लोक अदालत के फैसले के खिलाफ अपील नहीं; बहुत सीमित मामलों में ही रिट याचिका दायर करने की अनुमति : इलाहाबाद हाई कोर्ट [आर्डर पढ़े]

Update: 2018-04-20 13:11 GMT

इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ पीठ ने कहा है कि लोक अदालत के फैसले के खिलाफ अपील नहीं की जा सकती और संविधान के अनुच्छेद 226 और 227 के तहत रिट याचिका दायर करने का अवसर भी सीमित है।

वर्तमान मामले में एक महिला ने लोक अदालत द्वारा तलाक के एक फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती दी थी। महिला ने कहा कि यह फैसला देते हुए फैमिली कोर्ट एक्ट, 1984 और विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 की प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया।

न्यायमूर्ति अजय लाम्बा और न्यायमूर्ति अनंत कुमार की पीठ ने कहा कि विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 की धारा 21(2) के प्रावधानों में स्पष्ट कहा गया है कि किसी भी पक्ष द्वारा अदालत के फैसले के खिलाफ अपील नहीं की जा सकती और फैसले को सभी पक्षों को मानना होगा।

इस मामले में अमिकस क्यूरी एडवोकेट उपेन्द्र नाथ मिश्रा ने सुझाव दिया कि लोक अदालत द्वारा दिया गया हर फैसला अंतिम होता है और हर पक्ष इसको मानने के लिए बाध्य होता है और इसके खिलाफ अपील नहीं की जा सकती।

इस अपील को खारिज करते हुए पीठ ने कहा, “जालौर सिंह के मामले में सुप्रीम कोर्ट के तीन सदस्यीय पीठ के फैसले और बाद में भार्वागी के मामले में आये फैसले में कोर्ट ने इस मामले की पुष्टि की कि लोक अदालत के फैसले को अनुच्छेद 226 और 227 के अधीन ही चुनौती दी जा सकती है और वह भी बहुत ही सीमित आधार पर।”


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