कई देशों द्वारा मौत की सजा को खत्म करने से कोई आधार नहीं बनता कि इसे अपने देश में भी कानूनी किताब से निकाल दिया जाए : सुप्रीम कोर्ट [निर्णय पढ़ें]
‘ जब तक ये दंड संहिता में बना हुआ है, अदालतों को उचित मामलों में मौत की सजा देने में किसी अवैधता के तहत नहीं रखा जा सकता। ‘
निर्भया मामले में मौत की सजा पाए दो दोषियों की पुनर्विचार याचिका को खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि यूनाइटेड किंगडम, लैटिन अमेरिकी देशों और ऑस्ट्रेलियाई राज्यों जैसे कई देशों द्वारा मौत की सजा को खत्म करने से कोई आधार नहीं बनता कि मौत की सजा को अपने देश में भी कानून की किताब से निकाल दिया जाए।
मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने विनय शर्मा और पवन कुमार गुप्ता की पुनर्विचार याचिका को खारिज करने के आदेश में ये टिप्पणियां की।
दरअसल दोषियों के लिए पेश वकील एपी सिंह ने मृत्युदंड के बारे में बेंच के समक्ष कई सबमिशन दिए और इसे समाप्त करने की आवश्यकता के बारे में कई दलीलें पेश कीं। उनके अनुसार मौत की सदा अहिंसा के सिद्धांत के खिलाफ चला जाती है जिसकी भारत ने दशकों तक वकालत की है। उन्होंने पीठ को ध्यान दिलाया कि 1966 में इंग्लैंड में संसद भवन द्वारा मौत की सजा समाप्त करने के विधेयक को पारित किया गया था और बड़ी संख्या में देशों में मृत्युदंड समाप्त कर दिया गया है। दूसरी तरफ राज्य के लिए उपस्थित वरिष्ठ वकील सिद्धार्थ लूथरा ने इन दलीलों का सामना किया कि मौत की सजा अभी भी कानून की किताब में है।यह तर्क नहीं दिया जा सकता कि इस देश में मृत्युदंड समाप्त हो जाएगा। उन्होंने यह भी प्रस्तुत किया कि बचन सिंह बनाम पंजाब राज्य में सर्वोच्च न्यायालय की संविधान पीठ द्वारा मृत्युदंड को पहले से ही बरकरार रखा जा चुका है और कहा गया है कि मृत्युदंड का उन्मूलन एक विधायी कार्य है और जब तक संसद एक संशोधन अधिनियम पास नहीं करती, कोर्ट उन दलीलों पर विचार नहीं कर सकती।
इस संबंध में न्यायमूर्ति अशोक भूषण, जिन्होंने निर्णय लिखा था, ने कहा: “ सिंह ने प्रस्तुत किया कि 1966 में यूके की संसद द्वारा मृत्युदंड को समाप्त कर दिया गया है और कई लैटिन अमेरिकी देशों और ऑस्ट्रेलियाई राज्यों ने भी मृत्युदंड को समाप्त कर दिया है और ये हमारे देश की क़ानून पुस्तक से मृत्युदंड को खत्म करने का कोई आधार नहीं है। जब तक ये दंड संहिता में बना हुई है, अदालतों को उचित मामलों में मौत की सजा देने में किसी अवैधता के तहत नहीं रखा जा सकता। "
अदालत ने वकील एपी सिंह द्वारा दी गई दलील को भी खारिज कर दिया जिसमें जांच और अभियोजन एजेंसियों पर हमला किया था। कोर्ट ने माना कि ये तर्क प्रकृति में सामान्य हैं और किसी भी पर्याप्त कारणों पर आधारित नहीं हैं ताकि ट्रायल में ऐसी कोई त्रुटि बताई जा सके या किसी भी फैसले पर पुनर्विचार करने के लिए कोई आधार प्रस्तुत करे।
याचिका को खारिज करते हुए पीठ ने कहा: " खत्म करने से पहले हमें उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ अपीलकर्ताओं (यहां याचिकाकर्ताओं) द्वारा दायर की गई आपराधिक अपीलों को दोहराने की जरूरत है, इस अदालत ने उन्हें सभी संभावित सबमिशन देने के लिए पर्याप्त समय दिया था। आपराधिक अपीलों में सुनवाई लगभग 38 दिन जारी रही। अपीलकर्ताओं / याचिकाकर्ताओं के लिए वकील ने विस्तृत सबमिशन किए थे जिन पर हमारे मुख्य निर्णय में हमारे द्वारा उचित रूप से विचार किए गए थे। "