चुनाव में उम्मीदवारों को अस्वीकार करने के अधिकार को मान्यता देने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका पर सुनवाई 24 नवंबर को [याचिका पढ़े]

Update: 2017-11-22 16:48 GMT

सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल कर “अस्वीकार करने का अधिकार” को मान्यता देने की मांग की गई है। याचिका में कहा गया है कि अगर अधिकाँश लोग “नोटा” को चुनते हैं तो यह माना जाए कि उस राजनीतिक पार्टी को जनता ने अस्वीकार किया है।

इस याचिका पर 24 नवंबर को सुनवाई होगी और इसकी सुनवाई मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति एएम खान्विलकर और न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ करेंगे।

याचिका अश्विनी कुमार उपाध्याय ने दाखिल की है। याचिका में कहा गया है कि इस तरह का अधिकार देश में निष्पक्ष चुनाव के लिए आवश्यक हो गया है।

याचिका के अनुसार, “राजनीतिक पार्टियां अपने उम्मीदवारों का चुनाव अलोकतांत्रिक तरीके से करते हैं और इसके लिए जनता से वे संपर्क नहीं करते। इसलिए बहुत बार ऐसा होता है कि चुनाव क्षेत्र के लोग उनके सामने चुनाव के लिए जो उम्मीदवारों पेश किए जाते हैं उससे संतुष्ट नहीं होते। इस समस्या को सुलझाने का एक तरीका यह है कि अगर नोटा को सबसे ज्यादा मत मिलता है तो चुनाव दुबारा कराया जाए।”

याचिका में आगे कहा गया है कि जिन उम्मीदवारों को जनता ने अस्वीकार किया है और उनकी पार्टी को दुबारा होने वाले चुनाव में भाग लेने की अनुमति नहीं दी जाए। याचिका के अनुसार, “नोटा के साथ साथ अस्वीकार करने के अधिकार और दुबारा नए उम्मीदवार को चुनने का अधिकार मिल जाने से लोग अपनी नाराजगी जाहिर कर सकते हैं।” यह याचिका विधि आयोग के 170वें रिपोर्ट के अनुरूप है जिसने इस तरह के अधिकारों का समर्थन किया था।

इस अधिकार का समर्थन देश के चुनाव आयोग ने भी किया था जब उसने चुनाव सुधार का 2001 और 2004 में प्रस्ताव दिया था। विधि मंत्रालय की कोर कमिटी ने 2010 में चुनाव सुधार पर जो एक बैकग्राउंड पेपर तैयार किया था उसमें भी इसी तरह की बातों का समर्थन किया गया था।

याचिका में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि आपराधिक रिकॉर्ड वाले कई उम्मीदवार चुनाव लड़ते हैं। याचिका ने कहा कि इस अधिकार को मान लेने से भ्रष्टाचार, अपराधीकरण, जातिवाद और सांप्रदायिकता को काबू में करने में मदद मिलेगी। क्योंकि राजनीतिक पार्टियाँ तब ऐसे उम्मीदवारों को ही मैदान में उतारने के लिए बाध्य होंगी जो साफ़ सुथरे छवि के हैं।

याचिका में देश में चुनाव सूची में मौजूद फर्जी नामों को हटाने, फर्जी मतदाता पहचान पत्रों को रद्द करने और इस तरह का पहचान पत्र बनाने वालों को दंडित करने की मांग की गई है।


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