सुप्रीम कोर्ट ने सात रोहिंग्या को म्यांमार वापस भेजने के केंद्र के फैसले पर दखल देने के इनकार किया

Update: 2018-10-04 12:46 GMT

असम के सिलचर डिटेंशन सेंटर में बंद सात रोहिंग्या मुस्लिमों को म्यांमार भेजने के केंद्र सरकार के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने दखल देने से इनकार कर दिया।

गुरुवार को चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस के एम जोसेफ की बेंच ने वकील प्रशांत भूषण द्वारा दाखिल याचिका को खारिज कर दिया।

सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने याचिका का विरोध किया। केंद्र की ओर से ASG तुषार मेहता ने कहा कि वो 2012 में पकडे गए थे। वो फॉरनर्स एक्ट में दोषी करार दिए गए थे। सजा पूरी करने के बाद उन्हें सिलचल के डिटेंशन सेंटर में रखा गया था। इसके बाद MEA ने म्यांमार एबेंसी में बात की और उन्होंने माना कि ये सातों उनके नागरिक हैं। एंबेसी उनके लिए एक महीने की वैधता के लिए शिनाख्त कागजात देने को तैयार हुई। म्यांमार ने उनके कागजात तैयार किए। ASG ने कहा कि ये अर्जी सिर्फ अखबार की रिपोर्ट पर आधारित हैं और सुप्रीम कोर्ट को दखल नहीं देना चाहिए।

याचिकाकर्ता जफरुल्ला की ओर से प्रशांत भूषण ने कहा कि म्यांमार में रोहिंग्या की जान को खतरा है। वहां उन्हें टार्चर किया गया है और मारा गया है। इसलिए ये सारे देश छोडकर भागे थे। हजारों लोग बांग्लादेश और भारत में भी ये आ गए। UN ने भी कहा है कि वो शरणार्थी हैं। ऐसे में UN के हाईकमिशन या उनके प्रतिनिधि को उन रोहिंग्या से मिलने भेजा जाना चाहिए। प्रशांत ने कहा कि ये उनके अधिकार का मामला है और अधिकारों की रक्षा अदालत की जिम्मेदारी है।

 लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हमने MEA की रिपोर्ट देखी है और हम इस मामले में दखल नहीं देंगे। CJI गोगोई ने कहा कि किसी को कोर्ट की जिम्मेदारी याद दिलाने की जरूरत नहीं है।

दरअसल सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर कहा गया था कि 7 रोहिंग्या को असम के सिलचर डिटेंशन सेंटर में रखा गया है जिन्हें भारत सरकार वापस म्यांमार भेज रही है।  ऐसा करने से उनकी जान को खतरा है। ऐसे में भारत सरकार को इस मामले में ऐसा करने से रोका जाए।

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