पट्टे की भूमि पर लिए जाने वाले एकमुश्त प्रीमियम पर जीएसटी की वसूली जायज : बॉम्बे हाई कोर्ट [निर्णय पढ़ें]
बॉम्बे हाई कोर्ट ने केंद्रीय औद्योगिक और विकास निगम महाराष्ट्र लिमिटेड (सिडको) द्वारा पट्टे पर दिए जाने वाली जमीन पर एक बार वसूले जाने वाले जीएसटी शुल्क को जायज माना है.
न्यायमूर्ति एससी धर्माधिकारी और न्यायमूर्ति पीडी नाइक ने नवी मुंबई एवं अन्य स्थानों के बिल्डर एसोसिएशन की एक याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश सुनाया। इन लोगों ने इस तरह की जमीन पर एक मुश्त लगाए जाने वाले 18% जीएसटी का विरोध किया है और अपनी याचिका में सिडको को यह राशि नहीं वसूलने का आदेश देने की मांग की है।
मामले की पृष्ठभूमि
सिडको विशेष योजना प्राधिकरण है जिसका गठन 17 मार्च 1970 को हुआ। इसने बिल्डरों को 60 साल की लीज पर जमीन देना शुरू किया। ऐसा नवी मुंबई लैंड डिस्पोजल (अमेंडमेंट) रेगुलेशन, 2008 के तहत किया गया। उस समय बिल्डरों से एक मुश्त लीज प्रीमियम वसूला जाता था। इसके अलावा लीज की पूरी अवधि के दौरान वार्षिक पट्टे का किराया भी लिया जाता था।
अब याचिकाकर्ताओं ने इस एकमुश्त लीज प्रीमियम पर आवंटन लेटर देने के दौरान अलग से जीएसटी लगाए जाने का विरोध किया है।
फैसला
याचिकाकर्ताओं के वकील ने कहा कि 60 साल के लिए पट्टा देने का मतलब हुआ अचल संपत्ति को बेचना क्योंकि पट्टादाता इस जमीन का प्रयोग नहीं कर सकता है। वकील का कहना था कि यह पूरा लेन-देन बिक्री की तरह है जिसका मतलब यह है कि जीएसटी अधिनियम की धारा 7 के प्रावधान इस पर लागू नहीं होंगे।
वकील ननकानी ने कहा कि इस बारे में ग्रेटर नोएडा औद्योगिक विकास प्राधिकरण बनाम सीमा शुल्क, केंद्रीय उत्पाद आयुक्त के मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले पर भरोसा करना गलत है।
केंद्रीय वस्तु एवं कर आयुक्तालय और भारत सरकार की पैरवी करते हुए प्रदीप जेटली ने कहा कि जो मुद्दा उठाया गया है वह पूरी तरह अकादमिक है।
जेटली ने कहा कि क़ानून कोई भेद नहीं करता वस्तु और सेवा की आपूर्ति पर जीएसटी लगना तय है भले ही वह सरकारी हो या गैर सरकारी।
कोर्ट ने कहा :
“एक बार जब क़ानून किसी गतिविधि को वस्तु या सेवा की आपूर्ति मानता है विशेषकर भूमि औरभवन के संदर्भ में, प्रीमियम/एकमुश्त प्रीमियम एक ऐसा कदम है जिस पर कर लगाया जाता है, कर का आकलन होता है और उसकी वसूली की जाती है। इसलिए हम इस क़ानून के बारे में आगे और पड़ताल नहीं करना चाहते हैं”।
इस तरह उक्त लेन-देन के लिए जीएसटी की मांग क़ानून के अनुरूप है और इसलिए यह याचिका खारिज की जाती है।