Central Civil Service Rules- जिस अधिकारी ने अपनी पिछली सर्विस से इस्तीफा दिया है, क्या वह पेंशन लाभ का हकदार है? सुप्रीम कोर्ट करेगा विचार
सुप्रीम कोर्ट इस बात की जांच करने के लिए तैयार है कि क्या केंद्रीय सरकारी कर्मचारी, जिसने किसी अन्य पद के लिए चुने जाने के बाद अपना इस्तीफा दे दिया है, केंद्रीय सिविल सेवा (पेंशन) नियमों के अनुसार पिछली नौकरी से उत्पन्न होने वाले किसी भी सेवा लाभ का हकदार है।
मौजूदा मामले में, याचिकाकर्ता को 26.11.1990 को मुंसिफ कोर्ट, दासपल्ला में जूनियर क्लर्क के रूप में नियुक्त किया गया। हालांकि, क्लर्क के रूप में शामिल होने से पहले याचिकाकर्ता ने महालेखाकार (ए एंड ई), ओडिशा, भुवनेश्वर कार्यालय के लिए क्लर्क ग्रेड एग्जाम के लिए आवेदन किया। उक्त पद हेतु चयनित होने पर उन्हें नियुक्ति आदेश जारी किया गया। उसी के मद्देनजर, याचिकाकर्ता ने जूनियर लिपिक के पद से अपना इस्तीफा सौंप दिया। इसे विधिवत स्वीकार कर लिया गया और उन्हें 06.03.1993 से उनकी ड्यूटी से मुक्त कर दिया गया।
अपनी नियुक्ति के अनुसरण में, याचिकाकर्ता ने जूनियर लिपिक के रूप में अपनी सेवा को पेंशन योग्य सेवा के रूप में मानने के लिए आवेदन दिया। हालांकि, इसे दिनांक 04.09.2009 के ज्ञापन के माध्यम से खारिज कर दिया गया।
इससे व्यथित होकर, याचिकाकर्ता ने शुरू में केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण, कटक से संपर्क किया। हालांकि, ट्रिब्यूनल ने अंततः उनकी याचिका खारिज कर दी। इसके बाद याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट के समक्ष एक रिट याचिका दायर की और उसे अनुमति दे दी गई। इस प्रकार, भारत संघ और उप महालेखाकार ने वर्तमान अपील को प्राथमिकता दी।
जस्टिस हृषिकेश रॉय और जस्टिस संजय करोल की खंडपीठ के समक्ष यह मामला सूचीबद्ध किया गया। अपीलकर्ताओं ने प्रस्तुत किया कि चूंकि याचिकाकर्ता ने अपना इस्तीफा दे दिया, जूनियर क्लर्क के रूप में उसकी पूर्व सेवा को किसी भी सेवा लाभ के लिए अर्हक सेवा के रूप में नहीं माना जा सकता। इस तर्क का समर्थन करने के लिए केंद्रीय सिविल सर्विस (पेंशन) नियम, 1972 के नियम 26 पर भरोसा किया गया। वही इस्तीफे पर सेवा की जब्ती के बारे में बात करता है।
इन तथ्यों और परिस्थितियों को देखते हुए कोर्ट ने नोटिस जारी किया।
विवादित आदेश
हाईकोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता के दावे को खारिज करते समय कोई भी कारण नहीं बताया गया।
हाईकोर्ट ने कहा,
"चूंकि कारण किसी भी निर्णय का मूल बिंदु होता है, ऐसे कारण के अभाव में यह न्यायालय यह मानने को इच्छुक है कि माननीय सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के साथ-साथ इस न्यायालय की दृष्टिकोण में उक्त अस्वीकृति कानून की नजर में टिकाऊ नहीं है।''
हाईकोर्ट ने प्रतिवादी की ओर से दी गई इस दलील को भी मानने से इनकार कर दिया कि याचिकाकर्ता द्वारा दिया गया इस्तीफा तकनीकी इस्तीफा नहीं होने के कारण स्वीकार नहीं किया जा सकता। एफ.आर.-22 में निहित दिशानिर्देशों के संदर्भ में यह तर्क दिया गया।
सुविधा के लिए एफ.आर. 22 में निम्नलिखित शर्तें शामिल हैं- (i) सरकारी नौकर को ऐसे आवेदन का विवरण उसकी नियुक्ति पर तुरंत सूचित करना चाहिए। (ii) सरकारी नौकर को अपने इस्तीफे के समय विशिष्ट अनुरोध करना चाहिए कि इसे "तकनीकी इस्तीफा" माना जाए। (iii) इस्तीफा स्वीकार करने वाले प्राधिकारी को संतुष्ट होना चाहिए कि क्या कर्मचारी उल्लिखित पद के लिए आवेदन की तिथि पर सेवा में है और उसका आवेदन उचित माध्यम से हुआ होगा।
इसके बावजूद, न्यायालय का विचार था कि रजिस्ट्रार, सिविल कोर्ट, पुरी ने याचिकाकर्ता द्वारा दिए गए इस्तीफे को विधिवत स्वीकार कर लिया है।
केस टाइटल: यूनियन ऑफ इंडिया बनाम अशोक कुमार आचार्य, डायरी नंबर- 36635 - 2023