भीमा कोरेगांव हिंसा : बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ महाराष्ट्र सरकार पहुंची सुप्रीम कोर्ट,चार्जशीज के लिए अतिरिक्त 90 दिनों के फैसले की बहाली की मांग

Update: 2018-10-25 16:26 GMT

महाराष्ट्र के भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में महाराष्ट्र सरकार ने बॉम्बे हाईकोर्ट के उस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है जिसमें पुलिस को चार्जशीट दाखिल करने के लिए 90 दिन के अतिरिक्त मोहलत के निचली अदालत के आदेश को रद्द कर दिया था।

गुरुवार को महाराष्ट्र सरकार की ओर से निशांत कातनेश्वरकर ने चीफ जस्टिस रंजन गोगोई से इस मामले की जल्द सुनवाई का आग्रह किया। इस पर सहमति जताते हुए इसे 29 अक्तूबर के लिए सूचीबद्ध किया है।

बुधवार को ही बॉम्बे हाईकोर्ट ने कोरेगांव-भीमा हिंसा मामले में गिरफ्तार वकील सुरेंद्र गडलिंग और अन्य आरोपियों के मामले में पुणे पुलिस को   चार्जशीट दाखिल करने के लिए 90 दिन अतिरिक्त देने के आदेश को रद्द कर दिया। फैसले में जस्टिस मृदुला भाटकर ने कहा कि आरोप-पत्र दाखिल करने के लिए अतिरिक्त समय देना और गिरफ्तार लोगों की हिरासत अवधि बढ़ाने का निचली कोर्ट का आदेश गैरकानूनी है। हाईकोर्ट के इस आदेश से गडलिंग और अन्य सामाजिक कार्यकर्ताओं की जमानत पर रिहाई हो सकती थी लेकिन राज्य सरकार के अनुरोध पर जस्टिस भाटकर ने अपने आदेश पर रोक हुए इस पर सुप्रीम कोर्ट में अपील करने के लिए राज्य सरकार को एक नवंबर तक का समय दिया।

पुणे पुलिस ने गडलिंग  के अलावा प्रोफेसर शोमा सेन, दलित कार्यकर्ता सुधीर धवाले, सामाजिक कार्यकर्ता महेश राउत और केरल की रोना विल्सन को भीमा- कोरेगांव में 31 दिसंबर 2017 और एक जनवरी 2018 को हुई हिंसा के मामले में 6 जून को गिरफ्तार किया था। इसके बाद पुणे पुलिस को सितंबर तक चार्जशीट दाखिल करनी थी लेकिन इसके बाद पुलिस ने पुणे स्पेशल कोर्ट में अर्जी दाखिल कर चार्जशीट दाखिल करने के लिए 90 दिनों का अतिरिक्त समय ले लिया था।

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