गवाह का बयान और बरामदगी दर्ज करते समय पुलिस पहने जा सकने वाला कैमरा रख सकती है : दिल्ली हाईकोर्ट ने दिया सुझाव; केंद्र और दिल्ली सरकार को जारी किया नोटिस [आर्डर पढ़े]
दिल्ली हाईकोर्ट ने सोमवार को सुझाव दिया कि दिल्ली पुलिस गवाहों के बयानों और बरामदगी की डिजिटल रिकॉर्डिंग कर सकती है और इस बारे में केंद्र और दिल्ली सरकार को नोटिस जारी किया।
यह सुझाव न्यायमूर्ति विपिन सांघी और न्यायमूर्ति आईएस मेहता की पीठ ने दिल्ली पुलिस द्वारा दायर कार्रवाई रिपोर्ट पर गौर करते हुए दी। इस रिपोर्ट के अनुसार, जुलाई 2017 से जून 2018 के बीच कुल 2,38,070 मामले दर्ज किये गए और लगभग 10 लाख गवाहियों के बयान इस दौरान दर्ज किये गए।
दिल्ली पुलिस ने कहा है कि उपलब्ध तकनीक और इन सूचनाओं को रखने के लिए जो डिवाइस प्रयोग में लाए जाते हैं वे कई बार कोर्ट के समक्ष बयान रिकॉर्ड कराने के वक्त अनुपयुक्त पाए जाते हैं। इस तरह उसको इन डाटा को उस समय वापस प्राप्त करने में काफी मशक्क्त करनी पड़ती है जब इनकी जरूरत पड़ती है।
इसलिए उसने सूचना वापस निकालने के लिए क्लाउड कंप्यूटिंग के साथ एक व्यवस्था स्थापित करने की मांग की। रिपोर्ट में कहा गया है कि इसमें डाटा की सुरक्षा, हैकिंग,क्लाउड का मालिकाना, उस तक पहुंचने का अधिकार और डिजिटल लालफीताशाही के अन्य मुद्दे के लिए कई तरह के मुद्दे शामिल होंगे।
इस चिंता पर गौर करते हुए कोर्ट ने इसके बाद गवाहियों के बयान डिजिटल कैमरा के सामने रिकॉर्ड करने का सुझाव दिया जिसे शरीर पर धारण किया जा सकता है। कोर्ट ने कहा, “दिल्ली पुलिस ने जिस चिंता की ओर ध्यान दिलाया है, उसको दूर करना जरूरी है। हालांकि, हमारी राय में, यह समस्या ऐसी नहीं है जिसको दूर नहीं किया जा सकता है और विशेषज्ञों की मदद से इस मामले को संतोषप्रद तरीके से दूर किया जा सकता है। शुरुआत के रूप में, शरीर पर पहने जाने वाले कैमरों की मदद से गवाहों के बयान,खुलासे का बयान या बरामदगी आदि को रिकॉर्ड किया जा सकता है।”
आगे कहा स्पष्ट किया गया कि ऐसा नहीं कि जो सुझाव दिया गया है वह वर्तमान में मौजूद प्रक्रिया को पूरी तरह विस्थापित कर देगा। कोर्ट ने कहा कि इस तरह के कदम पुलिस बल के लिए फायदे वाला होगा। कोर्ट ने कहा,
“इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि प्रक्रिया की डिजिटल रिकॉर्डिंग से उनकी विश्वसनीयता काफी बढ़ जाएगी और इससे कोर्ट आयर मुकदमादारों में भी जरूरी आत्मविश्वास बढ़ेगा।”
कोर्ट ने इस बात पर प्रकाश डाला कि सीडी, पेन ड्राइव या क्लाउड पर डिजिटल सूचना को रखने के लिए इनको मैन्युअली रखने की तुलना में काफी कम स्पेश की जरूरत होती है।
कोर्ट ने आगे कहा, “हम इस बात से अवगत हैं कि इस तरह की कोई व्यवस्था बनाने में राज्य को भारी खर्च वहन करना होगा और उसको एक पूरी तरह एक नई व्यवस्था की स्थापना करनी पड़ेगी जिसके लिए उन्हें जरूरी सॉफ्टवेर, हार्डवेयर और प्रशिक्षण आदि की जरूरत होगी। इस कार्य के लिए धन जीएनसीटीडी देती है या केंद्र सरकार यह देखना उस राज्य या केंद्र सरकार का काम है जिसको इस कार्य को अंजाम देना है।
हलांकि, जब तकनीक आसानी से उपलब्ध हो तो हमारी राय में, वित्त का मुद्दा राज्य सरकार को आम लोगों को लाभ पहुंचाने वाली इस योजना को लागू करने के रास्ते में रोड़ा नहीं बनना चाहिए।।।”
इसलिए कोर्ट ने पुलिस आयुक्त, गृह सचिव, जीएनसीटीडी, केंद्रीय गृह मंत्रालय के सचिव को नोटिस भेजना मुनासिब समझा। इस मामले की अगली सुनवाई अब 10 सितंबर को होगी।
20 मार्च 2017 को कोर्ट को बताया गया कि आईपीसी की धारा 161 के तहत गवाहों के बयान की वीडियो रिकॉर्डिंग करने के मुद्दे पर गौर करने के लिए एक उप-समिति गठित की गई है।
इस उप-समिति ने धारा 161 के तहत बयान को रिकॉर्ड किए जाने को लेकर आशंका व्यक्त की और कहा कि इसके क़ानूनी नतीजे हो सकते हैं। हालांकि, इस वर्ष जुलाई में हुई एक सुनवाई में कोर्ट ने कहा कि “इस तरह के बयान की वीडियो रिकॉर्डिंग से जांच करने वाले पुलिस अधिकारी की विश्वसनीयता को बढ़ाएगा और यह कोर्ट के समक्ष सच को लाना सुनिश्चित करेगा।”
इसके बाद कोर्ट ने कहा था कि इस मामले पर क्या कार्रवाई इस बारे में रिपोर्ट उसके समक्ष पेश किया जाए।