रिटायर्ड कर्मचारी एडवोकेट वेलफेयर फंड से निकाली राशि वापस करने के लिए बाध्य नहीं : केरल हाई कोर्ट [निर्णय पढ़ें]

Update: 2017-10-26 04:51 GMT

केरल हाई कोर्ट के एकल पीठ ने कहा है कि एडवोकेट के रूप में नामांकन कराने की इच्छा रखने वाले रिटायर्ड सरकारी अधिकारियों से बार काउंसिल वेलफेयर फंड से निकाली गई राशि लौटाने पर जोर नहीं दे।

आठ साल प्रैक्टिस करने के बाद याचिकाकर्ता ने सरकारी सेवा में प्रवेश किया था। सरकारी सेवा में जाने से पहले उसने एडवोकेट की सूची से अपना नाम निकलवा लिया था। इस सूची से अपना नाम हटवाने पर याचिकाकर्ता को 37,500 रुपए मिले जो कल्याणकारी कोष में उसके योगदान की राशि थी। इस कोष की स्थापना केरल एडवोकेट वेलफेयर फंड एक्ट, 1957 के अधीन हुआ है।

जब उन्होंने दुबारा एडवोकेट की सूची में अपना नाम दर्ज कराना चाहा तो बार काउंसिल ने उनको मिली 37,500 रुपए की राशि 12 प्रतिशत सालाना वार्षिक ब्याज की दर के साथ वापस करने को कहा। उनसे केरल बार काउंसिल की नियम 5 (1) और केरल एडवोकेट वेलफेयर फंड के नियम 2 के तहत ऐसा करने को कहा गया। याचिकाकर्ता ने याचिका दाखिल कर नियम 4 (a) को एडवोकेट अधिनियम की धारा 28 के तहत बार काउंसिल के पास ऐसा अधिकार नहीं होने का दावा किया है।

बार काउंसिल ने कहा कि याचिकाकर्ता के पास अपना पंजीकरण निलंबित कराने का विकल्प था। वह अपना नाम सूची से निकलवाने की बजाय इस विकल्प को अपना सकता था। बार काउंसिल ने यह भी कहा कुछ एडवोकेट खुद को इस सूची से निकलवाने के लिए फरेब का रास्ता अपना रहे हैं और सूची से नाम निकाले जाने के तुरंत बाद एडवोकेट वेलफेयर फंड से अपनी सारी राशि निकाल लेते हैं।

न्यायमूर्ति दामा शेषाद्री नायडू ने इस प्रस्ताव की संवैधानिकता पर विचार करने की बात को जरूरी नहीं समझते जिसका मतलब यह है कि अगर कोई मामला अन्य तरीके से वैधानिक मानदंडों के आधार पर सुलझ सकता है तो कोर्ट को इसकी संवैधानिक वैधता में जाने की जरूरत नहीं है।

यहाँ कोर्ट ने एक विरोधाभासी स्थिति का जिक्र किया जिसमें वेलफेयर फंड एक्ट ने किसी पेंशन पानेवाले को वेलफेयर फंड का सदस्य होने से रोक दिया। यह निषेध वेलफेयर फंड की धारा 15 (1A) में है जो उस सबको योग्य ठहरा देता है जिसने एक सदस्य के रूप में पेंशन लाभ लिया है।

केंद्र सरकार की सेवा से अवकाश लेने वाले याचिकाकर्ता इसलिए वेलफेयर फंड का सदस्य होने के योग्य नहीं है। सो कोर्ट ने कहा कि “इसलिए यह शर्त कि उसको बार में नामांकन तभी मिलेगा जब वह वेलफेयर फंड से निकाली गई राशी को वापस कर देगा वास्तव में एक विरोधाभासी पूर्व शर्त हो जाता है। नियम उसको बाध्य करता है पर अधिनियम उसको रद्द कर देता है। और जैसा कि सर्वविदित है, अधिनियम की जीत होगी।

इस तरह यह निष्कर्ष निकाला गया कि वेलफेयर फंड से निकाली गई राशि की वापसी के लिए उस व्यक्ति पर जोर डाला जा सकता है जो कि सूची में नाम दुबारा दर्ज कराने पर वेलफेयर फंड की सदस्यता पाने का हकदार है।

केरल हाई कोर्ट के एक पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति सीएन रामचंद्रन नायर को भी बार काउंसिल की और से इसी तरह की मांग का सामना करना पड़ा था जब उन्होंने रिटायर होने के बाद दुबारा प्रैक्टिस शुरू की। हालांकि केरल हाई कोर्ट ने कहा कि हाई कोर्ट के किसी रिटायर्ड जज को दुबारा प्रैक्टिस शुरू करने के लिए केरल बार काउंसिल की अनुमति की जरूरत है लेकिन यह सुप्रीम कोर्ट में प्रैक्टिस करने के लिए क्योंकि संविधान उन्हें इसी की इजाजत देता है।


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