सुप्रीम कोर्ट का निर्णय : प्रतिभाशाली दिव्यांग छात्र को गैर कानूनी तरीके से एमबीबीएस में प्रवेश नहीं लेने दिया,उसे अगले वर्ष प्रवेश दिया जाए [आर्डर पढ़े]
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को निर्देश दिया कि जिस अशक्त छात्र को मेधावी होने के बावजूद इस वर्ष एमबीबीएस में प्रवेश देने से मना कर दिया गया उसे अगले साल किसी सरकारी मेडिकल कॉलेज में प्रवेश दिया जाए।
न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा और न्यायमूर्ति विनीत सरन की पीठ ने निर्देश दिया कि इस वर्ष विकलांग छात्रों के लिए आरक्षित सीट को सामान्य श्रेणी को दे दिया गया इसलिए इस श्रेणी के सीटों की संख्या वर्ष 2019-2010 के अकादमिक वर्ष में कम कर दी जाए।
शारीरिक रूप से अशक्त बहुत सारे लोगों को इस वर्ष एमबीबीएस कोर्स में प्रवेश नहीं दिया गया क्योंकि कमिटी ने विशिष्ट अशक्तता के लोगों के बारे में दिशानिर्देश को जून में जारी किया। इस कमिटी को मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया ने गठित किया था।
कोर्ट उस उम्मीदवार की याचिका पर सुनवाई कर रहा था जिसको अशक्त कोटे में मेडिकल कॉलेज में प्रवेश मिलना चाहिए था पर उसको एमसीआई के सुझावों के अनुसार प्रवेश नहीं दिया गया।
अपने आदेश में कोर्ट ने पुरस्वनी आशुतोष (अवयस्क) माध्यम डॉ. कमलेश विरुमल पुरस्वनी बनाम भारत एवं अन्य मामले में अपने फैसले का उल्लेख किया और कहा कि एमसीआई के आदेश का नहीं बल्कि कानून की बात चलेगी।
इसके बाद कोर्ट ने कहा कि अपीलकर्ता को गैरकानूनी ढंग से उसके सीट से वंचित किया गया। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा,“…यद्यपि अपीलकर्ता को एमबीबीएस में प्रवेश दिये जाने का हक था, पर अब चूंकि सभी सीटें भर गई हैं, अपीलकर्ता को गैरकानूनी ढंग से प्रवेश से वंचित किया गया।
इसलिए, हम आदेश देते हैं कि अपीलकर्ता को अगले साल एमबीबीएस कोर्स में किसी सरकारी मेडिकल कॉलेज में प्रवेश दिया जाए क्योंकि अशक्त कोटे की सीट सामान्य कोटे को दे दी गई है इसलिए अगले अकादमिक वर्ष 2019-2020 में इस श्रेणी के सीटों की संख्या कम कर दी जाएगी”।
कोर्ट ने कहा कि अपीलकर्ता की अपील को स्वीकार किया जाता है। आदेश अंतिम, निर्णीत और बाध्यकारी है।