केंद्र ट्रिब्यूनल्स के अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति का नया ड्राफ्ट 4 जनवरी तक पेश करे : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति एएम खान्विलकर की बेंच ने शुक्रवार को केंद्र सरकार को निर्देश किया कि वह ट्रिब्यूनल, अपीली ट्रिब्यूनल और अन्य प्राधिकरणों (योग्यता, अनुभव और सेवा की अन्य शर्तों) के नियमों का प्रारूप 4 जनवरी 2018 तक कोर्ट के सामने पेश करने को कहा।
बेंच वित्त अधिनियम 2017 की धारा 182, 183, 184 और 185 को चुनौती देने वाली कई रिट याचिकाओं की सुनवाई के दौरान यह आदेश दिया। वरिष्ठ वकील कपिल सिबल ने बेंच से कहा कि नया वित्त अधिनियम और उसके तहत बनाए नियम “ट्रिब्यूनल और आयोगों के अध्यक्षों और सदस्यों की नियुक्ति करने के न्यायपालिका के अधिकार का हनन करते हैं”।
यह भी कहा गया कि मद्रास बार एसोसिएशन के मामले [(2014) 10एससीसी 1] में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को नजरअंदाज किया गया है और इस नियम में यह प्रावधान किया गया है कि राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) का चेयरमैन गैर न्यायिक पृष्ठभूमि का भी हो सकता है।
आगे यह कहा गया कि, “एनसीडीआरसी और सीएटी के रिटायर हो रहे सदस्यों को तीन माह का एक्सटेंशन दिया गया है। फिर एनजीटी के साथ यह सौतेला व्यवहार क्यों किया जाता है? सरकार इस तरह से मनमानी कैसे कर सकती है? या तो नए नियमों पर आवश्यक रूप से रोक लगे या फिर एनजीटी के चेयरमैन और सदस्यों को भी उन संस्थाओं के सदस्यों की तरह ही एक्सटेंशन दिया जाए।
इसके उत्तर में न्यायमूर्ति चंद्रचूड ने कहा, “सीएटी और एनसीडीआरसी ये दोनों ही कर्मचारियों और व्यक्तिगत उपभोक्ताओं की शिकायतों का क्रमशः निपटारा करते हैं। एनजीटी का क्षेत्राधिकार हाई कोर्ट के पीआईएल क्षेत्राधिकार की तरह है।”
यह कहा गया कि “एनजीटी अधिनियम 2010 की धारा 6 के तहत यह प्रावधान है कि नियुक्ति मुख्य न्यायाधीश के परामर्श से ही हो सकता है। हालांकि, 2017 के नियम में मुख्य न्यायाधीश के अलावा सरकारी मंत्रालयों और विभागों की चार-सदस्यीय एक चुनाव समिति का प्रावधान है। कृपया यह स्पष्ट कीजिए कि क्या अब भी इस नियुक्ति में मुख्य न्यायाधीश की ही प्रमुखता रहेगी। विचलित करने वाली एक और विशेषता यह है कि उक्त नियम का नियम 20 केंद्र सरकार को अगर वह उचित समझती है तो किसी व्यक्ति को लेकर 2017 के नियमों के प्रावधानों में ढील देने की अनुमति देता है।”
महाधिवक्ता केके वेणुगोपाल ने कहा, “मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता में चार कार्यकारी सदस्यों वाली मुख्य चयन समिति के अलावा न्यायमूर्ति एके सिकरी, रंजन गोगोई और मदन बी लोकुर की अध्यक्षता में तीन अतिरिक्त समितियां हैं। इनके अलावा, सरकार ने जो नए नियमों के प्रारूप तैयार किए हैं उसमें चयन समिति के गठन को बदल दिया गया है।”
वरिष्ठ वकील अरविंद दातार ने कहा, “नए नियमों का प्रारूप मद्रास हाई कोर्ट बार एसोसिएशन मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के पैराग्राफ 120 की भावना के अनुरूप होना चाहिए।”
वरिष्ठ वकील मोहन पराशरण ने कहा, “यह मामला केवल विवादित नियमों में संशोधन का नहीं है। प्रश्न यह है कि ये नियम जो कि एनजीटी अधिनियम 2010 के परे हैं, क्या इसे पेश भी किया जाना चाहिए था?”।
बेंच ने कहा, “हम ड्राफ्ट नियमों को जनवरी में देखते हैं। इसके बाद हम इसकी वैधानिक योग्यता के बारे में निर्णय करेंगे।”