महिलाएँ यह नहीं चाहती हैं कि उनकी पूजा हो पर वे चाहती हैं कि उन्हें आज़ादी, सुरक्षा और आराम मिले : बॉम्बे हाईकोर्ट
बॉम्बे हाईकोर्ट के एक सॉफ़्टवेयर इंजीनियर को एक लड़की का बलात्कार करने और बाद में उसकी हत्या करने के लिए मौत की सज़ा सुनाई है। सज़ा सुनाते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट ने महिलाओं की सुरक्षा और हिफ़ाज़त पर बल दिया।
हाईकोर्ट ने 23 वर्षीय सॉफ़्टवेयर इंजीनियर चन्द्रभान सदन सनप की मौत की सज़ा को सही ठहराया। सनप आंध्र प्रदेश का है और वह टीसीएस का कर्मचारी था।उस पर एक महिला को लिफ़्ट देने और बाद में उसको एक सुनसान स्थान पर ले जाकर उसके साथ बलात्कार करने और फिर उसकी हत्या कर देने का आरोप साबित होने के बाद निचली अदालत ने सनप को मौत की सज़ा सुनाई जिसके ख़िलाफ़ हाईकोर्ट में उसने अपील की थी।
"पिछले कुछ सालों में इस देश में जहाँ महिलाओं की देवी के रूप में पूजा होती है, उनके मन में असुरक्षा और भय का वातावरण व्याप्त हो गया है। इस समय देश में जो हालात हैं, इस देश की महिलाएँ इस बात की माँग न करें कि उनकी पूजा की जाए पर वे निश्चित रूप से यह चाहेंगी कि उन्हें अपने घर के बाहर मुक्त होकर साँस लेने का अवसर मिले और सुरक्षित महसूस करे", न्यायमूर्ति भारती एच डांगरे ने इस मामले में लिखे अपने फ़ैसले में कहा।
अपराध संशोधन अधिनियम, 2013 की चर्चा करते हुए पीठ ने कहा, कि यह न्यायपालिका का कर्तव्य है कि वह क़ानून के अनुरूप न्याय करे और अपराध के अनुरूप सज़ा का प्रावधान करे।
इस मामले की सुनवाई करने वाली पीठ में न्यायमूर्ति रंजीत वी मोरे भी शामिल थे। उन्होंने कहा, "जब किसी महिला के साथ बलात्कार होता है, यह सिर्फ़ उस महिला के ख़िलाफ़ यह अपराध होता है, बल्कि यह पूरे महिला समाज पर आधिपत्य ज़माने, उनके ख़िलाफ़ हिंसा और उनकी गरिमा को पददलित करने का प्रयास होता है। जिस तरह से बलात्कार की इतनी घटनाएँ हो रही हैं और जिनका संज्ञान लिया गया है उसे देखते हुए क़ानून बनाने वालों, क़ानून को लागू करने वालों और क़ानून का संरक्षण करने वालों में एक राय बनी है कि इससे पहले कि हमारी महिलाएँ इन दयाहीन पुरुषों की बलि चढ़ें बलात्कारियों पर विशेष ध्यान देने की ज़रूरत है…सज़ा देने का अंतिम लक्ष्य ना केवल ग़लत काम करने वालों को सज़ा देना है बल्कि इस तरह की व्यवस्था भी क़ायम करनी है कि लोग इस तरह का अपराध करने से डरें। जब विधायिका ने कठोर क़ानून बनाए हैं, न्यायपालिका का काम उसको लागू करना है।"
पीठ ने कहा कि अदालतों से यह उम्मीद की जाती है कि आपराधिक न्याय प्रशासन को इस तरह संचालित करे ताकि एक इस देश में लड़कियों और महिलाओं के जीवन को सार्थक बनाया जा सके। पीठ ने कहा, "हम इस बात से अपनी नज़र नहीं मोड़ सकते कि जब हम आरोपी के अधिकारों की बात करते हैं, तो हमें यह भी ध्यान रखना है कि पीड़ित के परिवार वालों की भी अपेक्षाएँ होती हैं। महिलाओं के ख़िलाफ़ अपराध, जो कि बढ़ता ही जा रहा है, उसका हर मोर्चे पर इस तरह मुक़ाबला करने की ज़रूरत है ताकि अपराधियों के ख़िलाफ़ समाज की पुकार के अनुरूप कार्रवाई की जा सके।"