सभी मंत्री को आरटीआई अधिनियम के अधीन सार्वजनिक अधिकरण घोषित करने का सीआईसी का आदेश रद्द [आर्डर पढ़े]

Update: 2017-12-08 04:48 GMT

दिल्ली हाई कोर्ट ने केंद्रीय सूचना आयोग के उस आदेश को निरस्त कर दिया है जिसमें उसने प्रत्येक मंत्री को सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत “सार्वजनिक अधिकरण” घोषित कर दिया था।

न्यायमूर्ति विभु बखरू ने 12 मार्च 2016 को दिए इस आदेश को निरस्त कर दिया जिसमें कहा गया था कि केंद्र सरकार और राज्य सरकारों के मंत्री सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 के खंड 2(h) के तहत “सार्वजनिक अधिकरण” होंगे।

कोर्ट ने सीआइसी द्वारा केंद्र और राज्य सरकारों को जारी निर्देशों को भी खारिज कर दिया जिसमें उसने प्रत्येक मंत्री को मदद उपलब्ध कराने को कहा था। आदेश में कुछ अधिकारियों को सार्वजनिक सूचना अधिकारी और प्रथम अपीली प्राधिकरण के रूप में उनकी नियुक्ति करने को कहा था। इनके अलावा, मंत्रियों को आधिकारिक वेबसाइट उपलब्ध कराने का आदेश भी दिया गया था ताकि वे इस पर अपनी स्वेच्छा से आरटीआई अधिनियम के खंड 4 के तहत सूचनाएं डाल सकें और उसे समय समय पर अपडेट कर सकें।

इसके अलावा, मंत्रियों द्वारा लिए जाने वाले गोपनीयता की शपथ को पारदर्शिता की शपथ में बदलने के सीआईसी के सुझाव को भी खारिज कर दिया गया है। हाई कोर्ट ने कहा है कि ये सारे आदेश सीआईसी के अधिकार क्षेत्र के पूरी तरह बाहर की बात है।

हाई कोर्ट का यह आदेश केंद्र द्वारा सीआईसी के आदेश के खिलाफ दायर अपील पर सुनवाई के बाद आया है। केंद्र की पैरवी स्थाई वकील जसमीत सिंह ने की।

हाई कोर्ट का मानना था कि सीआईसी को इस पचड़े में नहीं पड़ना चाहिए था कि आरटीआई अधिनियम के तहत एक मंत्री सार्वजनिक अधिकरण है कि नहीं जबकि उसके पास जो अपील आई वह माँगी गई सूचना में होने वाली देरी से संबंधित है।

यह मामला तब सामने आया जब हमंत ढागे नामक व्यक्ति ने 20 नवंबर 2014 को विधि और न्याय मंत्रालय के अतिरिक्त निजी सचिव के समक्ष आवेदन कर यह जानना चाहा था कि मंत्री और राज्य के मंत्रियों के लिए जनता से मिलने की अवधि क्या है।

उसने सूचना नहीं मिलने पर जनवरी 2015 में अपील दायर की जिस पर सीपीआईओ ने उसे 16 जनवरी को जवाब भेजा और कहा कि मंत्रियों का आम आदमी से मिलने के लिए कोई समय निर्धारित नहीं है।

इसके बाद उसने 14 अप्रैल 2015 को एक दूसरी अपील दायर कर यह शिकायत की कि उसने जो सूचना मांगी थी वह उसे निर्धारित समय में नहीं मिली और इसलिए संबंधित सीपीआईओ के खिलाफ कार्रवाई की जाए।

इस अपील के आने के बाद सीआईसी ने प्रश्न तैयार किए कि क्या कोई मंत्री या उसका कार्यालय आरटीआई अधिनियम के अधीन “सार्वजनिक अधिकरण” है कि नहीं और किसी नागरिक को यह जानने का अधिकार है या नहीं जिसकी जानकारी मांगी गई है और क्या संबंधित मंत्री यह सूचना देने के लिए बाध्य है कि नहीं।

सीआईसी ने इन प्रश्नों का सकारात्मक उत्तर दिया और फिर इस बारे में कई तरह के सुझाव पारित किए।

केंद्र की अपील पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा, “अदालत यह नहीं समझ पा रही है की सीआईसी द्वारा बनाए गए प्रश्न प्रतिवादी नंबर दो की अपील में जगह बनाने में सफल रहे। प्रतिवादी नंबर दो ने जो प्रश्न पूछे हैं वे उसे दिए गए और इसमें कोई विवाद नहीं कि वह इसका अधिकारी है। प्रतिवादी नंबर दो की एक ही शिकायत है कि उसे सूचना देने में देरी हुई है। और इसलिए सीआईसी से उसकी एकमात्र मांग थी कि इस देरी के लिए संबंधित सीपीआईओ के खिलाफ कार्रवाई की जाए।”

जज ने कहा, “इन परिस्थितियों में सीआईसी के लिए यह जरूरी नहीं था कि वह इस प्रश्न में उलझे...”।


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