बालिग़ बेटा गुजारे का दावा नहीं कर सकता पर उसके रोजगार प्राप्त करने तक माँ-बाप को उसका देखभाल करना होगा : उत्तराखंड हाईकोर्ट [आर्डर पढ़े]

Update: 2018-07-25 15:30 GMT

उत्तराखंड हाईकोर्ट ने एक महिला को मिलने वाली  गुजारा राशि में यह कहते हुए बढ़ोतरी किये जाने का आदेश दिया कि उसे अपने बालिग़ बेटे की भी देखभाल करनी है क्योंकि वह अभी बेरोजगार है।

न्यायमूर्ति लोकपाल सिंह ने कहा, “यद्यपि एक बालिग़ बेटे को अपने माँ-बाप से गुजारे का दावा करने का अधिकार नहीं होता है लेकिन भारतीय संस्कृति में हम इस बात को नहीं भूल सकते कि माँ-बाप को तब तक अपने बच्चों की देखभाल करनी पड़ती है जब तक कि उसे उपयुक्त रोजगार नहीं मिल जाता और बालिग़ बच्चों की देखभाल करना माँ-बाप का सामाजिक कर्तव्य माना जाता है। इस भारतीय संस्कृति की यूरोपीय संस्कृति या रिवाज से तुलना नहीं की जा सकती है।”

अदालत दो पुनर्विचार याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए यह आदेश दिया जिसे पति और पत्नी दोनों ने दायर किया था जिसमें जनवरी 2011 को दिए गए आदेश को चुनौती दी गई थी। इस आदेश में पति को फैमिली कोर्ट ने  निर्देश दिया था कि वह सीआरपीसी की धारा 125 के तहत अपनी पत्नी को 12 हजार रुपए की राशि गुजारा के लिए दे। पति ने इस आदेश को चुनौती दी थी पर पत्नी ने इस राशि के कम होने की शिकायत की थी।

फैमिली कोर्ट में पत्नी ने कहा कि पति 65 हजार रुपए हर माह कमाता है, उसको और उसके बेटे की देखभाल के लिए कम से कम 20 हजार रुपए की राशि हर माह अवश्य ही दी जानी चाहिए। पति ने पत्नी पर क्रूर होने का आरोप लगाया और कहा कि वह खुद ही अच्छी नौकरी कर रही है और उसकी आय अच्छी है।

हालांकि, तब से पति का सकल वेतन बढ़कर एक लाख रुपए प्रति माह से ज्यादा हो चुका है जबकि पत्नी की शुद्ध आय प्रतिवर्ष एक लाख रुपए है। इस पर गौर करते हुए कोर्ट ने कहा, “यह अदालत इस बात को नजरअंदाज नहीं कर सकता कि हर साल पति के वेतन में लगातार वृद्धि होती रही है। यह सच है कि पत्नी को भी अच्छी आय हो रही है और पोस्ट ऑफिस में आवर्ती जमा पर उसको काफी अच्छा कमीशन मिल रहा है पर उसकी आय अनियमित है और इसमें उतार-चढ़ाव आता रहता है। अगर मैं पत्नी की वार्षिक आय पर नजर दौड़ाऊँ तो यह एक लाख रुपए सालाना होता है। उसकी औसत आय एक लाख रुपए वार्षिक होती है जबकि उसको खुद को और अपने बेटे की देखभाल करनी होती है।”

इसके बाद कोर्ट ने कहा, “मासिक गुजारे की राशि ऐसी होनी चाहिए जो दोनों पक्षों के लिए सम्मानजनक और उनकी क्षमताओं के अनुरूप हो ताकि वह उसका भुगतान कर सके।” इसके बाद कोर्ट ने मासिक गुजारा राशि को बढ़ाने का आदेश दिया और कहा कि आवेदन दायर करने की तिथि से लेकर आपराधिक पुनरीक्षण दाखिल करने की तिथि तक यह 20 हजार रुपए और आपराधिक पुनरीक्षण दायर करने की तिथि से यह 45 हजार रुपए प्रति माह होगा।


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