सुप्रीम कोर्ट का नया रोस्टर 2 जुलाई से लागू होगा

Update: 2018-06-28 13:12 GMT

सुप्रीम कोर्ट में विषयवार रोस्टर व्यवस्था लागू करने के बाद मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने अब इसमें कुछ बदलाव किया है। यह नया रोस्टर 2 जुलाई से लागू होगा।

नए रोस्टर के माध्यम से कुछ परिवर्तन मामूली परिवर्तन किये गए हैं। सामान्य पैसे और रेहन से संबंधित मामले अब न्यायमूर्ति रंजन गोगोई और न्यायमूर्ति एके सिकरी से ले लिए गए हैं। अब इनसे जुड़े मामलों की सुनवाई न्यायमूर्ति कुरिया जोसफ करेंगे। न्यायमूर्ति गोगोई को सामान्य दीवानी मामले दिए गए हैं।

इसके आलावा न्यायमूर्ति सिकरी को अप्रत्यक्ष कर, न्यायिक अधिकारियों से जुड़े मामले, और सुप्रीम कोर्ट/हाईकोर्ट/जिला अदालतों और अधिकरणों के कर्मचारियों और न्यायिक अधिकारियों के निजी मामले भी सौंपे गए हैं। उनको हालांकि सैन्य और संसदीय बलों और सार्वजनिक परिसरों पर कब्जा जमाने से संबंधित मामलों की सुनवाई अब नहीं करनी होगी।

रोस्टर में यह परिवर्तन न्यायमूर्ति जे चेलामेश्वर के 22 जून को अवकाश लेने के बाद किया गया है। न्यायमूर्ति चेलामेश्वर लगभग सात सालों तक सुप्रीम कोर्ट में रहने के बाद रिटायर हुए हैं। यह भी उम्मीद की जाती है कि उनके अब सुप्रीम  कोर्ट से चले जाने के बाद कॉलेजियम की स्थिति में भी बदलाव आएगा और न्यायमूर्ति एके सीकरी अब कॉलेजियम में शामिल किये जाएँगे। इनके अलावा कॉलेजियम में मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा, रंजन गोगोई, एमबी लोकुर और कुरियन जोसफ होंगे।

मास्टर ऑफ़ रोस्टर का विवाद

सुप्रीम कोर्ट के चार वरिष्ठतम जजों चेलामेश्वर, गोगोई, लोकुर और जोसफ ने एक प्रेस कांफ्रेंस कर यह कहा था कि सुप्रीम कोर्ट के प्रशासन में सब कुछ ठीकठाक नहीं चल रहा है और उसमें पिछले कुछ महीनों में बहुत कुछ ऐसा हो रहा है जो नहीं होना चाहिए। यह भी बताया गया कि इन चारों जजों ने अपने प्रेस कांफ्रेंस से दो माह पहले एक पत्र भी मुख्य न्यायाधीश को लिखा था जिसमें उन्होंने अपनी शिकायतों के बारे में बताया था।

इस पत्र में प्राथमिक रूप से जो चिंता जताई गई थी वह मामलों के बंटवारे से थी। इन जजों ने इस बात को स्वीकार किया कि मुख्य न्यायाधीश रोस्टर का मालिक होता है पर इसका यह मतलब नहीं है कि वह अपने सहयोगियों में सबसे वरिष्ठ क़ानूनी हस्ती होता है। इसके बाद यह भी कहा गया था कि मुख्य न्यायाधीश के क्या कार्य हैं इस बारे में पर्याप्त रूप से स्थापित परम्पराएं हैं जिसके अनुरूप उनको चलना होता है। पर हाल में इस परिपाटी का कड़ाई से पालन नहीं हो रहा है।

“इस तरह के मौके आए हैं जब देश के लिए दूरगामी परिणाम वाले मामलों को मुख्य न्यायाधीश ने अपने पसंदीदा बेंच को सुनवाई के लिए दिया और जिसके पीछे कोई उचित तर्क नहीं था। इसकी हर कीमत पर रक्षा की जानी चाहिए”।

हम ये ब्योरे सिर्फ इसलिए दे रहे हैं ताकि संस्थान को किसी भी तरह की शर्मनाक स्थिति का सामना नहीं करना पड़े लेकिन इस तरह का ख़याल नहीं रखने की वजह से संस्था की प्रतिष्ठा को पहले ही कुछ हद तक धक्का लग चुका है,” ऐसा उस पत्र में कहा गया था।

इन न्यायाधीशों की इस शिकायत का कैम्पेन फॉर जुडीशियल अकाउंटिबिलिटी एंड रिफॉर्म्स (सीजेएआर) ने भी समर्थन दिया और कहा कि यद्यपि चार जजों ने इस बारे में कुछ नहीं कहा लेकिन तथ्य यह है कि इस तरह के मामलों को कुछ कनिष्ठ जजों को सौंपा गया ताकि इनसे कुछ विशेष तरह का परिणाम प्राप्त किया जा सके जो कि अमूमन सरकार की इच्छाओं के अनुरूप होते थे। पत्र में कहा गया कि इस तरह का व्यवहार उस स्थिति में खतरनाक है जब सरकार लोगों के मौलिक अधिकारों और संवैधानिक मूल्यों को कुचल रही है।”

उसने यह दावा किया कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा अपने अधिकारों के बेजा इस्तेमाल के बहुत सारे उदाहरण हैं जब ‘रोस्टर का मालिक होने’ के अधिकारों का दुरुपयोग किया गया। इस बारे में जो सूची सौंपी गई उसमें उच्चतर न्यायपालिका में मेडिकल कॉलेज घूस कांड से संबंधित भ्रष्टाचार की जांच को लेकर दायर याचिका का भी जिक्र किया गया। इस सूची में सीबीआई के विशेष निदेशक की नियुक्ति को चुनौती देने वाली याचिका की सुनवाई और सीबीआई के विशेष जज न्यायमूर्ति बीएच लोया की मौत की स्वतंत्र जांच की मांग को लेकर दायर याचिका की सुनवाई को लेकर भी रोस्टर बदलने के मामले का भी जिक्र किया गया है। जज लोया सोहराबुद्दीन फर्जी मुठभेड़ मामले की सुनवाई कर रहे थे।

अभी हाल ही में पूर्व क़ानून मंत्री और वरिष्ठ एडवोकेट शांति भूषण ने रोस्टर का मालिक होने के नाते मुख्य न्यायाधीश की प्रशासनिक अधिकारों के बारे में स्पष्टीकरण को लेकर एक याचिका दायर की थी। इस याचिका में मांग की गई थी कि मामलों की सुनवाई कौन जज करेंगे इस बारे में दिए गए अधिकार को सुप्रीम कोर्ट के सर्वाधिक वरिष्ठ जजों के साथ साझा किया जाना चाहिए और कहा कि “रोस्टर का मालिक होने का अधिकार निर्देशहीन और बेलगाम नहीं हो सकता जिसको मुख्य न्यायाधीश मनमाने तरीके से प्रयोग करें।”

यह भी कहा गया था कि राजनीतिक रूप से ऐसे अनेक संवेदनशील मामले थे जिसको सूचीबद्ध करने में ‘अधिकारों का दुरुपयोग किया गया’। याचिका में मामलों को सूचीबद्ध करने में सुप्रीम कोर्ट नियम, 2013 और इस बारे में जारी निर्देशिका के प्रावधानों के पालन की घोषणा किए जाने की मांग कि गई थी। इस मामले में बहस पूरी हो चुकी है और फैसला सुरक्षित रखा गया है।


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