रेरा दीर्घ अवधि के उस लीज एग्रीमेंट पर भी लागू होगा जिसमें पट्टेदार ने काफी ज्यादा निवेश कर रखा है : बॉम्बे हाईकोर्ट [निर्णय पढ़ें]
बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा है कि अचल संपत्ति (विनियमन एवं विकास) अधिनियम उस करार पर भी लागू होगा जिस पर लिखा है कि यह “पट्टा का करार” (लीज एग्रीमेंट) है अगर पट्टे की अवधि लम्बी है (जैसे 999 वर्ष) और जब पट्टेदार ने इसको ध्यान में रखते हुए इसके बदल काफी बड़ी रकम दी है।
न्यायमूर्ति शालिनी फान्सलकर जोशी ने महाराष्ट्र रियल एस्टेट अपीली अधिकरण के फैसले के खिलाफ दूसरी अपील को खारिज करते हुए कहा कि यद्यपि पक्षकारों के बीच जो करार हुआ है उसको “लीज एग्रीमेंट” बताया गया है, प्रभावी रूप से यह करार विशुद्ध रूप से एक सेल एग्रीमेंट है और इसलिए इस पर आरईआरए (रेरा) के प्रावधान लागू होंगे।
कोर्ट ने कहा, “लीज करार में पट्टेदार अपार्टमेंट की कीमत की निर्णीत राशि का 80 प्रतिशत से ज्यादा राशि का भुगतान नहीं करता। ऐसा अपार्टमेंट जिसकी कीमत 40 लाख से ज्यादा है, के लीज करार में इस तरह के अपार्टमेंट का किराया एक रुपए प्रतिवर्ष नहीं हो सकता। एग्रीमेंट लीज में पक्षकार बाजार की दर पर पंजीकरण की राशि और स्टाम्प ड्यूटी नहीं चुकाता। लीज का अग्रीमेंट इतनी लंबी अवधि, 999 वर्षों के लिए भी नहीं होता। इतनी लम्बी अवधि का लीज अपने आप में यह कहने के लिए पर्याप्त है कि वास्तविकता में यह बिक्री का एग्रीमेंट है।”
कोर्ट ने कहा कि रेरा का उद्देश्य ऐसे उपभोक्ताओं को इस तरह के करारों में सुरक्षा देना है जिन्होंने अपनी गाढ़ी कमाई इसमें लगाई है।
कोर्ट ने अपीली अधिकरण के आदेश को सही ठहराया और कहा, “...इस बारे में सुनिश्चित क़ानून है कि किसी दस्तावेज का क्या नाम दिया जाता है वह उसकी मंशा की सच्ची परीक्षा नहीं है और पूरे दस्तावेज को इसलिए पढ़ा जाना जरूरी है ताकि पक्षकारों की मंशा का पता चल सके।”