हादिया मामले की सुनवाई : क्या जज और क्या वकील, हर चेहरे पर दिख रही थी परेशानियां
कृपया समझने की कोशिश कीजिए, हमने संवाद बंद नहीं किया है और न ही ये कहा है कि ऐसा नहीं करूंगा। लेकिन वह समय...जब हमें कुछ करना चाहिए...हमें मानदंड तय करना होगा...यह एक जटिल मामला है...मैं, और मेरे सहयोगी जज न्यायमूर्ति खान्विलकर और न्यायमूर्ति चंद्रचूड़, हम सब अलग अलग हाई कोर्ट में भी बैठे हैं...हमने वहाँ भी इस तरह का कोई मामला नहीं देखा...मैंने नहीं देखा है...उनका भी यही कहना है...यह पहली बार है। इसलिए हम बहुत सावधानी से आगे बढ़ेंगे...कृपया सहयोग कीजिए”, मुख्य न्यायाधीश मिश्रा ने शाफिन जहां के मामले की सुनवाई दे दौरान अधीर हो रहे वकीलों से कहा जब हादिया से बातचीत में देरी हो रही थी।
लाल और उजले सलवार कमीज में सर पर स्कार्फ डाले हादिया को पुलिस 2.50 बजे अदालत में लाई और उसके साथ उसके पिता अशोकन और माँ पोनम्मा भी थे। इस मामले की सुनवाई शुरू होने में अभी 10 मिनट बाकी था।
सब को यह उम्मीद थी कि इस मामले में एकमात्र बात जो बच गई है वह यह कि हादिया से जजों की बात जैसा कि पहले तय हुआ था, खुली अदालत में होगी या बंद कमरे में।
हादिया के पिता अशोकन के वकील श्याम दीवान को संक्षिप्त में सुनने के बाद एनआईए के वकील एएसजी मनिंदर सिंह और बेंच ने कहा कि यह सुनवाई खुली अदालत में होगी। अशोकन ने इससे पहले मांग की थी कि यह बातचीत बंद कमरे में हो।
जब मामले को लगभग स्थगित कर दिया गया था
एक समय मख्य न्यायाधीश ने कहा, “शाम का 4.15 बज चुका है और हम अब इस बहस को कल जारी रखेंगे”।
हादिया और उसके पति को मदद करने वाले वकील कपिल सिबल, इंदिरा जयसिंह और पीवी दिनेश अपना धैर्य खोने लगे और बेंच से कहा, “यह बहुत ही अनुचित है”।
इन लोगों ने कहा कि इस मुद्दे को 31 अक्टूबर को हुई सुनवाई में सुलझा लिया गया था और बेंच ने निर्णय किया था कि वह पहले उस युवती से बातचीत करेंगे और यह मुद्दा कि “पहले क्या होना चाहिए अब दुबारा इस पर विचार नहीं होना चाहिए था”।
सिबल ने कहा, “मैं इस बात से दुखी हूँ कि वयस्क हादिया को इस पूरे प्रकरण पर अपनी बात कहने का मौका देने के बजाय कोर्ट उसकी मनोवैज्ञानिक जांच रिपोर्ट को और उस गठबंधन को ज्यादा तरजीह दे रहा है जो इस तरह के कनवर्जन के लिए जिम्मेदार हैं। पहला कदम होना चाहिए लड़की से बातचीत”।
मामले की विस्तृत छानबीन
न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा, “इस समय हम वास्तव में सिर्फ जांच के मुद्दे के बारे में ही चिंतित नहीं हैं और उस महिला की स्वतंत्रता और स्वायत्तता को इस तरह हिरासत में नहीं रखा जा सकता...हम उस समय के बारे में उधेड़बुन में हैं...कि यह बातचीत किस समय हो...यह पहला मौक़ा है जब हम इस तरह के मामले की सुनवाई कर रहे हैं...यह केस हमारे लिए नया है...”।
मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने कहा, “जहाँ तक की जांच की बात है, हम जांच को जारी रहने दें और जांच क्या हो रही है इसको कोर्ट को कोई लेनादेना नहीं है...हमें तो मानदंड तय करना है...पहली अवस्था...दूसरी अवस्था...इस तरह से”।
मुख्य न्यायाधीश ने कहा, “हमने बातचीत करने से मना नहीं किया है...बल्कि इसके समय के बारे में...हम सिर्फ सोच रहे हैं कि अपने सामने पेश दस्तावेजों पर नजर दौराने से पहले हम यह कब करें।”
न्यायमूर्ति खान्विलकर ने कहा, “सामान्य मामले में सामान्य नियम लागू होता है पर क्या हम सामान्य मामले की सुनवाई कर रहे हैं? नहीं...इसलिए हम समय ले रहे हैं”।
सिबल ने कहा कि एक व्यक्ति के रूप में हादिया का कहना है कि अगर उसका धर्म परिवर्तन कराया भी गया है तो भी वह जाना चाहती है। उन्होंने कहा, “आप पहले उससे बात कीजिए, उसके बारे में प्रथम दृष्टया जानकारी लीजिए, देखिए कि निष्कर्ष निकालने के लिए बाध्यकारी साक्ष्य मौजूद हैं कि नहीं...उसे किसी चिकित्सक के पास भेजिए या फिर यह घोषणा कीजिए कि वह अपने मुक्त विचारों का प्रयोग कर रही है। वह इसी वजह से आज यहाँ है”।
यह जानकर कि बेंच ने दो घंटे की बहस के बाद भी अभी तक यह निर्णय नहीं किया है कि हादिया को पहले सुना जाए या नहीं, इंदिरा जयसिंह नाराज हो गईं। उन्होंने पूछा, कि अगर हादिया एक पुरुष होती तो क्या वह उसके इस सामर्थ्य पर शक करते? इससे न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ नाराज हो गए और उन्होंने कहा कि बेंच के लिए दोनों ही जेंडर सामान हैं। न्यायमूर्ति मिश्रा ने अचरज में कहा, “जेंडर का मुद्दा यहाँ कैसे आ गया”?
इसके बाद कई वकीलों ने बेंच को आगाह किया कि हादिया एक डॉक्टर है और उसकी अपनी स्वतंत्र सोच है। उन्होंने बेंच से पूछा, “अगर कोर्ट ने उसे यहाँ बुलाने के बाद इस काबिल नहीं समझा कि उसका बयान लिया जाए तो उसको कैसा लगेगा? इन लोगों ने कहा, “कोर्ट में क्या हो रहा है उसके बारे में वह सब कुछ जानती है।”
मुख्य न्यायाधीश मिश्रा ने सिबल और जयसिंह से कहा, “...यह एक जटिल मामला है...मैं, और मेरे सहयोगी जज न्यायमूर्ति खान्विलकर और न्यायमूर्ति चंद्रचूड़, हम सब अलग अलग हाई कोर्ट में भी बैठे हैं...हमने वहाँ भी इस तरह का कोई मामला नहीं देखा...मैंने नहीं देखा है...उनका भी यही कहना है...यह पहली बार है। इसलिए हम बहुत सावधानी से आगे बढ़ेंगे...कृपया सहयोग कीजिए”।
इसके बाद हादिया और बेंच के बीच बातचीत शुरू हुई।