पीओसीएसओ विशेष अदालत यह सुनिश्चित करेगा कि जांच के दौरान पीड़ित बच्चे की पहचान जाहिर नहीं हो : सिक्किम हाई कोर्ट [निर्णय पढ़ें]

Update: 2018-04-08 14:24 GMT

पीओसीएसओ मामले में एक अपील को ख़ारिज करते हुए सिक्किम हाई कोर्ट ने कहा कि विशेष अदालत को यह सुनिश्चित करने का अधिकार है कि मामले की जांच के दौरान पीड़ित बच्चे की पहचान जाहिर नहीं की जाए।

न्यायमूर्ति मीनाक्षी मदन राय ने कहा कि यौन अपराध बाल संरक्षण अधिनियम, 2012 की धारा 33(7) के तहत कोर्ट को यह अधिकार दिया गया है कि वह यह सुनिश्चित करे कि मामले की जाँच या इसकी सुनवाई के दौरान पीड़ित बच्चे की पहचान को सुरक्षित करे।

जज ने गौर किया कि यद्यपि सुनवाई के दौरान अदालत पीड़ित की पहचान के प्रति अमूमन चौकस रहता है, पर कई बार सुनवाई अदालत द्वारा आदेश या फैसले में चूक हो जाती है। कोर्ट ने कहा, “...इस संदर्भ में कोर्ट चाहे तो यह सुनिश्चित करने के लिए अलग कदम उठा सकता है।”

कोर्ट ने यह भी कहा कि जांच एजेंसी को भी अपने स्तर पर पीड़ित की पहचान को सुरक्षित रखना चाहिए और जांच या चार्ज शीट के दौरान इसका खुलासा वह नहीं करे। कोर्ट ने कहा, “चार्ज शीट को पढने पर पता चलता है कि जांच एजेंसियों ने सारे नियमों को ताक पर रखते हुए पीड़ित का नाम, उसका पता और उसके स्कूल के बारे में जानकारियों को सार्वजनिक कर दी हैं।”

जज ने कहा कि पीड़ित की पहचान के बारे में एक अलग फाइल बनाया जा सकता है और इसको भी गुप्त रखा जाना चाहिए।

कोर्ट ने कहा कि अपराधों में शामिल बच्चों को बचाने के लिए जो क़ानून बनाए गए हैं जैसे जुवेनाइल जस्टिस (केयर एंड प्रोटेक्शन ऑफ़ चिल्ड्रेन) एक्ट और पीओसीएसओ एक्ट न केवल कोर्ट और पुलिस पर बल्कि वह मीडिया और समाज पर भी यह जिम्मेदारी डालती है कि वह बच्चों को अपनी क्षमता के अनुसार यौन शोषण से संरक्षण दे।”


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