महिला का "लूज कैरेक्टर" पुरुषों को बलात्कार का अधिकार नहीं देता : बॉम्बे HC ने रेप पीड़िता के चरित्र को दागदार करने के प्रयास को खारिज किया [निर्णय पढ़ें]
बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच ने हाल ही में बलात्कार के दोषी के पीड़िता के चरित्र पर कीचड़ उछालने के प्रयास को खारिज करने वाले निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखते हुए दोषी की अपील को खारिज कर दिया।
न्यायमूर्ति मनीष पिताले रामकृष्ण गणेश वाघ द्वारा दायर अपील की सुनवाई कर रहे थे जिसने अक्टूबर 2005 के अकोला सत्र न्यायालय द्वारा पारित आदेश को चुनौती दी थी जिसमें 15 वर्षीय लड़की से बलात्कार करने के लिए उसे दोषी ठहराया था।
मुकदमे के दौरान वाघ ने एक महिला को गवाह के रूप में बुलाया था जिसने अभियोजन पक्ष के चरित्र पर कीचड़ उछालने के लिए बयान दिए थे कि पीड़िता के उसके पति के साथ अवैध संबंध थे। हालांकि जिरह के दौरान महिला के बयानों
को अस्वीकार कर दिया गया था। इसलिए उच्च न्यायालय ने ये देखकर भी उसकी गवाही को अस्वीकार कर दिया कि आरोप सच भी हो तो यह वाघ के मामले में मदद नहीं करेगा।
यह देखा गया , “ बचाव पक्ष के गवाह को पूरी तरह से जिरह परीक्षा में अस्वीकार कर दिया गया है और यह स्पष्ट है कि उसे अपीलकर्ता और उसके पिता द्वारा केवल अभियोजन पक्ष और उसके चरित्र के बारे में प्रतिकूल राय बनाने के इरादे से लाया गया था। ट्रायल कोर्ट ने इसे सही ढंग से अनदेखा कर दिया है और यह सही ढंग से देखा गया है कि अगर अभियोजन पक्ष को लूज करेक्टर के रूप में माना भी जाता है तो यह नहीं कहा जा सकता कि अपीलकर्ता को उसके साथ बलात्कार करने या उसके साथ यौन संभोग करने का अधिकार है। ट्रायल कोर्ट के फैसले में गलती नहीं मिलती है। "
अदालत ने आगे कहा कि चूंकि घटना की तारीख पर पीड़िता 16 वर्ष से कम आयु की थी इसलिए उसकी सहमति, यदि कोई हो, तो भारतीय दंड संहिता की धारा 375 के छठे खंड के संदर्भ में उसके कोई मायने नहीं हैं। यह समझाया गया, "मौजूदा मामले में रिकॉर्ड पर सबूत और सामग्री स्पष्ट रूप से दर्शाती है कि जब घटना 05.10.2003 को हुई थी तब अभियोजन (पीडब्ल्यू 1) 16 साल से कम उम्र की थी। इस प्रकार आईपीसी की धारा 375 के खंड 'छह ‘ के अनुसार, जैसा कि यह है, वर्तमान मामले में सहमति प्रदान करना निरर्थक है।
इसलिए भले ही यह तर्क के लिए माना जाता है कि चिकित्सा साक्ष्य यह नहीं दिखाते कि जबरन यौन संभोग किया गया था, यह दर्शाता है कि अभियोजन पक्ष के हिस्से पर सहमति हो सकती है, क्योंकि वह 16 वर्ष से कम उम्र की थी, सहमति बेमानी थी।” इसलिए अदालत ने पहले के आदेश को बरकरार रखा और अपील को खारिज कर दिया व निर्देश दिया कि वाघ को उसकी सजा देने के लिए हिरासत में ले लिया जाए।