काम नहीं तो वेतन नहीं : उत्तराखंड हाईकोर्ट ने कहा, राज्य सरकार और सार्वजनिक उपक्रमों के कर्मचारी गैर-कानूनी हड़ताल में भाग नहीं ले सकते [निर्णय पढ़ें]
राज्य में मनमाने हड़ताल के खिलाफ सख्त कदम उठाते हुए उत्तराखंड हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को निर्देश दिया है कि वह शिक्षा, सार्वजनिक स्वास्थ्य, परिवहन सेवाएं, सार्वजनिक कार्य विभाग, सिंचाई और राजस्व में हड़ताल को रोके।
कोर्ट ने राज्य को निर्देश दिया कि वह ‘काम नहीं तो वेतन नहीं’ के सिद्धांत पर काम करे।
कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति राजीव शर्मा और न्यायमूर्ति मनोज तिवारी की खंडपीठ ने एक पत्र पर स्वतः संज्ञान लेते हुए यह निर्देश जारी किया। इस पत्र में कहा गया कि राज्य के कर्मचारी बिना किसी वास्तविक कारण के हड़ताल कर रहे हैं।
कोर्ट ने कहा,
“...उत्तराखंड में शिक्षक भी हड़ताल कर रहे हैं जिसकी वजह से यहाँ अकादमिक वातावरण प्रभावित होगा । डॉक्टरों और पैरामेडिकल कर्मचारियों का हड़ताल काफी खौफनाक है और इससे हजारों लोगों की जिंदगी खतरे में पड़ जाएगी।
मुख्य स्थाई वकील का कहना है की राज्य सरकार के अधीन बिजली विभाग, निगम और सभी सार्वजनिक उपक्रमों के कर्मचारी भी हड़ताल पर जा रहे हैं।
बिजली विभाग और अन्य निगमों के कर्मचारी समाज के बड़े हिस्से के लोगों को असंख्य मुश्किलों में डाल रहे हैं। स्वास्थ्य सेवाएं, बिजली, पानी और परिवहन जैसी सेवाएं ‘आवश्यक सेवाओं’ में आते हैं। ये सेवाएं बहाल रहे यह हर हाल पर सुनिश्चित की जानी है।”
महाधिवक्ता ने कोर्ट का ध्यान उत्तर प्रदेश आवश्यक सेवाएं संधारण अधिनियम, 1966, जिसको उत्तराखंड सरकार ने पूर्ण रूप से स्वीकार किया है, की और खींचा। इस अधिनियम के अनुसार, राज्य में आवश्यक सेवाएं बहाल रहे यह सुनिश्चित करना राज्य का कर्तव्य है।
कोर्ट ने यह भी कहा कि अपने कर्मचारियों की वास्तविक मांगों पर ध्यान देना भी राज्य सरकार के जिम्मेदारी है।
अंततः कोर्ट ने राज्य सरकार को निर्देश दिया कि वह यह सुनिश्चित करे कि राज्य में अधिनियम के तहत आवश्यक सेवाएं बहाल रहे और अगर कर्मचारी हड़ताल करते हैं तो उनके संघ की मान्यता वापस ले ले।
राज्य को कोर्ट ने कहा है की वह शिकायत निपटारा समिति का गठन आठ सप्ताह के भीतर करे ताकि कर्मचारियों की जायज मांगों पर गौर किया जा सके।