केंद्र के आग्रह पर जम्मू कश्मीर के लिए 35-A को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई तीन महीने टाली
जम्मू कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले अनुच्छेद 35 A को चुनौती देने की याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई तीन महीने के लिए टल गई है।सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार के आग्रह को मंजूर कर लिया है कि इस मामले में सरकार ने वार्ताकार नियुक्त किया है और उसे इसके लिए वक्त चाहिए।
केंद्र की ओर से AG के के वेणुगोपाल ने चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस ए एम खानवेलकर और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड की बेंच के सामने कहा कि सुनवाई को फिलहाल टाल दिया जाए क्योंकि केंद्र ने कश्मीर मुद्दे पर वार्ताकार नियुक्त किया है। अगर कोर्ट मामले की सुनवाई करेगा तो इसका असर शांति वार्ता पर पड सकता है।
हालांकि केंद्र सरकार ने 6 महीने का वक्त मांगा था लेकिन कोर्ट ने तीन महीने के लिए सुनवाई टाल दी है।
दरअसल 14 अगस्त 2017 को जम्मू कश्मीर को स्पेशल स्टेटस देने वाले अनुच्छेद 35 A के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने इशारा किया था कि ये मामला पांच जजों की संविधान पीठ को भेजा जा सकता है। सुनवाई के दौरान जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा था कि इस मामले में संवैधानिकता और इस प्रावधान की प्रक्रिया को इसलिए संविधान पीठ को मामला सुनना चाहिए।
14 अगस्त को सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता चारू वली खन्ना की ओर से सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि उमर अब्दुल्ला ने जब पायल से शादी की और फारूख अब्दुल्ला ने विदेशी से शादी की तो उन्हें सारे अधिकार मिले। लेकिन याचिकाकर्ता ने राज्य से बाहर शादी की तो उनके अधिकार चले गए। इसलिए 35 A लैंगिक आधार पर भेदभाव करता है और इसे रद्द किया जाना चाहिए।
वहीं केंद्र की ओर से पेश ASG पी एस नरसिम्हन ने कोर्ट को बताया था कि ऐसा ही मामला पहले ही तीन जजों की बेंच को भेजा गया है। इसलिए इसे भी उसी बेंच के सामने रखा जाना चाहिए।
इससे पहले चीफ जस्टिस जे एस खेहर ने अन्य याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान कहा था कि संविधान केअनुच्छेद-35 ए के तहत जम्मू एवं कश्मीर के नागरिकों को मिले विशेष अधिकार पर अब सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की बेंच सुनवाई करेगी। वहीं केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट के सामने कुछ भी कहने से बचती रही। केंद्र सरकार ने कहा कि यह संवेदनशील मामला है और इस पर बहस की जरूरत है।
दरअसल सुप्रीम कोर्ट एक गैर सरकारी संगठन 'वी द सिटिजन और वकील चारू वली खुराना की जनहित याचिका पर सुनवाई कर रहा है। याचिका में अनुच्छेद-35 A की संवैधानिक वैघता को चुनौती दी गई है। पेशे से वकील और मूलत : कश्मीरी चारू वली खुराना ने अपनी याचिका में कहा है कि ये लैगिक भेदभाव करता है जो आर्टिकल भारत के संविधान द्वारा दिए जाने वाले समानता मौलिक अधिकार का उल्लंघन है। याचिका में कहा गया है कि संविधान ने महिला और पुरुष दोनों को समान अधिकार दिए हैं लेकिन 35 A पूरी तरह पुरुषों को अधिकार देता है। इसके तहत अगर कोई नागरिक किसी दूसरे राज्य की महिला से शादी करता है तो वो महिला भी जम्मू कश्मीर की नागरिक बन जाती है और उसे भी परमानेंट रेजिडेंट सर्टिफिकेट मिल जाता है।
लेकिन जो बेटी कश्मीर में पैदा हुई है अगर वो राज्य से बाहर के व्यक्ति से शादी करती है तो वो स्थायी नागरिकता का हक खो बैठती है। यानी वो ना तो जम्मू-कश्मीर में जमीन खरीद सकती है ना सरकारी नौकरी कर सकती है और ना ही उसे वोट का अधिकार मिलता है। यहां तक कि उसके बच्चों को भी ये हक नहीं मिलता।
कश्मीर से बाहर दूसरी जाति में शादी करने वाली चारू वली खुराना का कहना है कि ये दुखद है कि वो भारत में ही नहीं बल्कि विदेश में भी संपत्ति खरीद सकती है लेकिन अपने ही राज्य में वो इस अधिकार से वंचित हो गई है। इसी आधार पर 35 A को रद्द किया जाए। याचिका में ये भी कहा गया है कि 1954 मेंराष्ट्रपति काआदेश पर ये एक अस्थायी व्यवस्था के तौर पर की गई और संसद को बाईपास किया गया।
वहीं वी द सिटिजन की याचिका में कहा गया है कि अनुच्छेद-35 ए और अनुच्छेद-370 के तहत जम्मू एवं कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा मिला हुआ है लेकिन ये प्रावधान उन लोगों के साथ भेदभावपूर्ण है जो दूसरे राज्यों से आकर वहां बसे हैं। ऐसे लोग न तो वहां संपत्ति खरीद सकते हैं और न ही सरकारी नौकरी प्राप्त कर सकते हैं। साथ ही स्थानीय चुनावों में उन्हें वोट देने पर पाबंदी है। याचिका में यह भी कहा गया कि राष्ट्रपति को आदेश के जरिए संविधान में फेरबदल करने का अधिकार नही है। 1954 में राष्ट्रपति का आदेश एक अस्थायी व्यवस्था के तौर पर की गई थी। गौरतलब है कि 1954 में राष्ट्रपति केआदेश के तहत संविधान में अनुच्छेद-35 Aको जोड़ा गया गया था।
अनुच्छेद 35 A की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली एक और याचिका दायर की गई है। पूर्व सैनिक सहित तीन लोगों की ओर से दायर इस याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को नोटिस जारी कर पहले दायर इसी तरह की याचिकाओं के साथ जोड़ दिया है।
याचिका में भारतीय संविधान के अनुच्छेद-35ए और जम्मू एवं कश्मीर संविधान केखंड-छह को असंवैधानिक करार देने की गुहार की गई है। याचिका में कहा गया कि संविधान केअनुच्छेद-35 A और जम्मू एवं कश्मीर संविधान के खंड-छह विभाजन के बाद पश्चिम पाकिस्तान से कश्मीर में आए लोगों के साथ भेदभावपूर्ण है। उनका कहना है कि वे तीसरी पीढ़ी के लोग है लेकिन अब तक उन्हें जम्मू एवं कश्मीर के वांशिदें को मिलने वाला लाभ नहीं मिल रहा है। ऐसे करीब तीन लाख लोग आज भी कश्मीर में तीन पीढियां बीतने के बावजूद शरणार्थी बने हुए हैं।
केंद्र सरकार की ओर से पेश अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने चीफ जस्टिस जेएस खेहर की बेंच से कहा था कि यह मामला संवेदनशील है। साथ ही यह संवैधानिक मसला है। उन्होंने कहा कि इस मसले पर बड़ी बहस की दरकार है। उन्होंने कहा कि इस मसले पर सरकार हलफनामा नहीं दाखिल करना चाहती। अटॉर्नी जनरल ने बेंच से गुहार की कि इस मसले को बड़ी पीठ केपास भेज दिया जाना चाहिए। इस संबंध में जम्मू एवं कश्मीर सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर कर कहा था कि संविधान केअनुच्छेद-35 ए के तहत राज्य के नागरिकों को विशेष अधिकार मिला हुआ है। राज्य सरकार ने कहा है कि इस प्रावधान को अब तक चुनौती नहीं दी गई है, यह संविधान का स्थायी लक्षण है।इसकेतहत राज्य के निवासियों को विशेष अधिकार और सुविधाएं प्रदान की गई थी। इसके तहत राज्य सरकार को अपने राज्य केनिवासियों के लिए विशेष कानून बनाने का अधिकार मिला हुआ है। राज्य सरकार का कहना है कि कि इस जनहित याचिका में उस मूर्त कानून को छेडऩे की कोशिश की गई है जिसे सभी ने स्वीकार किया हुआ है। साथ ही राष्ट्रपति के इस आदेश को 60 सालों के बाद चुनौती दी गई है। वर्षों से यह कानून चलता आ रहा है, ऐसे में इसे चुनौती देने का कोई मतलब नहीं है।