गुजारे के लिए मामले की कार्यवाही में आवेदन और लिखित बयान के साथ संपत्ति और आय संबंधित शपथ पत्र जरूरी नहीं : दिल्ली हाई कोर्ट [आर्डर पढ़े]

Update: 2017-12-26 04:49 GMT

दिल्ली हाई कोर्ट ने 14 जनवरी 2015 और 29 मई 2017 को दिए अपने फैसले को सुधारते हुए अब कहा है कि गुजारा के लिए चल रहे मामलों की कार्यवाही में संपत्ति, आय और खर्च के ब्योरे के बारे में हलफनामा देना अब जरूरी नहीं होगा। पहले याचिका और लिखित बयान के साथ कोर्ट के सामने ये दस्तावेज भी जमा करने होते थे।

14 जनवरी 2015 को कोर्ट ने दिशानिर्देश जारी किए थे जो हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 24 के तहत गुजारे की याचिका को जल्दी निपटाने से संबंधित थे। कोर्ट ने उस समय कहा था कि मुकदमा शुरू होने के समय ही दोनों पक्षों को अपनी संपत्ति, आय और खर्चे के बारे में हलफनामा दायर करना होगा। फिर 29 मई 2017 को कोर्ट ने इसमें कुछ संशोधन किया।

अभी हाल में हुई एक सुनवाई के दौरान अमाइकस क्यूरी सुनील मित्तल ने कहा कि याचिका के साथ संपत्ति, आय और खर्च के बारे में हलफनामा पेश करने से प्रतिवादी को अनावश्यक फ़ायदा होता है। उन्होंने आगे कहा कि दस्तावेजों को जमा करने और हलफनामा दायर करने में जो समय लगता है उससे बहस पूरी करने में देरी हो जाती है।

मित्तल ने आगे अपने सुझाव में कहा कि उचित मामलों में, पारिवारिक अदालत को यह अधिकार होना चाहिए कि वह चाहे तो हलफनामा दाखिल करने की जरूरत को समाप्त कर दे या फिर हलफनामे में पक्षकारों द्वारा दी जाने वाली सूचनाओं की दरकार को संशोधित कर सके। उन्होंने यह भी कहा कि समाज के सबसे निचले पायदान पर मौजूद लोगों को इस तरह का हलफनामा दायर करने में मुश्किल होती है।

न्यायमूर्ति जेआर मिधा ने कहा, “पारिवारिक अदालत के सुझाव और अमाइकस क्यूरी के विचारों पर गौर करने के बाद इस अदालत का विचार है कि गुजारे से जुड़े मामलों में दोनों ही पक्षों को परिसंपत्ति, आय और खर्च के बारे में हलफनामा अब बहस पूरी होने के बाद दायर करना होगा। इससे सभी पक्षों को अपना हलफनामा और अन्य संबंधित दस्तावेज तैयार करने का पर्याप्त समय मिल जाएगा और इस तरह मामलों में अनावश्यक देरी से बचा जा सकेगा।”

कोर्ट ने कहा कि अगर हलफनामे के साथ संबंधित दस्तावेज नहीं सौंपे जाते तो उस स्थिति में कोर्ट हलफनामे को ऑन रिकॉर्ड लेने के बाद पक्षकारों को इसकी खामियों को दूर करने के लिए समय देगा।


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