2013 में उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में हुए दंगों को लेकर बनी फिल्म ‘मुजफ्फरनगर द बर्निंग लव ‘ पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई बंद कर दी है।
सोमवार को हुई सुनवाई में उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट को बताया गया कि फिल्म के प्रदर्शन पर रोक नहीं लगाई गई है। कई सिनेमाघरों में ये फिल्म चली और कुछ में अब भी चल रही है।
चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा कि इसके बाद सुनवाई के लिए कुछ नहीं बचा है। इसलिए याचिका का निस्तारण किया जाता है। हालांकि फिल्म निर्माताओं को पुलिस सुरक्षा चाहिए तो वो संबंधित अथॉरिटी से संपर्क कर सकते हैं।
दरअसल फिल्म पद्मावती को लेकर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियों के बाद 2013 में उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में हुए दंगों को लेकर बनी फिल्म ‘मुजफ्फरनगर द बर्निंग लव ‘ के निर्माता सुप्रीम कोर्ट पहुंचे थे।
सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस ए एम खानविलकर और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड की बेंच ने सुनवाई करते हुए उत्तर प्रदेश और उतराखंड सरकार से जवाब मांगा था। याचिका में कहा गया था कि सेंसर बोर्ड के सर्टिफिकेट दिए जाने के बावजूद आठ जिलों में फिल्म के प्रदर्शन पर लगाई गई रोक गैरकानूनी है। दरअसल दंगों के दौरान हिंदू युवक और मुस्लिम युवती के प्रेम पर आधारित इस फिल्म को 17 नवंबर को देशभर में रिलीज किया गया लेकिन उत्तर प्रदेश में जिला प्रशासन द्वारा मुजफ्फरनगर, शामली, बागपत, गाजियाबाद, मेरठ और उतराखंड के हरिद्वार जिले के रूडकी की निगम सीमा में इसे कानून व्यवस्था के नाम पर रिलीज नहीं करने दिया गया जबकि बिजनौर में पहले शो के बाद सिनेमाघरों में फिल्म को रोक दिया गया।
सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिका में कहा गया था कि मोरना इंटरटेनमेंट प्राइवेट लिमिटेड द्वारा बनाई गई इस फिल्म को 14 जुलाई को सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्म सर्टिफिकेशन ( CBFC) से सर्टिफिकेट मिल गया था और 17 नवंबर को देशभर में इसे रिलीज किया गया। लेकिन यूपी के इन जिलों में विरोध प्रदर्शन हुआ और जिला प्रशासन ने फिल्म के रिलीज करने पर रोक लगा दी। जिला अधिकारियों को फिल्म दिखाई गई लेकिन इसते बावजूद फिल्म को सिनेमाघरों में रिलीज नहीं करने दिया गया। याचिका में कहा गया है कि मुख्यमंत्री से लेकर जिला अधिकारी तक से गुहार लगाई गई लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ।
निर्माताओं का कहना था कि इस तरह की रोक गैरकानूनी और मनमाना आदेश है। ये संविधान द्वारा दिए गए अभिव्यक्ति की आजादी, जीने और व्यापार करने के मौलिक अधिकार के खिलाफ है। याचिका में 50 लाख रुपये बतौर मुआवजा भी दिलाने की मांग की गई थी।