परिक्षा के दौरान छात्रों को अतिरिक्त उत्तर पुस्तिका नहीं देने के मुंबई यूनिवर्सिटी के नियम पर बॉम्बे हाई कोर्ट की रोक
छात्रों को राहत देते हुए बॉम्बे हाई कोर्ट ने मुंबई यूनिवर्सिटी के उस नियम को स्थगित कर दिया है जिसमें परीक्षा के दौरान छात्रों को अतरिक्त उत्तर पुस्तिका नहीं देने की बात कही गई थी।
यूनिवर्सिटी ने यह नियम 9 अक्टूबर 2017 को जारी किया था जो यूनिवर्सिटी के सभी कॉलेजों के लिए था। यूनिवर्सिटी ने कहा था कि ऐसा उत्तर पुस्तिकाओं की ऑनलाइन जांच शुरू करने के निर्णय के कारण किया गया है।
याचिकाकर्ता मानसी भूषण क़ानून की अंतिम वर्ष की छात्रा है जिसका कहना है कि इस नियम से उसके मौलिक अधिकारों का हनन हुआ है।
यूनिवर्सिटी का कहना था कि 40 पृष्ठ की मूल उत्तर पुस्तिका जो उनको दी जाती है वह उत्तर लिखने के लिए पर्याप्त होता है। उसका यह भी कहना था कि सभी उत्तर पुस्तिकाओं पर अलग-अलग बारकोड होते हैं और इसलिए मूल्यांकन के समय मुख्य और पूरक उत्तर पुस्तिकाओं में इसकी वजह से भ्रम की स्थिति पैदा हो जाती है।
हालांकि कोर्ट ने कहा कि नए ओएसएम प्रणाली में दिक्कत न हो इसके लिए यूनिवर्सिटी छात्रों को दंड नहीं दे सकता और यह उसका एक गलत निर्णय था।
यूनिवर्सिटी की इस बात पर कि हाई कोर्ट को इस मुद्दे में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए, कोर्ट ने कहा, “हम अंतिम सुनवाई के दौरान इस बात से निपटेंगे पर हम यूनिवर्सिटी को छात्रों के साथ मनमानी नहीं करने देंगे। यूनिवर्सिटी का सर्कुलर जो कि कागज़ का एक टुकड़ा है, उसे हम डेलीगेटेड क़ानून नहीं मान सकते।”
छात्र जो इस समय अपने सेमेस्टर का एग्जाम दे रहे हैं उन्हें अब अतिरिक्त उत्तर पुस्तिका मिल सकेगी।