत

Update: 2025-11-19 09:22 GMT

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक बार फिर स्पष्ट किया कि ट्रांसफर ऑफ प्रॉपर्टी एक्ट (Transfer of Property Act) की धारा 54 के अनुसार एग्रीमेंट टू सेल (बिक्री का समझौता) संपत्ति में कोई हक़, स्वामित्व या हित पैदा नहीं करता। अदालत ने कहा कि ऐसा समझौता केवल उस अधिकार को जन्म देता है, जिसके आधार पर भविष्य में विधिवत पंजीकृत सेल डीड हासिल की जा सकती है, लेकिन इससे संपत्ति पर कोई कानूनी स्वामित्व नहीं मिलता।

जस्टिस मनोज कुमार निगम ने सुप्रीम कोर्ट के महत्वपूर्ण फैसलों स्टेट ऑफ यूपी बनाम डिस्ट्रिक्ट जज तथा रंभाई मंडेओ गजरे बनाम नारायण बापूजी दोत्रा का हवाला देते हुए यह अंतर स्पष्ट किया कि एग्रीमेंट टू सेल और सेल डीड मूलतः अलग-अलग विधिक प्रभाव रखते हैं।

अदालत ने कहा,

“बिक्री का अनुबंध अपने आप में संपत्ति पर कोई हित या भार उत्पन्न नहीं करता। यह केवल व्यक्तिगत अधिकार (राइट इन पर्सोनम) पैदा करता है, न कि संपत्ति पर कोई वास्तविक अधिकार (राइट इन रेम)।”

विवाद का पृष्ठभूमि

विवादित संपत्ति वादी के पिता की मृत्यु के बाद उनकी माता के नाम चली गई। वादी का दावा कि संपत्ति माता-पिता दोनों की संयुक्त थी, इसलिए उसने वर्ष 2020 में बंटवारे (पार्टिशन) की वाद दायर की।

इसी दौरान प्रतिवादी नंबर 4 और 5 ने इस आधार पर स्वयं को पक्षकार बनाए जाने का आवेदन दिया कि वादी की माता ने उनके पक्ष में एग्रीमेंट टू सेल किया। ट्रायल कोर्ट ने आवेदन स्वीकार कर लिया, जिसके विरुद्ध वादी हाईकोर्ट पहुंचा।

हाईकोर्ट ने स्पष्ट कहा कि एग्रीमेंट टू सेल से प्रतिवादियों को संपत्ति में कोई हित प्राप्त नहीं हुआ और न ही वह इस वाद में आवश्यक पक्षकार हैं।

अदालत ने कहा,

“एग्रीमेंट टू सेल और सेल दोनों में मौलिक अंतर है। बिक्री समझौते की स्थिति में संपत्ति का टाइटल अब भी विक्रेता के पास रहता है, जबकि पूर्ण बिक्री होने पर ही टाइटल खरीदार को हस्तांतरित होता है। एग्रीमेंट टू सेल केवल एक भावी अनुबंध है न कि संपन्न बिक्री।”

हाईकोर्ट ने बीबी जुबैदा खातून बनाम नबी हसन साहब के फैसले का उल्लेख करते हुए कहा कि भारतीय कानून अंग्रेजी कानून की तरह इक्विटेबल एस्टेट्स को मान्यता नहीं देता, इसलिए बिक्री का अनुबंध संपत्ति में कोई इक्विटी ओनरशिप नहीं बना सकता।

अदालत ने अंत में निर्णय दिया कि प्रतिवादी नंबर 4 और 5 इस वाद में सही पक्षकार नहीं हैं और उनका आवेदन त्रुटिपूर्ण है। इस प्रकार संशोधन याचिका (रीविजन) स्वीकार कर ली गई।

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