बोंबे हाईकोर्ट ने MSRTC कर्मियों की हडताल को बताया गैरकानूनी, वेतन संशोधन के लिए बनाई हाई पावर कमेटी [निर्णय पढ़ें]

Update: 2017-10-21 15:32 GMT

बोंबे हाईकोर्ट ने महाराष्ट्र स्टेट रोड ट्रांसपोर्ट कॉरपोरेशन ( MSRTC) के कर्मचारियों द्वारा की गई हडताल तो गैरकानूनी ठहराते हुए इसे वापस करा दिया। कर्मचारियों ने 7वें वेतन आयोग की सिफारिशों के तहत वेतनमान देने की मांग को लेकर हडताल की थी।

जस्टिस एसके शिंदे की वेकेशन बेंच ने पाया कि MSRTC के 13700 विभिन्न रूटों पर रोजाना करीब 70 लाख लोग यात्रा करते हैं और इस हडताल से ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों का जीवन बुरी तरह प्रभावित हुआ है।

हाईकोर्ट ने कहा कि निजी बस सेवा सभी रूटों पर उपलब्ध नहीं हैं और राज्य निगम के अलावा दूरदराज के क्षेत्रों के लिए कोई परिवहन नहीं है। ऐसे में इस मुद्दे पर न्यायिक कदम उठाया जा सकता है।

दरअसल हाईकोर्ट जयंत सतामंद व विनोद वाघमारे द्वारा दाखिल जनहित याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा था जिसमें कर्मियों द्वारा की गई हडताल को गैरकानूनी व असंवैधानिक करार देते हुए उन्हें तुरंत काम पर लौटने के निर्देश देने की मांग की गई थी।

याचिकाकर्ताओं का कहना था कि इस हडताल की वजह से ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों का आवागमन थम गया है। हालांकि राज्य सरकार के अधीन ये निगम है लेकिन हालात को सुधारने के लिए कोई प्रभावी कदम नहीं उठाए गए हैं।

याचिकाकर्ताओं ने कहा कि राज्य सरकार के इस रवैए की वजह से बच्चों, वरिष्ठ नागरिकों व रोजाना यात्रा करने वालों को भारी दिक्कतें हो रही हैं।

वहीं राज्य सरकार की ओर से कोर्ट को बताया गया कि यात्रियों की सुविधा के लिए हडताल के दौरान 16 अक्तूबर 2017 को एक नोटिफिकेशन जारी कर  सभी निजी बसों, स्कूल बसों, कंपनी बसों और मालवाहक वाहनों को यात्रियों को ढोने की इजाजत दी गई है।

इसके साथ ही सरकार ने सुझाव दिया कि अगर कर्मी काम पर लौटते हैं तो उनकी मांगों पर गौर करने के लिए वित्त सचिव, परिवहन सचिव, परिवहन आयुक्त और MSRTC के उपाध्यक्ष व प्रबंध निदेश की हाई पावर कमेटी बनाई जा सकती

MSRTC की ओर से पेश जीएस हेगडे ने दलील दी कि इंड्रस्ट्रीयल डिसप्यूट एक्ट के सेक्शन 2(n) के तहत निगम जन सुविधा सेवा दे रही है और एक्ट के 22(1)(a) and (d) के मुताबिक अगर कर्मचारी हडताल करते हैं तो ये गैरकानूनी है। साथ ही ये प्रावधान की उपधारा (a) के खिलाफ है जिसके तहत हडताल पर जाने से पहले कर्मियों को 6 हफ्ते पहले नोटिस देना चाहिए जबकि कर्मियों की यूनियन ने इसके लिए सिर्फ 14 दिनों का नोटिस जारी किया।

साथ ही राज्य सरकार ने 29 सितंबर को नोटिफिकेशन जारी कर MSRTC की सेवा को जनसुविधा घोषित किया था और 13 अक्तूबर को लातूर की लेबर कोर्ट ने MSRTC के कर्मचारियों को 16 अक्तूबर की मध्यरात्रि से पहले हडताल पर जाने पर रोक लगा दी थी।

हाईकोर्ट ने टीके रंगराजन बनाम तमिलनाडू राज्य व अन्य के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि कर्मचारी ये दावा नहीं कर सकते कि वो हडताल पर जाकर पूरे समाज को बंधक बना सकते हैं और अगर किसी हद तक अन्याय हुआ भी है तो उन्हें अपनी शिकायतों के निवारण के लिए मौजूदा विधायी प्रावधानों में उपलब्ध मशीनरी को इस्तेमाल करना होगा।

चूंकि हडताली कर्मचारी उनकी मांगों पर विचार करने के लिए कमेटी के गठन पर सहमत नहीं थे और वो चाहते थे कि खुद मुख्यमंत्री कमेटी की देखरेख करें, कोर्ट ने हडताल को गैरकानूनी करार दिया और कर्मियों को तुरंत काम पर लौटने के आदेश दिए। अंतरिम वेतन और वेतन में संशोधन पर विचार करने के लिए पांच लोगों की हाई पावर कमेटी का गठन भी किया गया है और ये कमेटी 22 दिसंबर तक अपनी रिपोर्ट सौंपेगी।


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