सुकमा हत्याकांड : SC ने छत्तीसगढ़ सरकार से पूछा, नंदिनी सुंदर व अन्य के खिलाफ जांच का क्या हुआ
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को छत्तीसगढ़ सरकार से सामाजिक कार्यकर्ता और दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर नंदिनी सुंदर और अन्य के खिलाफ हत्या के मामले में तीन हफ्तों में जांच की जानकारी देने के लिए कहा है।
जस्टिस एम बी लोकुर, जस्टिस एस अब्दुल नजीर और जस्टिस दीपक गुप्ता की पीठ ने राज्य सरकार को नोटिस जारी कर सुंदर और दूसरों के खिलाफ मामले में उठाए जाने वाले कदमों के बारे में रिपोर्ट दाखिल करने के निर्देश भी दिए हैं।
दरअसल छत्तीसगढ़ पुलिस ने राज्य के सुकमा जिले में एक आदिवासी व्यक्ति की कथित हत्या और आपराधिक षड्यंत्र के लिए नवंबर 2015 में सुंदर और अन्य के खिलाफ मामला दर्ज किया था। इस मामले में सुंदर के अलावा जेएनयू प्रोफेसर अर्चना प्रसाद, राजनीतिक कार्यकर्ता विनीत तिवारी और संजय पराते भी शामिल हैं।
सुंदर ने याचिका में एफआईआर से उनका नाम हटाने की मांग की है। उनका कहना है कि छत्तीसगढ़ पुलिस ने पिछले दो वर्षों में उनके खिलाफ दर्ज मामले में कुछ भी नहीं किया है।
पिछले दो वर्षों में उन्हें एक बार भी पूछताछ नहीं की गई है।
मंगलवार को सुनवाई के दौरान छत्तीसगढ़ सरकार के लिए पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि मामले में प्रगति हुई है और विभिन्न व्यक्तियों के धारा 164 सीआरपीसी के तहत बयान दर्ज कराए गए हैं।
लेकिन पीठ ने कहा कि राज्य सरकार को इस मुद्दे पर हलफनामा दाखिल करना चाहिए कि पिछले दो वर्षों से कोई कार्रवाई क्यों नहीं की गई और भविष्य में क्या कदम उठाने का प्रस्ताव है।
वहीं मेहता ने सुंदर की याचिका का विरोध किया और कहा कि एफआईआर को रद्द नहीं किया जा सकता क्योंकि मामले की जांच में प्रगति हुई है।
सुन्दर के लिए पेश वरिष्ठ वकील अशोक देसाई ने कहा कि राज्य ने पिछले दो सालों में घटना के संबंध में दर्ज FIR पर कोई कार्रवाई नहीं की है।उन्होंने कहा कि राज्य सरकार ने एफआईआर लंबित रखी है। ये अदालत के दिशानिर्देश के बावजूद किया गया है जिसमें कहा गया कि मामले के संबंध में पूछताछ से पहले सुंदर को चार सप्ताह की अग्रिम सूचना दी जानी चाहिए।
देसाई ने कहा कि जब भी उन्हें विदेश जाना पड़ता है तो समस्या का सामना करना पड़ता है क्योंकि इसका उल्लेख किया जाना पड़ता है कि उसके खिलाफ कोई एफआईआर लंबित है या नहीं।
पीठ ने देसाई से कहा, "एफआईआर से नाम को खत्म करने का मतलब है कि एफआईआर को रद्द करना और दूसरे पक्षकार को सुने बिना एफआईआर को रद्द नहीं किया जा सकता। "
वहीं पीठ ने छत्तीसगढ़ सरकार से कहा, "ऐसा नहीं हो सकता।आपने पिछले दो सालों से कुछ भी नहीं किया है। आप सिर्फ एक दिन जग नहीं सकते और नहीं कह सकते कि आप इस मामले की जांच कर रहे हैं। आप अनिश्चितकाल के लिए किसी पर लंबित एफआईआर की तलवार नहीं रख सकते। "
इसके बाद पीठ ने मामले को तीन सप्ताह के तुरंत बाद सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया।
गौरतलब है कि 15 नवंबर 2015 को सर्वोच्च न्यायालय ने छत्तीसगढ़ सरकार से मामले में सुंदर व अन्य के खिलाफ आगे बढ़ने से पहले चार सप्ताह का एडवांस नोटिस देने को कहा था।
पीठ ने राज्य सरकार द्वारा दिए गए आश्वासन को रिकॉर्ड किया था कि सुंदर और अन्य को अभी गिरफ्तार नहीं किया जाएगा और ना ही पूछताछ की जाएगी।
पीठ ने कहा था कि अगर सुंदर और अन्य से पूछताछ की कोई सूचना दी जाती है तो वो अदालत में अपील करने को स्वतंत्र हैं।
इससे पहले अदालत ने कहा था कि राज्य को नक्सल की समस्या का शांतिपूर्ण समाधान निकालना चाहिए और उनके प्रति "व्यावहारिक" दृष्टिकोण अपनाया जाना चाहिए।
दरअसल पुलिस ने दावा किया था कि कथित सशस्त्र नक्सलियों ने 4 नवंबर, 2015 की रात को तेजपुर के 450 किलोमीटर दूर नामा गांव में तेज हथियार से गांववासी शामनाथ बागेल की हत्या कर दी थी। बागेल और कुछ अन्य अप्रैल से गांव में नक्सली गतिविधियों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर रहे थे। सुंदर, अर्चना प्रसाद, तिवारी, संजय पराते और अन्य के खिलाफ बागेल की पत्नी की शिकायत के आधार पर हत्या के की प्राथमिकी दर्ज की गई थी। उन्हें IPC की धारा 120 बी (आपराधिक षड्यंत्र), 302 (हत्या), 147 (दंगा ), 148 और 149 के तहत टोंगपाल पुलिस स्टेशन में आरोपी बनाया गया था।