व्याभिचार मामले में महिलाओं को कानूनी सरंक्षण : IPC 497 को चुनौती देने वाली याचिका पर संविधान पीठ करेगी सुनवाई
व्याभिचार के मामलों में महिला को IPC की धारा 497 के तहत कानूनी कार्रवाई से मिले हुए सरंक्षण को चुनौती देने वाली याचिका को चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस ए एम खानविलकर और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड की बेंच ने पांच जजों की संविधान पीठ को भेज दिया है।
शुक्रवार को सुनवाई के दौरान बेंच ने कहा कि वो 1954 और 1985 के सुप्रीम कोर्ट के फैसलों से सहमत नहीं है जिसमें कहा गया IPC 497 महिलाओं से भेदभाव नहीं करता।
बेंच ने कहा कि सामाजिक प्रगति, लैंगिक समानता और लैंगिक संवेदनशीलता को देखते हुए पहले के सुप्रीम कोर्ट के फैंसलों पर फिर से विचार करना होगा।
8 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट ने याचिका को मंजूर कर लिया था और केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया था।
दरअसल IPC की धारा 497 एक विवाहित महिला को सरंक्षण देती है भले ही उसके दूसरे पुरुष से संबंध हों। ये धारा महिला को ही पीडित मानती है भले ही महिला और पुरुष दोनों ने सहमति से संबंध बनाए हों।
केरल के एक्टिविस्ट जोसफ साइन ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर IPC 497 की वैधता को चुनौती दी है। उनका कहना है कि पहले के तीन फैसलों में इसे बरकरार रखा गया और संसद को कानून में संशोधन करने की छूट दी गई। याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील कलीश्वरम राज ने कोर्ट में कहा कि ये संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 के तहत समानता के अधिकार का उल्लंघन है। महिला को कार्रवाई से सरंक्षण मिला हुआ है चाहे वो उकसाने वाली हो। वकील ने कहा कि एक महिला ना तो शिकायतकर्ता हो सकती है और ना ही उसके खिलाफ कार्रवाई की जा सकती है।
वहीं सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि जब संविधान महिला और पुरूष दोनों को बराबर मानता है तो आपराधिक केसों में ये अलग क्यों है ? जीवन के हर तौर तरीकों में महिलाओं को समान माना गया है तो इस मामले में अलग से क्यों बर्ताव हो ? जब अपराध को महिला और पुरुष दोनों की सहमति के किया गया हो तो महिला को सरंक्षण क्यों दिया गया ? सुप्रीम कोर्ट ने कहा था ौकि वो इस प्रावधान की वैधता पर सुनवाई करेगा। किसी भी आपराधिक मामले में महिला के साथ अलग से बर्ताव नहीं किया जाता और दूसरे अपराध में लैंगिक भेदभाव नहीं होता। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पति महिला के साथ वस्तु की तरह बर्ताव नहीं कर सकता और महिला को कानूनी कार्रवाई से सरंक्षण मिलना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि ये पुराना प्रावधान लगता है जब समाज में प्रगति होती है तो पीढियों की सोच बदलती है। कोर्ट ने कहा कि इस बारे में नोटिस जारी किया जाता है और आपराधिक केसों में सामान्य तटस्थता दिखानी चाहिए।