रोस्टर के सर्वेसर्वा के रूप में सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के प्रशासनिक अधिकार को लेकर पूर्व कानूनमंत्री ने दायर की याचिका [याचिका पढ़े]

Update: 2018-04-06 16:35 GMT

पूर्व कानून मंत्री और वरिष्ठ अधिवक्ता शांति भूषण ने रोस्टर के सर्वेसर्वा के रूप में सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के प्रशासनिक अधिकार को लेकर सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की है। इस जनहित याचिका में उन्होंने मुकदमों के आबंटन के लिये रोस्टर तैयार करते समय जो प्रक्रिया अपनाई जाती है उसके निर्धारण के बारे में स्पष्टीकरण मांगा है।

शांति भूषण ने अपने वकील पुत्र प्रशांत भूषण के माध्यम से यह जनहित याचिका दायर की है जिन्होंने शीर्ष अदालत के सेक्रटरी जनरल को एक पत्र भी लिखकर कहा है कि यह याचिका प्रधान न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष सूचीबद्ध नहीं की जानी चाहिए। उन्होंने कहा है कि यह याचिका सीजेआई द्वारा सुनवाई के लिए मामलों के आवंटन में अपने अधिकारों के दुरूपयोग को रोकने के लिए दायर की गई है।

प्रशांत भूषण ने पत्र में यह भी लिखा है कि बेहतर होगा कि इस याचिका को किसी उपयुक्त बेंच को सौंपने के लिये तीन वरिष्ठतम न्यायाधीशों के समक्ष इसे रखा जाये। याचिका में मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा को सुप्रीम कोर्ट के रजिस्ट्रार के साथ ही एक प्रतिवादी बनाया गया है।

शांति भूषण ने याचिका में कहा है कि रोस्टर का प्रमुख अनियंत्रित नहीं हो सकता और मुख्य न्यायाधीश मनमाने तरीके से अपनी पसंद के कुछ जजों का चयन या खास न्यायाधीशों को मुकदमों के आबंटन के लिये अपने अधिकार का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता।

याचिका में कहा गया है कि रोस्टर के प्रमुख के रूप में मुख्य न्यायाधीश का अधिकार अंतिम और मनमाना नहीं है जो सिर्फ प्रधान न्यायाधीश में अन्तर्निहित है। याचिका में कहा गया है कि मुख्य न्यायाधीश को इस तरह के अधिकार का इस्तेमाल शीर्ष अदालत के तमाम फैसलों में दी गयी व्यवस्था को ध्यान में रखते हुए कोर्ट के सीनियर न्यायाधीशों से विचार-विमर्श से ही करना चाहिए।

इस वर्ष 12 जनवरी को देश के इतिहास में एक अभूतपूर्व घटना उस समय घटी जब सुप्रीम कोर्ट के चार वरिष्ठतम जजों न्यायमूर्ति जे चेलामेश्वर, न्यायमूर्ति रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति मदन बी लोकूर और न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ ने मीडिया से बात की थी और कहा था कि शीर्ष अदालत में सब कुछ ठीकठाक नहीं है और बहुत अनपेक्षित घटनायें हो रही हैं। इन जजों ने अप्रत्यक्ष रूप से यह संकेत दिया था कि जजों के बीच कार्यों का बँटवारा एक अहम मुद्दा है जिसको लेकर उन्होंने मुख्य न्यायाधीश को चिट्ठी भी भेजी थी।

याचिका में कहा गया है कि शब्द “चीफ जस्टिस” का अर्थ है कोर्ट के पांच वरिष्ठतम जजों का कॉलेजियम। इस याचिका के माध्यम से मांग की गई है कि कोर्ट यह स्पष्ट करे कि जब किसी मामले को त्वरित सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया जाता है तो सिर्फ यह निर्धारित किया जाता है कि इसकी सुनवाई किस तिथि को कितने बजे होगी पर इसकी सुनवाई कौन सी पीठ करेगी इसका निर्धारण नियम के अनुसार होगा।


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