माँ-बाप के साथ दुर्व्यवहार करने पर मेंटेनेंस ट्रिब्यूनल उसके क़ानूनी वारिस को बेदखली का आदेश दे सकता है : दिल्ली हाई कोर्ट [निर्णय पढ़ें]

Update: 2018-03-16 15:46 GMT

अकेले रह रहे वृद्ध दंपति को राहत दिलाते हुए दिल्ली हाई कोर्ट ने आज कहा कि अगर माँ-बाप के साथ दुर्व्यवहार होता है तो मेंटेनेंस ट्रिब्यूनल ऐसे कानूनी वारिस को बेदखली का आदेश दे सकता है। कोर्ट ने कहा कि मेंटेनेंस एंड वेलफेयर ऑफ़ पेरेंट्स एंड सीनियर सिटीजन्स एक्ट, 2007 के तहत अधिकरण को यह अधिकार प्राप्त है।

“…लाभकारी क़ानून की एक कल्याणकारी राज्य में उदार व्याख्या की जरूरत होती है और यह जरूरी है कि यह क़ानून अत्यावश्यक सामाजिक जरूरतों को तत्काल पूरा करे। ...इसमें कोई संदेह नहीं है कि मेंटेनेंस ट्रिब्यूनलको इस अधिनियम के तहत बेदखली का आदेश जारी करने का अधिकार है”, न्यायमूर्ति सिद्धार्थ मृदुल और न्यायमूर्ति दीपा शर्मा की पीठ ने अपने फैसले में यह कहा।

पीठ मेंटेनेंस ट्रिब्यूनल के फैसले के खिलाफ दो बेटों की अपील की सुनवाई पर यह फैसला दिया। ट्रिब्यूनल ने उन्हें अपने 68 वर्षीय पिता के पुरानी दिल्ली स्थित घर को खाली कर देने का आदेश दिया था। अधिकरण के फैसले को दिल्ली हाई कोर्ट की एकल पीठ ने भी सही ठहराया था।

बेटों ने एकल पीठ के समक्ष दलील दी थी कि उसे यह आदेश देने का अधिकार नहीं है।

कोर्ट ने निष्कर्षतः कहा था कि दोनों बेटों ने अपने पिता की परिसंपत्ति को अपने कब्जे में रखने का अधिकार खो दिया है क्योंकि उनके पिता ने अपने साथ दुर्व्यवहार होने की शिकायत की है।

हौज़ क़ाज़ी के पुलिस थाने को अधिकरण के आदेश के अनुरूप पिता को इस घर पर तत्काल कब्जा दिलाने का आदेश दिया गया है।

शुरू में 68 वर्षीय पिता मोहम्मद अफताब खैरी ने कटरा दीना बेग, लाल कुआँ स्थित अपने मकान के बारे में याचिका दायर की थी।

आफ़ताब के तीन बेटे हैं – शहाब, शादाब (अपीलकर्ता नंबर एक) और शाहनवाज़ खैरी (अपीलकर्ता नंबर दो)।

आफताब इस विवादित घर के ग्राउंड फ्लोर पर खैरी प्रिंटिंग प्रेस चलाता है और पहली मंजिल पर अपनी पत्नी के साथ रहता है। इसी मकान की दूसरी और तीसरी मंजिल पर तीनों भाई रहते हैं।

आफताब ने शिकायत की थी कि उनके बेटों ने उनको वादे के मुताबिक़ 20 हजार रुपए की राशि हर महीने नहीं दे रहे हैं और जबकि उनकी पत्नी शाहीना के इलाज पर नियमित खर्च उन्हें करना पड़ता है।

अधिकरण ने शहाब को उस घर में रहने पर अपने पिता को 5000 रुपए प्रति माह देने को कहा था जबकि शाहनवाज़ और शादाब को घर खाली कर देने को कहा था।

अधिकरण ने इस क्षेत्र के एसचओ को आफताब के घर जाकर उनका हालचाल पूछते रहने को कहा था।

पर घर खाली करने के बजाय शादाब और शाहनवाज़ ने ट्रिब्यूनल के आदेश को चुनौती दी कि उसे इस तरह का आदेश देने का अधिकार नहीं है।

कोर्ट ने इस मामले में सनी पॉल एवं अन्य बनाम एनसीटी दिल्ली राज्य एवं अन्य तथा सचिन एंड अन्य बनाम झब्बू लाल एवं अन्य मामले में दिए गए फैसलों पर भी भरोसा किया।

पीठ ने सामाजिक कल्याण विभाग द्वारा बनाए गए नियमों का भी हवाला दिया जिसमें इस अधिनियम की धारा 32 के तहत बेदखली का आदेश देने का प्रावधान है।


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