राज्य सरकार ध्वनि प्रदूषण रोकने के लिए गंभीर प्रयास करे : इलाहाबाद हाई कोर्ट [आर्डर पढ़े]
ध्वनि प्रदूषण रोकने के लिए सरकार द्वारा कोई ठोस प्रयास नहीं किये जाने को लेकर इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सरकार की खिंचाई की और कहा कि इस बारे में पहले भी आदेश दिए गए थे और ध्वनि प्रदूषण को कम करने की जरूरत पर बल दिया था।
न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और अब्दुल मोईन की पीठ ने कहा कि राज्य सरकार ने 4 जनवरी को एक आदेश तो जारी किया था पर अभी तक इस बारे में कोई ठोस काम नहीं किया गया है और कहा कि लाउडस्पीकर्स का प्रयोग करने वालों को उचित अधिकारियों ने इसके अनुमति दे दी है। कोर्ट ने कहा कि यह कोर्ट के आदेश के पालन के नाम पर धोखा है।
कोर्ट ने कहा “...हम यह समझ रहे हैं कि 4.01.2018 को राज्य सरकार ने जो आदेश जारी किया था उसमें 20 दिसंबर 2017 को कोर्ट द्वारा जारी सभी निर्देशों को लागू करने की बातें नहीं हैं, यहाँ तक कि इसमें शादी और अन्य कार्यक्रमों पर दिन रात बजने वाले बैंड/डीजे से होने वाले ध्वनि प्रदूषण को नियंत्रित करने का कोई प्रावधान नहीं है।
4 जनवरी को सरकार ने लाउडस्पीकर्स के प्रयोग की इच्छा रखने वाले या वर्तमान में इसका प्रयोग कर रहे लोगों को जो आदेश जारी किया वह बिना किसी नियंत्रण के आंखमूंद कर दी गई अनुमति है। इस तरह की अनुमति और वह भी बिना किसी नियंत्रण या अंकुश के, ध्वनि प्रदूषण (विनियमन एवं नियंत्रण), नियम 2000 के पालन का दिखावा मात्र है...
...यह बताने की जरूरत नहीं है कि इस आदेश के जारी होने के बावजूद स्थितियों में थोड़ा भी बदलाव नहीं आया है बल्कि ध्वनि प्रदूषण फैलाने वाले पहले की तुलना में और ज्यादा निडर हो गये हैं”।
कोर्ट ने इसके बाद अतिरिक्त मुख्य स्थाई वकील एचपी श्रीवास्तव से कहा कि वह एक बेहतर हलफनामा दायर करें। प्रधान सचिव (गृह) अरविंद कुमार ने बताया कि राज्य सरकार इस तरह के लाउडस्पीकर्स से निकलने वाले ध्वनि को मापने के लिए मशीन खरीदने की सोच रही है। पर इसके बाद जब कोर्ट ने उनसे इस बारे में आगे बात करनी शुरू की तो कुमार के प्रस्ताव की सारी चमक गायब हो गई।
पीठ ने कहा,
“...कोर्ट के यह पूछने पर कि जब कोई व्यक्ति इस तरह का ध्वनि प्रदूषण कर रहा है जो कि इसकी दी गई अनुमति से ज्यादा है पर वह सरकारी लोगों और मशीन को देखने के बाद इससे होने वाली शोर के स्तर को कम करने को राजी हो जाता है तो उस स्थिति में इस मशीन का क्या उपयोग रह जाता है, अरविंद कुमार के पास इसका कोई जवाब नहीं था और उन्होंने कहा कि वे कोर्ट के पास बेहतर विकल्प और सुझाव के साथ वापस लौटेंगे।
कोर्ट ने हालांकि याचिकाकर्ता मोती लाल यादव के इस सुझाव की प्रशंसा की कि कोई भी व्यक्ति जो कि लाउडस्पीकर के प्रयोग की अनुमति चाहता है, उसको शोर की निगरानी करने वाले यंत्र को भी अवश्य ही लगाने को कहा जाए। कोर्ट ने सरकार को इस सुझाव पर गौर करने और अगली सुनवाई में इसको लागू करने के बारे में कोर्ट को बताने को कहा है।
पीठ ने इस बात पर बहुत ही आश्चर्य जताया कि लाउडस्पीकर्स से होने वाले ध्वनि प्रदूषण को चार मीटर की दूरी से मापा जा रहा है जबकि कोर्ट ने येल विश्वविद्यालय और सिटी रेडिंग कैलिफ़ोर्निया प्रोजेक्ट के इस बारे में मानदंडों का हवाला देते हुए कहा कि इसको 3 मीटर की दूरी से मापा जाना चाहिए।
कोर्ट ने राज्य को इस बारे में एक बेहतर हलफनामा दायर करने के लिए चार सप्ताह का समय दिया। कोर्ट ने कहा, “हम उम्मीद करते हैं कि सरकार ध्वनि प्रदूषण की समस्या से निपटने के लिए गंभीर प्रयास करेगी।”
इस मामले की अगली सुनवाई अब 12 मार्च को है।