सैनिकों को भी अपनी प्रतिष्ठा, आजीविका और उत्पीड़न से बचाव का अधिकार है : गुजरात हाईकोर्ट [निर्णय पढ़ें]
गुजरात हाईकोर्ट ने एक तटरक्षक की जेल की सजा और नौकरी से बर्खास्त करने के निर्णय को निरस्त करते हुए कहा कि उन्हें भी अन्य लोगों की तरह अपनी प्रतिष्ठा, आजीविका और उत्पीड़न से सुरक्षा का अधिकार है।
न्यायमूर्ति जेबी पर्दीवाला ने उसके खिलाफ आदेश को निरस्त करते हुए भारतीय तटरक्षक के महानिदेशक को सूझबूझ दिखाते हुए इस बारे में दुबारा निर्णय लेने को कहा कि उसके खिलाफ संक्षिप्त सुनवाई की जाए या तटरक्षक अदालत का गठन कर उस पर मुकदमा चलाया जाए।
कोर्ट ने कहा, “प्रश्न यह है कि संविधान की उदार भावना से नागरिकों के एक वर्ग को पूरी तरह वंचित कर दिया जाए विशेषकर वे लोग जो कि बाहरी आक्रमण से देश की सुरक्षा में तैनात है और वे लोग जो शांति और युद्ध दोनों में देश की सेवा करते हैं। हो सकता है कि किसी व्यक्ति के पास मौलिक अधिकार न हो लेकिन इसके बावजूद उसे मानवाधिकार का हक़ है। संविधान के भाग तीन के कुछ प्रावधानों का लाभ हो सकता है कि उसे न मिले पर वह प्राकृतिक न्याय का अधिकारी है।”
कोर्ट ने कहा कि अगर संविधान के भाग तीन के तहत उपलब्ध संरक्षण उसको पूरी तरह उपलब्ध नहीं है तो भी इस अधिनियम और उसके नियमों में उचित प्रक्रिया अपनाए जाने के सिद्धांत को जरूर देखा जाना चाहिए। “...प्राकृतिक न्याय के तीन स्तम्भ हैं; कारण बताना इनमें से एक है। प्रशासनिक आदेश के कारण जब कोई सिविल या बुरा परिणाम सामने आता है, ऐसा कहना कि प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन करना आवश्यक है, एक खराब क़ानून है।”