एक्सक्लूसिव : जजों की नियुक्ति : क्या यह टेबल टेनिस का खेल बनकर रह गया है? क्या अनिश्चित वक्त के लिए फाइल पर बैठे रहना न्यायिक प्रणाली में रुकावट ?
लाइव लॉ विभिन्न हाई कोर्ट में जजों के रिक्त पदों को भरने को लेकर लंबित सिफारिशों के बारे में आंकड़ों को इकट्ठा करता रहा है। ये आंकड़े इलाहाबाद, बॉम्बे, कलकत्ता, छत्तीसगढ़, दिल्ली, गौहाटी, गुजरात, जम्मू और कश्मीर, झारखंड, कर्नाटक, मद्रास, मध्य प्रदेश, पंजाब और हरियाणा तथा त्रिपुरा हाई कोर्ट में जजों की नियुक्ति से संबंधित हैं।
इलाहाबाद हाई कोर्ट में बर्षद अली खान का नाम कॉलेजियम की अनुशंसा के बाद केंद्र सरकार के पास 04.04.2016 से लंबित है और मुहम्मद मंसूर का नाम केंद्र सरकार के पास 16.11.2016 से लंबित है।
कलकत्ता हाई कोर्ट में नियुक्ति के लिए मोहम्मद निज़ामुद्दीन का नाम कॉलेजियम ने भेजा था जिसे केंद्र सरकार ने 11.11.2016 को वापस कर दिया। कॉलेजियम ने इनका नाम 15.11.2016 में फिर भेजा जिसे दुबारा01.03.2017 को केंद्र सरकार ने वापस कर दिया। कॉलेजियम ने उनके नाम को एक बार फिर 07.04.2017 को भेजा और तब से इनका नाम केंद्र सरकार के पास लंबित है। इसी तरह सम्बा सरकार, सब्यसाजी चौधरी, रवि कपूर, अरिंदम मुखर्जी और साक्य सेन के नामों की अनुशंसा 04.12.2017 को कॉलेजियम ने की जो कि सरकार के पास अभी तक लंबित है। कलकत्ता हाई कोर्ट में 72 जजों के पद हैं और इनमें से आधे से अधिक पद अभी खाली हैं। इस हाई कोर्ट में अभी सिर्फ 33 जज ही नियुक्त हैं। कलकत्ता के वकील इस मामले को लेकर हड़ताल भी कर चुके हैं।
कर्नाटक हाई कोर्ट में नियुक्ति के लिए कॉलेजियम ने नरेन्द्र प्रसाद का नाम सुझाया था जो केंद्र सरकार के पास 11 महीनों से लंबित है। यहाँ के वकीलों ने भी खाली पदों को भरे जाने को लेकर हड़ताल किया जिसके बाद केंद्र ने पांच जजों के नामों को अधिसूचित किया।
मद्रास हाई कोर्ट के लिए 9 जजों के नाम 04.12.2017 से केंद्र के पास लंबित है। इसमें वरिष्ठ एडवोकेट सुब्रह्मनियम प्रसाद का नाम भी शामिल है।
पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के लिए हर्नेश सिंह गिल का नाम 06.04.2017 को भेजा जो केंद्र के पास लंबित है।
त्रिपुरा हाई कोर्ट के लिए अरिंधम लोध का नाम सुझाया गया पर यह नाम भी 01.11.2017 से केंद्र के पास लंबित है।
यद्यपि केंद्र सरकार कॉलेजियम की अनुशंसाओं को मानने के लिए बाध्य होता है, पर वह कितने समय के भीतर इन सुझावों को मान लेगा इस बारे में कोई समय सीमा निर्धारित नहीं है। ऐसा लगता है कि केंद्र सरकार इस स्थिति का फ़ायदा उठा रही है। इसी तरह ऐसे बहुत सारे नाम कॉलेजियम के विचाराधीन हैं जिन पर निर्धारित समय सीमा में निर्णय नहीं लिए जा रहे हैं।
लाइव लॉ की शोध टीम द्वारा जो आंकड़े इकट्ठे किए गए हैं उससे पता चलता है कि 146 नामों की अनुशंसा लंबित है। इनमें से अधिकांश नाम सरकार के पास लंबित है।
विभिन्न हाई कोर्ट में जिन जजों की नियुक्तियां लंबित हैं उनके बारे में लाइव लॉ द्वारा जमा की गई जानकारियाँ नीचे दी गई तालिका में दी गई हैं -
मुख्य न्यायाधीश केंद्र को एक समय सीमा के अंदर अनुशंसाओं पर निर्णय लेने के लिए क्यों नहीं कह रहे हैं?
लाइव लॉ के आंकड़े यह बताते हैं कि जजों की नियुक्तियों के बारे में सरकार की निष्क्रियता काफी अधिक है। उधर, कोर्ट में लंबित मामलों की सूची में निरंतर वृद्धि होती जा रही है। ऐसे में कोई सरकार से क्या अपेक्षा कर सकता है? क्या सरकार यह नहीं जानती है कि न्याय दिलाने की व्यवस्था ठीक से चलती रहे इसके लिए जरूरी है कि कोर्ट में जजों की संख्या पर्याप्त हो ताकि जजों पर काम का अनावश्यक बोझ न पड़े?
जनता इस बात को नहीं समझती है कि उनको न्याय मिलने में देरी क्यों हो रही है, वे इसके लिए जजों को जिम्मेदार मानते हैं और इस तरह जज बदनाम होते हैं। और इसका दबाव मुख्य न्यायाधीश पर कितना होता है यह पिछली बार यह तब देखने को मिला जब एक सार्वजनिक कार्यक्रम में मुख्य न्यायाधीश ठाकुर जजों पर काम के बोझ के बारे में बोलते हुए अपने आंसू पोछते नजर आए। ज़रा कल्पना कीजिए कि एक मुख्य न्यायाधीश को जजों की पर्याप्त संख्या में नियुक्ति के लिए मिन्नतें करनी पड़ती हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जो उस मौके पर मौजूद थे, ने बहुत ही दिलेरी से कहा था कि वे ऐसे लोगों में नहीं हैं जो महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर ध्यान न दें; उन्होंने मामले का गंभीरता से अध्ययन करने और इसका हल निकालने की बात कही। यह सब अप्रैल 2016 में हुआ और आज तक यह समस्या यथावत है।
न्यायमूर्ति ठाकुर रिटायर हो गए और उसके बाद न्यायमूर्ति केहर और दीपक मिश्रा इस पद पर आए। पर दोनों में से किसी ने भी न्यायमूर्ति ठाकुर की तरह इस मामले को नहीं उठाया। शायद सीजेआई पर ऐसे मामलों का दबाव ज्यादा है जिस पर पूरे देश का ध्यान लगा है और इन सब में न्यायिक नियुक्तियों का मामला पीछे छूट गया है। पर इसके बावजूद सीजेआई को सरकार से अनुशंसाओं पर एक समयबद्ध निर्णय लेने का आग्रह करने से कौन रोक रहा है?
सुप्रीम कोर्ट में नियुक्ति : न्यायमूर्ति केएम जोसफ और वरिष्ठ वकील इंदु मल्होत्रा का मामला
केएम जोसफ और इंदु मल्होत्रा का नाम सरकार के पास जनवरी 2018 से विचाराधीन है। कहा यह जा रहा है कि सरकार जोसफ को प्रोन्नत करने को इच्छुक नहीं है और इसका वह कोई कारण नहीं बता रही है। पर इसका वास्तविक कारण यह है कि जोसफ ने उत्तराखंड में मई 2016 में राष्ट्रपति शासन लगाए जाने को अवैध घोषित कर दिया था। वरिष्ठता के नाम पर आपत्ति तो एक दिखावा है क्योंकि थर्ड जज मामले में यह स्पष्ट कहा गया था कि सुप्रीम कोर्ट के जजों की नियुक्ति में प्रतिभा को सर्वोपरि रखा जाएगा। अगर कोई व्यक्ति विशिष्ट प्रतिभा से लैस है तो इसके बावजूद कि वह वरिष्ठता के क्रम में अखिल भारतीय स्तर पर या अपने ही कोर्ट में भले ही नीचे है, उसकी नियुक्ति होनी चाहिए। कॉलेजियम के 10 जनवरी के प्रस्ताव से यह स्पष्ट है कि वरिष्ठता की उनकी स्थिति के बावजूद उनकी प्रतिभा को देखते हुए कॉलेजियम ने उनके नाम को आगे बढ़ाया है। (इस संदर्भ में ज्यादा जानकारी के लिए आप इसे भी पढ़ सकते हैं : “Judicial Appointments: Are Centre’s Claims On Lack Of Seniority Of Justice KM Joseph And Justice Surya Kant Valid?” )
जो भी हो, इस मामले में किसी भी तरह से निर्णय लेने से बचने के लिए इस फाइल को लटका दिया गया है। लाइव लॉ ने इस बारे में लिखा था कि जोसफ और मल्होत्रा के नाम पर निर्णय लेना सरकार के लिए अग्नि परीक्षा होगी।
[शुद्धि: कलकत्ता उच्च न्यायालय [शामपा सरकार, रवी कृष्ण कपूर, अरिधम मुखर्जी] की सूची में तीन को कलकत्ता उच्च न्यायालय में 8 मार्च, 2018 को अतिरिक्त न्यायाधीश नियुक्त किया गया है]