"सामाजिक मूल्यों और नैतिकताओं की अपनी जगह है पर ये सब संविधान से ऊपर नहीं " प्रेम प्रसंग में माँ-बाप की नजरबंदी से क़ानून स्नातक छात्रा को पटना हाईकोर्ट ने मुक्त कराया [निर्णय पढ़ें]

Update: 2018-07-14 06:19 GMT

हादिया मामले का हवाला देते हुए कोर्ट ने कहा कि सामाजिक मूल्यों और नैतिकताओं की जगह है पर ये सब स्वतंत्रता की संवैधानिक गारंटी से ऊपर नहीं हैं।

 क़ानून की एक स्नातक छात्र को उसके घर में गैरकानूनी ढंग से बंद रखने की खबर पर स्वतः संज्ञान लेते हुए  पटना हाईकोर्ट ने वृहस्पतिवार को उस लड़की को मुक्त किये जाने का आदेश दिया और कहा कि वह अपनी इच्छा से जहां भी जाना चाहती है,उसे जाने दिया जाए। इस लड़की के दिल्ली के एक वकील के साथ प्रेम संबंध होने की खबर है।

मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति राजेंद्र मेनन और न्यायमूर्ति राजीव रंजन प्रसाद ने पटना के वरिष्ठ अधीक्षक को उस 23 वर्षीय लड़की को जहां वह जाना चाहती है, वहाँ पहुँचने के लिए पर्याप्त सुरक्षा देने का निर्देश दिया और कहा कि एक बार जब वह अपने निर्दिष्ट जगह पर पहुँच जाती है, स्थानीय पुलिस से वह सुरक्षा ले सकती है।

हादिया मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए पीठ ने कहा, “अगर हम उपरोक्त मामले में आए फैसले पर गौर करें और वर्तमान मामले के तथ्यों को देखें तो स्पष्ट है, कि इस लड़की ने इस कोर्ट के समक्ष 26 जून 2018 को और इससे पहले भी अपने तरह से जीवन जीने की इच्छा जताई थी और अपने मौलिक अधिकारों का प्रयोग करना चाहती थी। कोर्ट ने कहा कि वह इस बात से वाकिफ है कि अपनी बेटी की इच्छाओं के विरोध के पीछे माँ-बाप के अपने तर्क हैं। कोर्ट ने कहा कि उसे लड़की जो चाहती है, उसे करने देने में और अपने संवैधानिक अधिकारों के प्रयोग की अनुमति देने में कोई हिचक नहीं है और उसके माँ-बाप सहित किसी को भी संविधान के तहत उसके मौलिक अधिकारों पर प्रतिबन्ध लगाने का कोई हक़ नहीं है।

“…वह कहीं भी, जहां वह जाना चाहती है, जाने के लिए स्वतंत्र है। वह कहीं भी अपनी इच्छा के अनुरूप जाने और अपने करियर के बारे में निर्णय लेने को स्वतंत्र है,” पीठ ने कहा।

यह लड़की चाणक्य राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय (सीएनएलयू) की स्नातक है और उसके पिता और खगड़िया जिला और सत्र न्यायाधीश सुभाष चंद्र चौरसिया ने उसकी पिटाई की और उसे गैरक़ानूनी तरीके से घर में बंद कर दिया।

जून में हाईकोर्ट ने इस बारे में छपी खबरों पर स्वतः संज्ञान लिया और लड़की और उसके माँ-बाप को कोर्ट में पेश होने को कहा।

26 जून को लड़की और उसके माँ-बाप कोर्ट में पेश हुए और कोर्ट ने लड़की को सीएनएलयू के गेस्ट हाउस में रखे जाने का आदेश दिया।

अब  कोर्ट ने आदेश दिया है कि इस गेस्ट हाउस में उसके ठहरने पर आए खर्च का बिल हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल को भेजा जाए जो कि मुख्य न्यायाधीश से सलाह मशविरा के बाद इस बारे में निर्णय लेंगे।

पीठ ने कहा, “...इस मामले में भी लड़की के माँ-बाप ने उसी तरह की भावनाएं जाहिर की हैं और यह कि वह उनकी इकलौती बेटी है और उसे बरगलाया जा रहा है और यह भी आशंका है कि उसका ब्लैकमेल हो रहा है और बरगलाने के परिणामों से इनकार नहीं किया जा सकता।”

“...पिता के विचार बेटी के मौलिक अधिकारों को सीमित करे इसकी अनुमति नहीं दी जा सकती है जिसने अपनी इच्छा से याचिकाकर्ता पति से शादी की है।”

“...सामाजिक मूल्य और नैतिकता की अपनी जगह है पर ये संविधान द्वारा प्रदत्त स्वतंत्रता से ऊपर नहीं हैं। यह स्वतंत्रता संवैधानिक भी है और यह मानव अधिकार भी है...उसकी इच्छा को नहीं मानना संवैधानिक अधिकारों के खिलाफ जाना है और संवैधानिक अदालत को इस मौलिक अधिकारों की रक्षा करनी है। इस तरह की स्थिति की कल्पना तक नहीं की जा सकती है। कोर्ट का यह कर्तव्य है कि वह इन अधिकारों की रक्षा करे...बिना किसी क़ानूनी बाध्यता के, स्वतंत्रता के केंद्रीय मूल्य ऐसी होनी चाहिए कि वह किसी व्यक्ति को अपना/अपनी स्क्रिप्ट लिखने की अनुमति दे। व्यक्तिगत छाप इस परिकल्पना का प्रतीक है,” पीठ ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को उद्धृत करते हुए कहा।

इस बीच, लड़की ने कोर्ट से कहा कि उसके सभी शैक्षणिक प्रमाणपत्र उसके मामा के पास जो उसके माँ-बाप के कहने पर उसको नहीं दे रहे हैं। इस पर कोर्ट ने पुलिस को इसे प्राप्त करने को कहा और उन सभी लोगों को खिलाफ एफआईआर दर्ज करने को कहा जो किसी तरह का रोड़ा अटका रहे हैं।


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