आवेदन के दौरान कुछ ज़रूरी दस्तावेज़ नहीं देने के कारण विदेशी फ़ैसले को लागू करने का आवेदन रद्द नहीं किया जा सकता : सुप्रीम कोर्ट [निर्णय पढ़ें]
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि किसी विदेशी फ़ैसले को लागू कराने के लिए दायर किए गए आवेदन में शुरू में अगर मध्यस्थता और सुलह अधिनियम की धारा 47 के तहत ज़रूरी दस्तावेज़ों को पेश करने की आवश्यकता को पूरा नहीं किया गया है तो इसको आधार बनाकर इस आवेदन को ख़ारिज नहीं किया जा सकता।
P.E.C. Limited vs. Austbulk Shipping SDN BHD मामले में न्यायमूर्ति एएम खानविलकर और न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव की पीठ एक आवेदन पर विचार कर रहा था जिसमें इस अधिनियम की धारा 47 के तहत एक आदेश को लागू कराए जाने को लेकर अपील की गई थी। अपील में पूछा गया था कि क्या आवेदन के साथ मध्यस्थता समझौते के मूल दस्तावेज़ नहीं सौंपे जाने के कारण इस आवेदन को खारिज किया जा सकता है या नहीं।
धारा 47 में कहा गया है कि अगर कोई पक्ष किसी विदेशी आदेश को लागू कराए जाने के लिए आवेदन करता है तो वह आवेदन के समय निम्नलिखित दस्तावेज़ पेश करेगा :
- मूल फ़ैसले की प्रति जो उस देश के नियम के तहत पूरी तरह सत्यापित हो जहाँ यह फ़ैसला दिया गया है;
- मध्यस्थता का मूल समझौता या इसकी सत्यापित प्रति;
- और ऐसा कोई दस्तावेज़ जो यह साबित करता हो कि यह एक विदेशी आदेश है।
पीठ ने कहा, “हमारी राय में, ‘पेश करेगा’ को ‘पेश किया जा सकता’ है पढ़ा जाना चाहिए।”
कोर्ट ने कहा कि अगर आवेदन के समय इसके साथ मूल समझौते की प्रति नहीं लगाई गई है तो इससे उस पक्ष पर कोई असर नहीं पड़ता है जो इस आदेश को लागू किए जाने का विरोध कर रहे हैं, उनके प्रति कोई दुर्भावना का मामला नहीं बनता है। कोर्ट ने कहा कि जहाँ तक न्यू यॉर्क परम्परा की बात है, तो अधिनयम की धारा 47 में ‘पेश करेगा’ को ‘पेश किया जा सकता है’ पढ़ा जाना चाहिए। कोर्ट ने कहा, “…अगर आदेश को लागू कराने के लिए शुरू में ही मूल आदेश को नत्थी करने की बाध्यता डाल दी गई तो न्यू यॉर्क परम्परा की भावना के यह ख़िलाफ़ होगा…”
हालाँकि, पीठ ने स्पष्ट किया कि यह ऐसा सिर्फ़ आवेदन के समय के लिए है। सिर्फ़ आवेदन के समय मूल समझौते की प्रति को पेश करना ज़रूरी नहीं है और यह व्याख्या सिर्फ़ शुरुआत के लिए है प्रक्रिया शुरू होने के बाद के लिए नहीं।
पीठ ने इस मामले में कोई फ़ैसला नहीं दिया क्योंकि इस मामले में दोनों ही पक्षों ने मध्यस्थता के दस्तावेज़ पेश किए।
पीठ ने जिस एक अन्य मामले पर ग़ौर किया वह यह था कि दोनों पक्षों के बीच वैध समझौता है कि नहीं और अगर दोनों में से किसी पक्ष ने चार्टर पार्टी पर हस्ताक्षर नहीं किए तो क्या होगा। अनुच्छेद II में ‘लिखित समझौते’ का अर्थ बहुत व्यापक है।