आयकर अधिनियम की धारा एस-80जी के तहत प्रमाणपत्र मिलने का मतलब यह नहीं कि प्रमाणपत्र धारक संस्थान को बोनस नहीं देना होगा : दिल्ली हाई कोर्ट [निर्णय पढ़ें]

Update: 2018-01-29 10:44 GMT

दिल्ली हाई कोर्ट ने फैसला दिया है कि आयकर अधिनियम की धारा 80-जी के तहत प्रमाणपत्र मिलने का मतलब यह नहीं है कि उस संस्थान को बोनस अधिनियम 1965 के तहत बोनस के भुगतान से छूट मिल जाती है।

न्यायमूर्ति सी हरि शंकर ने बत्रा हॉस्पिटल कर्मचारी संघ की एक याचिका पर सुनवाई करते हुए उक्त बात कही। याचिका में औद्योगिक अधिकरण-I के आदेश को चुनौती दी गई जिसमें कहा गया कि 1965 का अधिनियम बत्रा अस्पताल और मेडिकल रिसर्च सेंटर पर लागू नहीं होता है। अधिकरण ने बोनस भुगतान को लेकर संघ के दावे को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि अस्पताल की स्थापना मुनाफ़ा कमाने के लिए नहीं हुआ है।

संघ ने कहा कि “अस्पताल का चैरिटेबल होना महज एक दिखावा है और बोनस का भुगतान नहीं करके वह इस अधिनियम के तहत अपने वैधानिक कार्यों का उल्लंघन कर रहा है।

कोर्ट ने शुरू में अस्पताल द्वारा किसी कर्मचारी संघ की उपस्थिति से इनकार करने की दलील को रद्द कर दिया और कहा कि अस्पताल नहीं चाहता कि इस मामले के गुण-दोष के आधार पर कोई फैसला दिया जाए।

इसके बाद कोर्ट ने अधिनियम की धारा 32 (v)(c) की व्याख्या की जो अस्पताल के कमर्चारियों को इस अधिनियम से दूर रखता है – “अस्पतालों की स्थापना मुनाफ़ा कमाने के लिए नहीं हुआ है।” इसके बाद कोर्ट ने कहा, “ऐसे संस्थान जो मुनाफ़ा कमा रहे हैं, न्यायिक प्रयास इन संस्थानों में यह सुनिश्चित करेगा कि उसके कर्मचारियों को बोनस दिया जाए न कि तकनीकी बातों का सहारा लेकर उन्हें इससे वंचित कर दिया जाए...”।

कोर्ट ने कहा, “चैरिटेबल उद्देश्य” की अजीबोगरीब परिभाषा को देखते हुए यह नहीं कहा जा सकता कि आयकर प्रमाणपत्र मिलने का मतलब यह है कि जिसे यह मिला है उस संस्थान पर बोनस भुगतान अधिनियम लागू नहीं होता है।”

कोर्ट ने आगे कहा, “आयकर अधिनियम और बोनस भुगतान अधिनियम दोनों का उद्देश्य और लक्ष्य अलग –अलग है। किसी संस्थान को मिले उपहार पर आयकर में छूट देने का उद्देश्य बोनस भुगतान के उद्देश्य से अलग है...हमारे सामने दलील यह दिया गया है कि चूंकि संस्थान को आयकर में छूट मिलता है इसलिए वह बोनस भुगतान के दायित्व से बाहर हो जाता है। मैं इससे सहमत नहीं हूँ।”

कोर्ट ने इसके बाद कहा कि अस्पताल को मुनाफ़ा हो रहा है और अधिनियम 1965 को नहीं मानने के लिए उसने अस्पताल को फटकार लगाई। कोर्ट ने कहा, “एक उद्यम चलाकर मुनाफे की उम्मीद करना पाप नहीं है। वाणिज्यिक आधार पर अस्पताल चलाना भी कोई अनैतिक कार्य नहीं है। पर अगर मुनाफ़ा कमाया जा रहा है तो इस मुनाफे के एक हिस्से को अपने उन कर्मचारियों के साथ साझा करना जिन्होंने इस मुनाफे को संभव बनाया है, एक जरूरी जिम्मेदारी है। यह अधिनियम यही चाहता है...”।


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