हम न्यायालयों का ‘सत्कार’ करते हैं, SC ने कहा, ऑस्ट्रेलियाई न्यायालय द्वारा दी गई कस्टडी के चलते पिता की हैबियस कॉरपस याचिका खारिज [आर्डर पढ़े]

Update: 2018-03-20 05:34 GMT

13 वर्षीय एक लड़की के पिता दाखिल हैबियस कॉरपस याचिका के एक दिलचस्प उदाहरण में चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा,न्यायमूर्ति एएम खानविलकर और न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड और की पीठ ने “ कोर्ट के सत्कार” के सिद्धांत का पुनर्मूल्यांकन किया।

मामले के तथ्यों में बताया गया था कि 2005 में  जन्म के तुरंत बाद लड़की की जैविक मां निधन हो गई थी, जब वह ऑस्ट्रेलिया में अपने मामा के साथ रह रही थी।

उत्तरदाताओं के पक्ष में उपस्थित वरिष्ठ वकील मीनाक्षी अरोड़ा ने कहा कि ऑस्ट्रेलिया में सक्षम अदालत ने अपने मामा को लड़की की वैध हिरासत में दे दिया था, जबकि अपने पिता (वर्तमान याचिकाकर्ता) कोहर महीने के पहले और तीसरे बुधवार को स्काइप पर उसके साथ बात करनेइजाजत दी थी। उन्होंने कहा, “ एक हैबियस कॉरपस याचिका को केवल गैरकानूनी हिरासत के मामले में ही सुना जा सकता है। बच्चे को व्यक्तिगत रूप से जुलाई में अदालत में पेश किया जा सकता है। अदालत उस वक्त याचिका का निपटारा कर सकती है।”

वहीं याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि उसके पिताजी एकमात्र जीवित प्राकृतिक अभिभावक हैं और उन्हें उसके साथ व्यक्तिगत रूप से संपर्क करने की इजाजत नहीं दी जा रही है। ऐसे में  लड़की कैसे जानेगी कि उसके पिता के साथ जीवन कैसा हो सकता है ?

इस पर अरोड़ा ने याचिकाकर्ता से पूछा, “ क्या इन सभी वर्षों में पिता ने ऑस्ट्रेलिया में बच्चे का दौरा करने का प्रयास किया है।” उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ता ने पुनर्विवाह किया है और एक बच्चे को अपनाया भी है।

इस पर मुख्य न्यायाधीश ने कहा, " हम न्यायालयों का ‘ सत्कार’ करते हैं।

ऑस्ट्रेलियाई अदालत ने पहले ही इस मुद्दे को निर्धारित किया है ."

याचिकाकर्ता के वकील द्वारा निरंतर जारी रहने पर मुख्य न्यायाधीश ने टिप्पणी की, "जाओ, ऑस्ट्रेलिया में मामला दर्ज करो.." "बच्ची केवल तेरह साल की है और वह अपने मामा के साथ सभी तेरह वर्षों तक रही  है .वह एक वयस्क नहीं है, लेकिन वह अभी भी अभिव्यक्ति के अधिकार की हकदार है..." बेंच ने टिप्पणी करते हुए हैबियस कॉरपस रिट याचिका को खारिज कर दिया। बेंच ने कहा कि याचिकाकर्ता के लिए उपलब्ध अन्य उपायों का सहारा लिया जा सकता है।

पीठ ने सोमवार को स्पष्ट किया कि ऑस्ट्रेलिया में सक्षम अधिकार क्षेत्र के न्यायालय द्वारा निर्दिष्ट दिनों में याचिकाकर्ता और उनकी बेटी के बीच संचार में कोई बाधा नहीं है।


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