आरोपी का दूसरी शादी करने की बात सिर्फ मान लेना बहुविवाह मामले को साबित करने का साक्ष्य नहीं हो सकता : बॉम्बे हाई कोर्ट [निर्णय पढ़ें]
बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा है कि आरोपी द्वारा दूसरे विवाह की बात सिर्फ मान लेना से ये साबित नहीं होता कि उसने बहुविवाह का अपराध किया है।
द्विविवाह (आईपीसी की धारा 494 ) के तहत दोषी ठहराए गए एक व्यक्ति की अपील को अनुमति देते हुए न्यायमूर्ति एएस गडकरी ने कहा कि रिकॉर्ड के आधार पर कोई सबूत नहीं है कि आरोपी ने कानून के जनादेश के अनुसार आवश्यक और आवश्यक समारोहों के अनुसरण में दूसरा विवाह किया।
इस मामले में आदमी ने अपनी पहली पत्नी को छोड़ दिया और फिर दूसरी महिला से शादी की जिसने बाद में आत्महत्या कर ली। उस पर आत्महत्या के लिए उकसाने, धोखाधड़ी और द्विविवाह का आरोप लगाया गया। ट्रायल कोर्ट ने उसे बहुविवाह का दोषी ठहराया, हालांकि उसे आत्महत्या के लिए उकसाने के लिए बरी कर दिया गया। उच्च न्यायालय द्विविवाह के आरोप के लिए सजा के खिलाफ उसकी अपील सुन रहा था।
बाबूराव शंकर लोखंडे बनाम महाराष्ट्र मामले में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का हवाला देते हुए अदालत ने धारा 494 के लिए कहा, विवाह 'स्थायी विवाह' के तहत आना चाहिए। 'उत्सव ' का अर्थ उचित समारोह और उचित रूप से विवाह का जश्न मनाने से है। अदालत ने कहा, " विवाह के इरादे से कुछ समारोहों के माध्यम से कानून द्वारा निर्धारित समारोहों या रिवाजों को अनुमोदित नहीं किया जा सकता ।"
कंवल राम और अन्य बनाम हिमाचल प्रदेश प्रशासन के दूसरे सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का भी जिक्र करते हुए अदालत ने कहा कि दूसरा विवाह एक तथ्य के रूप में है, इसका मतलब यह है कि जरूरी समारोहों का गठन साबित होना चाहिए।
अभियुक्त को राहत देते हुए अदालत ने कहा: " रिकॉर्ड पर कोई सबूत नहीं है कि अपीलकर्ता ने कानून के जनादेश के अनुसार जरूरी समारोहों का पालन करके दूसरा विवाह किया। इसलिए सबूतों से स्पष्ट है कि अभियोजन पक्ष द्वारा अपीलार्थी और मृतक श्यामल के बीच विवाह उचित संदेह से परे स्थापित नहीं किया गया और इसके परिणामस्वरूप भारतीय दंड संहिता की धारा 494 के दायरे में नहीं आता। हालांकि अप्रैल 2012 में श्यामल के साथ विवाह करते समय अपीलकर्ता की पहली पत्नी संगीता जिंदा थी। "