एक गुमशुदा व्यक्ति को 13 साल में नहीं ढूंढ पाने पर बॉम्बे हाईकोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार पर लगाया 60 लाख का अप्रत्याशित जुर्माना [आर्डर पढ़े]
बॉम्बे हाईकोर्ट ने पिछले 13 सालों से गुमशुदा गंगाधर पाटिल नामक व्यक्ति को नहीं ढूंढ पाने के लिए महाराष्ट्र सरकार को 60 लाख रुपए जमा कराने को कहा है।
औरंगाबाद पीठ के न्यायमूर्ति टीवी नलवाडे और केवी वाल्डाने पाटिल की पत्नी द्वारा दायर एक आपराधिक रिट याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश दिया।
पृष्ठभूमि
गंगाधर किसानों से कपास इकट्ठा करता था और उसे स्पिन यार्न का व्यवसाय करने वाले कोआपरेटिव सोसायटी को बेचा करता था।
आरोपी नंबर 8 गंगाखेड और एमएलए विट्ठल गायकवाड उस सोसायटी के निदेशक थे। गंगाधर का 53.58 लाख सोसायटी पर 2005 में बकाया था। गंगाधर को उसका बकाया नहीं मिल रहा था और उसने आरोपी नंबर 7 अमृत महाराज से संपर्क किया जो कि विट्ठल गायकवाड को जानता था।
मृतक गंगाधर ने एक पत्र लिखा था जिसमें उसने लिखा था कि गायकवाड पर उनका इतना पैसा बकाया है पर इसके बावजूद उसने फर्जी रिकॉर्ड तैयार किया और यह दावा करना शुरू कर दिया कि उसने पैसे चुका दिए हैं। 20 मई 2005 को गंगाधर अपने घर से यह कहकर निकला कि वह अमृत महाराज से मिलने जा रहा है ताकि वह पैसे वापस ले सके।
पर उस दिन के बाद से गंगाधर का आज तक कोई पता नहीं चला है।
गिरफ्तार किए जाने के बाद अमृत महाराज ने बताया कि वह गंगाधर को गायकवाड के घर के पास ले गया पर चूंकि विट्ठल गायकवाड एक विधायक था, उसे कभी भी गिरफ्तार नहीं किया गया। गायकवाड अब मर चुका है।
गंगाधर ने जो पत्र लिखे थे उससे पता चला कि गायकवाड ने उसे जान से मारने की धमकी दी थी और वे यह दावा कर रहे थे कि गंगाधर का कोई पैसा बकाया नहीं है।
आदेश
देगलूर के अनुमंडलीय पुलिस अधिकारी ने 16 जुलाई 2018 को एक स्थिति रिपोर्ट पेश की। इस रिपोर्ट पर गौर करने के बाद कोर्ट ने कहा –
“... एक बात तो स्पष्ट है कि जांच एजेंसी ने अमृत महाराज के अलावा किसी भी व्यक्ति के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं कर पाई। ऐसा लगता है कि अन्य व्यक्ति जिनके नाम रिपोर्ट में दिए गए हैं, उनको एजेंसी ने छुआ तक नहीं और इसका क्या कारण है यह वही जानती है। इससे यह पता चलता है कि राज्य इस मामले में कोई भी कदम उठाने से कतराता रहा और गुमशुदा व्यक्ति का पता लगाने में विफल रहते हुए वह अपने कर्तव्यों का निर्वहन नहीं कर पाया।
कोर्ट ने कई बार राज्य को इस मामले में क्या प्रगति हुई इस बारे में रिपोर्ट पेश करने को कहा। इस अदालत ने समय समय पर पेश किए गए उन रिपोर्टों के आधार पर कई आदेश दिए यह सोचते हुए कि इस मामले में कुछ प्रगति हो रही है। लेकिन ऐसा लग रहा है कि राज्य को इसकी परवाह नहीं है।
कोर्ट यह स्पष्ट कह चुका है कि चूंकि राज्य अपने कर्तव्यों का निर्वाह नहीं कर पाया है, राज्य को इस अदालत में 60 लाख रुपए आज से 30 दिनों के भीतर जमा कराना होगा।”