फाइनेंस अधिनियम में ट्रिब्यूनल और राष्ट्रीय उपभोक्ता अदालत में नियुक्ति के प्रावधान को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती, नोटिस जारी [याचिका पढ़े]
सुप्रीम कोर्ट ने उस याचिका पर नोटिस जारी किया है जिसमें याचिकाकर्ता ने फाइनेंस अधिनियम, 2017 को चुनौती दी है। इस एक्ट के तहत केंद्र सरकार को ट्रिब्यूनल और राष्ट्रीय उपभोक्ता अदालत के चेयरमैन, सदस्य, और विशेषज्ञ की नियुक्ति का अधिकार दिया गया है। सुप्रीम कोर्ट अब इस मामले की सुनवाई 8 दिसंबर को करेगी।
इस मामले में एक रिटायर आईएएस गोकुल पटनायक की ओर से सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल की गई है। अर्जी में एक्ट की धारा 177, 182 और 189 को चुनौती दी गई है। इसके तहत ट्रिब्यूनल, अपीली ट्रिब्यूनल और आयोग को खारिज करने की मांग की गई है। याचिका में कहा गया है कि इस एक्ट के तहत संसद के बजाय कार्यपालिका को आयोग के सदस्य और चेयरपर्सन की योग्यता तय करने का अधिकार दे दिया गया है। उसको यह निर्णय का अधिकार दे दिया गया है कि किसकी नियुक्ति हो सकती है। उसका वेतन तय करने का अधिकार भी उसे दे दिया गया है साथ ही यह अधिकार भी कि उनके भत्ते आदि कैसे बढ़ेंगे। इसके अलावा उन्हें इस्तीफा दिलाने और हटाने का भी अधिकार दिया गया है।
याचिका में कहा गया है कि कानूनी सिद्धांत के मुताबिक कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका का अधिकार बंटा हुआ है। वास्तविक रूप से संसद चेयरपर्सन की नियुक्ति का अधिकार रखता है। लेकिन मौजूदा एक्ट में नियम को हल्का करने की कोशिश की गई है और इसके तहत योग्यता से लेकर नियुक्ति और चेयरपर्सन और सदस्य को हटाने तक का अधिकार कार्यपालिका को दे दिया गया है और यह स्थिति खतरनाक होगी। जिसे न्यायिक क्षेत्र का अनुभव नहीं है उसे आयोग का चेयरपर्सन बनाया जाएगा। न तो इसके लिए ट्रेनिंग और न ही किसी अनुभव की बात है। राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग में नियुक्ति के लिए भी सारे अधिकार सरकार के पास होंगे और यह सीधे सीधे कार्यपालिका का दखल है और इस वजह से यह असंवैधानिक है।
कानूनी सिद्धांत का भी यह उल्लंघन है। केंद्र को इसके तहत अधिकार दिया गया है कि वह नियुक्ति करे जबकि कानूनी सिद्धांत के तहत अधिकारों का बंटवारा किया गया है। याचिका में गुहार लगाई गई है कि उपभोक्ता मंत्रालय की ओर से जुलाई में जारी उस सर्कुलर को खारिज किया जाए जिसमें एनसीडीआरसी में नियुक्ति के लिए प्रक्रिया शुरू करने की बात कही गई है।