गूगल डूडल बनाकर भारत की पहली महिला एडवोकेट कोर्नेलिया सोराबजी को श्रद्धांजलि
भारत की पहली महिला एडवोकेट को गूगल ने उनके 151वीं जयंती पर डूडल के माध्यम से श्रद्धांजलि दी है। डूडल में वह एडवोकेट के गाउन में हैं और उनके चित्र की पृष्ठभूमि में है इलाहबाद हाई कोर्ट का भवन।
सोराबजी नौ भाई भाई बहनों में एक थी और उनके पिता थे सोराबजी करसेंदजी और उनकी माँ का नाम था फ्रान्सिना फोर्ड जिसे पाला था ब्रिटिश दंपति ने।
उन पर उनकी माता का बहुत प्रभाव था और इसी वजह से बहुत पहले ही वह नारीवादी सोच के प्रभावों से प्रभावित थीं। उनकी माँ महिलाओं की शिक्षा की पक्षधर थीं और उन्होंने पुणे में लड़कियों के कई स्कूल स्थापित किए।
अपने जीवनकाल में सोराबजी कई मोर्चों पर अव्वल रहीं। वह बॉम्बे विश्वविद्यालय की पहली महिला स्नातक थीं। ऑक्सफ़ोर्ड में क़ानून की पढ़ाई करने वाली वह पहली भारतीय महिला बनीं और भारत की पहली महिला एडवोकेट।
पर ऐसा नहीं है कि उनको मुश्किलों का सामना नहीं करना पड़ा। अपने कॉलेज की अव्वल छात्र रहने के बावजूद उन्हें इंग्लैंड में पढ़ाई के लिए स्कालरशिप नहीं मिली। बाद में उनकी पढ़ाई में मदद के लिए मैरी होबहाउस और फ्लोरेंस नाइटिंगेल जैसी महिलाएं आगे आईं। और जब वह अंततः ऑक्सफ़ोर्ड के सोमरविल कॉलेज से 1892 में लॉ की परीक्षा पास की, तो उन्हें डिग्री नहीं मिल पाईं क्योंकि उस समय नियम था कि अगले 30 सालों तक महिलाएं डिग्री प्राप्त नहीं कर सकती।
वह 1894 में भारत लौट आईं पर बॉम्बे हाई कोर्ट ने उनको क़ानून की प्रैक्टिस नहीं करने दी। महिलाओं को उस समय कोर्ट में जिरह करने की इजाजत नहीं थी। पर उन्होंने हार नहीं मानी। 1904 में लार्ड ब्रोदेरिक के भारत में ब्रिटिश शासन का प्रमुख बनने के बाद उनको यह मौक़ा मिला और उन्हें बंगाल के कोर्ट ऑफ़ वार्ड्स का लेडी असिस्टेंट नियुक्त किया गया और उन्होंने बंगाल, बिहार, उड़ीसा और असम में काम करना शुरू कर दिया।
उन्होंने 1929 तक कलकत्ता में प्रैक्टिस किया और जब वह रिटायर हुई तो इंग्लैंड चली गईं जहाँ 1954 में उनकी मृत्यु हो गई।